लखनऊ (ब्यूरो)। पंतनगर की गलियों की तस्वीर एकाएक बदल गई है। पहले जहां सुबह से लेकर रात तक हर तरफ लोगों की चहलकदमी देखने को मिलती थी, वहीं अब वहां सन्नाटा सा पसरा हुआ है। जो लोग दिख भी रहे हैैं, उनके चेहरे पर मायूसी, आंखों में आंसू और हाथों में रजिस्ट्री के पेपर देखने को मिल रहे हैैं। उन्हें उम्मीद है कि शायद कोई ऐसा आदेश आएगा, जिससे उनका सपनों का महल टूटने से बच जाएगा।
बच्चों के भविष्य की चिंता
जब से पंतनगर में सर्वे शुरू हुआ है और मकानों की दीवारों पर लाल रंग के क्रॉस के निशान लगना शुरू हुए हैैं, लोगों की नींद गायब हो गई है। मकान टूटने का खौफ इस कदर है कि निवाला तक उनके गले से नहीं उतर रहा है। कोई अपने बच्चों के भविष्य को लेकर परेशान है तो कोई यह नहीं समझ पा रहा है कि अगर मकान टूट गया तो वे अपने परिवार के साथ कहां शरण लेंगे।
कोई सुनने वाला नहीं
लोगों का दर्द यहीं खत्म नहीं होता। उनका कहना है कि सर्वे करने के लिए आने वाली टीमें उनके सवालों का जवाब तक नहीं देती है। बस टीमें आती हैैं और मकानों की दीवारों पर निशान लगाकर चली जाती हैैं। कई लोगों ने तो अपने मकानों की दीवारों पर बिकाऊ की नोटिस भी चस्पा कर दी हैं। हालांकि, उन्हें भी अब खरीदार मिलने की उम्मीद कम है।
कई यादें जुड़ी हुई हैैं
यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि वे 30-35 सालों से यहां रह रहे हैैं। ऐसे में हर किसी की यहां के चप्पे-चप्पे से यादें जुड़ी हुई हैैं। लोगों का कहना है कि उन्हें पता नहीं था कि एक झटके में सब खत्म हो जाएगा। रजिस्ट्री होने के बावजूद उनके मकानों को अवैध बताया जा रहा है। शासन प्रशासन को इस तरफ ध्यान देना चाहिए।
लोन लेकर बनवाया था मकान
इलाके में रहने वाले ज्यादातर लोगों ने सरकारी और प्राइवेट बैैंकों से 20 से 25 लाख तक लोन लेकर मकान बनवाए थे। उनका कहना है कि लोन का बोझ तो सिर से उतर गया है, लेकिन नई मुसीबत सामने आकर खड़ी हो गई है।
बोले लोग
लोन लेकर बनवाया मकान
मैैं पिछले 24 साल से यहां रह रहा हूं। हेल्थ सेक्टर में सर्विस करके रिटायर हुआ हूं। मैंने अपना सब कुछ लगाकर ये मकान बनवाया है। इसके लिए मैंने 30 लाख का लोन भी लिया था। अब मैैं और मेरा परिवार कहां जाएंगे। मेरे पास सारे दस्तावेज हैैं फिर ऐसा क्यों हो रहा है।
- डॉ। आरएच सिद्दीकी
घर चला जाएगा तो क्या बचेगा
हालात बहुत खराब है। हर दिन यही सोचते रहते हैैं कि आज या कल में हमारा भी मकान टूट जाएगा। हमें यहां रहते हुए 20-25 साल हो गए हैैं। हमारा तो फ्यूचर तबाह हो गया हो गया। जब हमारा घर ही चला जाएगा तो कुछ नहीं बचेगा।
- फरहान
30 साल से रह रहे हैैं
पहले सर्वे करके गए थे। जब तक कुछ समझ पाते तबतक लाल निशान लगा गए। मैैं पिछले 30 साल से अपने परिवार के साथ यहां रह रही हूं। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैैं। उन्हें लेकर हम कहां जाएंगे। उनकी पढ़ाई पर भी काफी असर पड़ेगा। मैैं बस यही चाहती हूं कि हमारा घर टूटने से बच जाए। मेरे पास रजिस्ट्री भी है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मेरा मकान अवैध कैसे है।
