-परिवहन विभाग की लापरवाही से हवा में घोल रही हैं बसें
- धुएं को जांचने के लिए निगम ने सभी क्षेत्रों को दिए थे स्मोक मीटर
- लेकिन लैपटॉप न होने से स्मोक मीटर नहीं कर पा रहा काम
फैक्ट फाइल
20 क्षेत्रों को दिए गए स्मोक मीटर
70 हजार से अधिक एक स्मोक मीटर की कीमत
550 बसों को संचालन यहां के डिपोज से रोजाना
2500 बसें टोटल आती-जाती हैं राजधानी में
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LUCKNOW: कागजी दावे करने में तो परिवहन विभाग का कोई सानी नहीं, लेकिन पर्यावरण के साथ ही लोगों की सेहत से विभाग किस कदर खिलवाड़ कर रहा है, इसका अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि एक अदद लैपटॉप के फेर में बसों में लाखों रुपये की कामत में खरीदे गए स्मोक मीटर धूल खा रहे हैं। ये तब है जब हाल ही परिवहन मंत्री ने भी वायु प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए बसों की नियमित चेकिंग के आदेश दिए थे।
धूल फांक रहे स्मोक मीटर
निगम की बसों से निकलने वाले धुएं की जांच के लिए सभी क्षेत्रों को स्मोक मीटर दिए गए थे। करीब एक साल पहले 20 क्षेत्रों के लिए 20 स्मोक मीटर खरीदे गए। एक स्मोक मीटर की अनुमानित लागत 70 हजार रुपए से अधिक है। लेकिन इनसे एक भी बस से निकलने वाले धुएं को नहीं परखा गया। आज तक निगम को यह नहीं पता है कि उसकी बसों से कितना प्रदूषण हो रहा है। असल में बिना लैपटॉप और कंप्यूटर के ये मीटर बसों से निकलने वाले धुएं में शामिल पर्टिकुलेट मैटर और हानिकारक गैस को परख नहीं कर सकता। स्मोक मीटर की डिवाइस को जब तक कम्प्यूटर या लैपटॉप से अटैच नहीं किया जाएगा, काम नहीं करेगा। स्मोक मीटर खरीदे जाने के साथ ही सभी क्षेत्रीय कार्यशालाओं को एक-एक लैपटॉप देना था। स्मोक मीटर को खरीदे तो एक साल से अधिक का समय हो गया लेकिन लैपटॉप नहीं खरीदे जा सके।
लखनऊ में सबसे अधिक बसें
निगम में सबसे अधिक बसों का संचालन राजधानी से होता है। प्रदेश के सबसे बड़े डिपो कैसरबाग से 200 बसों का संचालन होता है। जबकि राजधानी में अवध, चारबाग, आलमबाग और उपनगरीय डिपो भी हैं। ऐसे में रोजाना यहां से 550 से अधिक बसों का संचालन किया जाता है। इसके अलावा अन्य डिपो से राजधानी में हर दिन आने और जाने वाली बसों की संख्या 2500 से अधिक है।
हवाई दावा
हमारी बसें हर तीन महीने में फिटनेस के लिए आरटीओ कार्यालय भेजी जाती है। वहीं से फिटनेस होकर आती हैं। ऐसे में स्मोक मीटर की जरूरत नहीं पड़ी। हमारी बसों से पल्यूशन कम हो रहा है।
-अजीत सिंह, एसएम, परिवहन निगम
मंत्री के आदेश पर समय सीमा पूरा कर चुकी बसों का निस्तारण तेजी से किया जा रहा है। अब तक 106 बसों को नीलाम किया जा चुका है। दिसंबर तक प्रदेश भर से 325 बसों की नीलामी की जाएगी।
जयदीप वर्मा , मुख्य प्रधान प्रबंधक तकनीकी
परिवहन निगम
बोले आरटीओ, बसें खतरनाक
आरटीओ एके त्रिपाठी ने बताया कि निगम की अधिकांश बसें खटारा हो चुकी है, जिनमें निर्धारित मानकों से ऐसे कैमिकल बाहर निकल रहे हैं जो वातावरण प्रदूषित करते रहते हैं। इसके अलावा फिटनेस के लिए आने वाली बसें कभी तय समय से नहीं आती। इनके खिलाफ जल्दी एक्शन भी नहीं लिया जाता क्योंकि संचालन प्रभावित होने से यात्रियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। फिटनेस तीन महीने के लिए दी जाती है और बस आती है छह महीने के बाद।