लखनऊ (ब्यूरो)। खेल के दौरान खिलाड़ियों को अकसर चोट लग जाती है, जिसे स्पोर्ट्स इंजरी कहा जाता है। इसमें सामान्य चोट, मोंच, खिंचाव, जोड़ों में दर्द और नाक से खून आना आदि शामिल है। ऐसे में चिकित्सीय जांच बेहद महत्वूर्ण हो जाती है। हालांकि, कई बार खिलाड़ियों द्वारा लापरवाही बरतने के कारण चोट गंभीर हो सकती है। ऐसे में, चोट से उबारने में क्वालीफाइड स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपिस्ट महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आजकल इनकी डिमांड काफी ज्यादा है, पर क्वालीफाइड एक्सपर्ट्स मिल नहीं पा रहे हैं, जिसका खामियाजा खिलाड़ियों को भुगतना पड़ रहा है।
स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपिस्ट की पोस्ट खाली
राजधानी में केडी सिंह बाबू स्टेडियम, चौक स्टेडियम समेत करीब 10 से अधिक स्पोर्ट्स ग्राउंड हैं, जहां लखनऊ समेत प्रदेश के अन्य जिलों से बड़ी संख्या में खिलाड़ी प्रैक्टिस करने आते हैं। प्रैक्टिस और खेल के दौरान उनको चोटें भी लगती हैं, जिसके लिए उनको चिकित्सीय मदद उपलब्ध कराई जाती है। इस दौरान प्रोफेशनल स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपिस्ट की सख्त जरूरत होती है। लखनऊ में ऐसी सिर्फ एक ही सरकारी पोस्ट है, लेकिन वह भी काफी अर्से से खाली है। ऐसे में, खिलाड़ियों को सरकारी अस्पताल के फिजियोथेरेपी विभाग में थेरेपी के लिए भेजा जाता है। क्वालीफाइड स्पोर्ट्स फिजियो न होने से खिलाड़ियों को प्रॉपर ट्रीटमेंट नहीं मिल पाता है।
क्वालीफाइड स्पोर्ट्स फिजियो की डिमांड
फिजियोथेरेपी गति को बहाल करने, दर्द कम करने और कार्य करने की क्षमता में सुधार करने में मददगार साबित होती है। इसमें एक्सरसाइज, स्ट्रेच, मालिश और अन्य मैनुअल और ऑटोमेटिक थेरेपी आदि को शामिल किया जाता है। इकाना इंटरनेशनल स्टेडियम में स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपिस्ट डॉ। जय प्रकाश बताते हैं कि स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपिस्ट खासतौर पर स्पोर्ट्स इंजरी की पढ़ाई करता है, जिसमें एंकल ट्विस्ट, एंकल स्प्रेन आदि होता है। खेल के समय यदि खिलाड़ी इंजर्ड हो तो तुरंत आराम देने के लिए टेपिंग, नीडलिंग और क्रायो थेरेपी देते हैं, जिससे तुरंत आराम मिल जाता है। एक क्वालीफाइड स्पोर्ट्स थेरेपिस्ट ही इसे दे सकता है, ऐसे में शहर के हर स्पोर्ट्स ग्राउंड में इन प्रोफेशनल्स की तैनाती जरूरी है।
स्पोर्ट्स इंजरी के बारे में एक्सपर्ट
डॉ। योगेश शेट्टी, स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपिस्ट, उत्तर प्रदेश बैडमिंटन एकेडमी ने बताया कि छोटी चोट होने पर हैंडल नहीं किया तो समस्या धीरे-धरे बढ़ती जाती है। वहीं, स्पोर्ट्स फिजियो दो साल तक स्पोर्ट्स के बायोमैकेनिक के बारे में गहराई से पढ़ता है, जिसमें उसे चोट और बचाव आदि के बारे में बताया जाता है। आज के दौर में स्पोर्ट्स फिजियो बेहद महत्वपूर्ण हो गये हैं, क्योंकि वे एथलीटों के साथ उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और लक्ष्यों के अनुरूप व्यक्तिगत रीहैबिलिटेशन योजनाएं बनाने में मददगार साबित होते हैं।
बचाव बेहद जरूरी
डॉ। योगेश शेट्टी के मुताबिक, ऐसी इंजरी से बचाव में जूते, ग्लव्स, ट्रेनिंग आदि का बहुत महत्व होता है, वरना कमर या घुटना वगैरह घायल हो सकता है। वहीं, हर सेशन में कितना और कब पुश करना है, यह जानना भी जरूरी है। खेल से पहले वार्म अप और खेल के बाद कूल डाउन करना बेहद जरूरी है। इसकी नॉलेज न होने से बॉडी सही तरीके से रिकवर नहीं होती है।
स्पोर्ट्स फिजियो की एक पोस्ट खाली है। उसे भरने का प्रयास कर रहे हैं। फिलहाल खिलाड़ियों को डॉक्टर के पास ही ट्रीटमेंट के लिए भेजा जाता है, ताकि खिलाड़ियों को कोई समस्या न हो।
-अजय कुमार सेठी, आरएसओ
स्पोर्ट्स फिजियो की डिमांड लगातार बढ़ती जा रही है। वे खिलाड़ियों की जरूरतों को ज्यादा बेहतर तरीके से समझते हैं। हर मैदान में एक एक्सपर्ट जरूर होना चाहिए।
-डॉ। जय प्रकाश, स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपिस्ट, इकाना स्टेडियम
स्पोर्ट्स फिजियो खिलाड़ियों को चोट से जल्दी रिकवर करने में मदद करता है। लापरवाही से करियर तक खत्म होने का डर रहता है। इस फील्ड में असीम संभावनाएं हैं।
-डॉ। योगेश शेट्टी, स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपिस्ट, उत्तर प्रदेश बैडमिंटन एकेडमी