-सुनीता सोनी
सवालों का नहीं दिया जवाब
15-20 दिन पहले सर्वे टीम आई थी और सर्वे करके गई थी। जब अगली बार टीम निशान लगाने आई तो उनसे इसका कारण जानने की कशिश की। हालांकि, उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया। सोसायटी के सभी लोग घबराए हुए हैैं। मैंने खुद 35 लाख का लोन लेकर घर बनवाया था। यहां सभी लोग भाईचारे के साथ रहते हैैं और हम सभी अपना घर बचाने के लिए सारे लीगल तरीके अपनाएंगे।
- शिल्पी सिंह
मकान न हो तो कहां जाएं
20-25 साल से यहां रह रहे हैैं। हम घर का हाउस टैक्स, वॉटर टैक्स, सब भर रहे हैैं। बहुत मेहनत करके यहां सब कुछ बसाया है। यहां नहीं रहेंगे तो बच्चों की पढ़ाई लिखाई भी बंद हो जाएगी। बच्चों ने जबसे इस बारे में सुना है तबसे व बहुत रोते हैैं। फ्यूचर के बारे में सोच कर घबराहट होती है। मेरे मन में यही सवाल है कि जब मेरे पास रजिस्ट्री, सारे टैक्स भर रही हूं तो फिर मेरा मकान अवैध कैसे है।
- कविता यादव
हमारे घर अगर ग्रीन लैैंड जोन में हैैं, तो शासनादेश दिखा दें
हमारे पूरे एरिया को ग्रीन लैंड जोन घोषित किया जा रहा है। हम तो यहां सालों से रह रहे हैं। अगर ग्रीन लैंड जोन घोषित करने संबंधी कोई शासनादेश आया है तो उसकी कापी हमें उपलब्ध कराई जाए। अगर एलडीए या अन्य विभागों की ओर से कोई सुनवाई नहीं की जाती है तो हम अपनी आवाज और मुखरता से उठाएंगे। यह कहना है पंतनगर के उन निवासियों का, जिनको अपने मकान के ध्वस्त होने का खतरा है। दरअसल में, कई भवन स्वामी शुक्रवार को एलडीए प्रशासन के पास पहुंचे और ज्ञापन दिया।
वीसी को दिया गया है पत्र
पंतनगर के लोगों का कहना है कि उनके द्वारा एलडीए वीसी को पत्र दिया गया है। जिसके माध्यम से सिर्फ इतना कहा गया है कि किस आधार पर पूरे एरिया को ग्रीन लैंड जोन बताया जा रहा है। सिंचाई विभाग से भी यही सवाल किए जा रहे हैं। लोगों का यह भी कहना है कि जब वे लोग मौके पर अधिकारियों से कोई जानकारी लेना चाहते हैैं तो कोई उनकी सुनता तक नहीं है। तेजी से मकानों और रोड्स पर लाल निशान लगाए जा रहे हैैं।
किसी का आधा मकान और किसी का पूरा
अभी तक जो चिन्हांकन का काम किया गया है, उससे साफ हैै कि कई लोगों का मकान 50 फीसद ध्वस्त हो जाएगा, जबकि कई लोग ऐसे हैैं, जिनका पूरा ही मकान ध्वस्त हो जाएगा। लोगों के मन में यह भी सवाल है कि कुकरैल नदी से कितनी दूरी तक निशान लगाए जा रहे हैं। इसकी तो जानकारी दी जाए। इस एरिया में ज्यादातर मकान एक हजार स्क्वॉयर फिट या उससे अधिक साइज के बने हुए हैैं। भवन स्वामियों के पास रजिस्ट्री तो है लेकिन मामला अब नक्शा स्वीकृति को लेकर उलझ रहा है।
50-50 मीटर का दायरा
विभागों की तरफ से बात की जाए तो कुकरैल नदी के चौड़ाई से पचास पचास मीटर (दोनों तरफ) के दायरे को लिया गया है। इसी के आधार पर सर्वे कराया जा रहा है। हालांकि अभी सर्वे सिंचाई विभाग की ओर से हो रहा है। 27 जुलाई के बाद से एलडीए की ओर से नोटिस जारी की जा सकती हैैं।