जब सुबोध का एक्सीडेंट हुआ तो उसके पैरेंट्स और फ्रेंडस सभी ने यह मान लिया कि अब शायद ही वह कभी गेंद को बांउड्री पार पहुंचा सके। सब को यही लगा कि क्रिकेट में उसकी पारी खत्म। वह अब शायद ही कभी पिच पर लौटे। लेकिन सुबोध पर क्रिकेट का जुनून इस कदर था कि लगभग नौ महीने ग्राउंड से दूर रहने के बाद ना सिर्फ विकेट के सामने आकर खड़ा हो गया बल्कि हाल ही में बाबू स्टेडियम में अंडर-22 के लिए हुए ट्रायल में जगह बना ली। उसका अगला ट्रायल अब कानपुर में होना है।
हिम्मत नहीं हारी
बाबू स्टेडियम पर ट्रायल के लिए आए सुबोध श्रीवास्तव ने बताया कि घर में उसके अलावा किसी को खेल की दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है। मुझे बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक रहा। इतना ही नहीं अपनी लगन और मेहनत के दम पर वह एक के बाद एक सीढ़ी चढ़ता गया। लेकिन 25 दिसम्बर 2007 का वह दिन कभी नहीं भूल सकता। गोरखपुर में मेजर अमिय कुमार त्रिपाठी मेमोरियल टूर्नामेंट खेल कर सुबोध बस से लखनऊ लौट रहा था। रास्ते में हाटा के पास उसकी बस सामने से आ रही एक बस से टकरा गई और गड्ढे में जा गिरी। सुबोध ने बताया कि जब उसे होश आया तो उसके इर्द-गिर्द कई लोग पड़े हुए थे। कोई जख्मी था तो कुछ ने दुनिया छोड़ दी थी। सुबोध ने देखा कि गड्ढे के ऊपर कुछ लोग खड़े दिखाई पड़े। उसने उठने की कोशिश की। लेकिन उसका एक पैर घुटने के नीचे से टूट कर यू शेप में हो गया था। सुबोध ने हिम्मत नहीं हारी। वहीं से उसने लोगों को आवाज लगाई, कोई मुझे हॉस्पिटल पहुंचा दो। उसके बाद किसी तरह वह हॉस्पिटल पहुंचा। फिर उसके घर वालों को खबर दी गई।
मनोबल घटने नहीं दिया
सुबोध ने बताया कि पैर में राड डाली गई। नटों से उसे कसा गया। सुबोध तीन महीने तक तो बेड पर ही रहा। उसके बाद फिर बैसाखियों के सहारे चलना शुरू किया। कुछ ठीक हुआ तो बैसाखी पर धीमे-धीमे चलना शुरू किया। लगभग नौ महीने बाद उसके ग्राउंड पर एक बार फिर कदम रखा। उस समय तो इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह एक बार फिर से दौड़-भाग कर सके। लेकिन क्रिकेट के जुनून के चलते उसने एक बार फिर प्रैक्टिस शुरू की। ना केवल प्रैक्टिस की बल्कि इंटर यूनिवर्सिटी क्रिकेट काम्पटीशन में लखनऊ यूनिवर्सिटी टीम की कप्तानी भी की। हाल ही में बाबू स्टेडियम में अंडर-22 के लिए हुए पहले चरण के ट्रायल में उसने जगह बना कर दूसरी पारी की शुरुआत कर दी। सुबोध बताते हैं कि दूसरी पारी की शुरुआत के लिए मेरे फ्रेंडस और फैमिली का बहुत योगदान है, जिन्होंने कभी मेरा मनोबल घटने नहीं दिया। मेरे फादर कृष्ण मुरारी श्रीवास्तव, मां माया, भाई सौरभ और दीदी दीप्ति ने एक्सीडेंट के बाद कभी यह नहीं कहा कि अब क्रिकेट बंद। सब ने यहीं कहा कि बस जल्दी ठीक हो, हम सभी तुम्हे खेलते हुए देखना चाहते हैं। मुझे खुशी है कि मैं फील्ड पर वापसी कर सका।
जिस तरह से सुबोध का एक्सीडेंट हुआ था, उसे देखकर तो यह कहना मुश्किल था कि वह फील्ड पर वापसी कर सके। लेकिन यह सुबोध का ही हौसला था कि वह आज एक बार फिर से पिच पर मौजूद है।
-सौरभ दुबे, रणजी प्लेयर
खिलाड़ी में अगर इच्छा शक्ति है तो उसे खेलने से कोई नहीं रोक सकता है। फिर खिलाडिय़ों के लिए तो चोट बेहद खतरनाक होती है। कई बार तो खिलाडिय़ों का कॅरियर खत्म हो जाता है। लेकिन सुबोध ने वापसी कर यह साबित कर दिया कि 'देयर इज विल, देयर इज वे.Ó
शशिकांत सिंह, पूर्व रणजी प्लेयर
The captain
- यूपी अंडर-17 यूपी अंडर-19 सेंट्रल जोन की टीम में एक्सीडेंट के पहले खेला। बीसीसीआई की जोनल क्रिकेट अकादमी में जगह बनाई और इसके निर्देशन में होने वाले 45 दिन के कैम्प में प्रैक्टिस की।
- मई 2009 के बाद फिर से खेलना शुरू किया। इसके बाद एलयू क्रिकेट टीम की कप्तानी की।