लखनऊ (ब्यूरो)। मां तमाम मुसीबतें झेलती है, लेकिन अपने बच्चों पर उसकी आंच तक नहीं आने देती। वहीं, उसकी नसीहतें बच्चों की जिंदगी बदलने का काम करती हैं। आज की मां न केवल अपने परिवार को पूरा समय दे रही है, बल्कि अपने पैशन को भी तरजीह दे रही है। दोनों में बैलेंस बनाते हुए वह सफलता की सीढ़ी चढ़ रही है। इस मदर्स डे पर आज हम ऐसे ही कुछ लोगों के अनुभव के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने परिवार को समय देने के साथ-साथ अपना काम भी शुरू किया और उसे बुलंदियों तक पहुंचाया।
घर और काम को मैनेज कर रही
मैं काफी पहले से काम रही थी, लेकिन शादी और बच्चों के बाद काम पीछे छूट गया था। जब बच्चे बड़े होने लगे तो लगा एकबार फिर अपने काम को आगे बढ़ाना चाहिए। इस फैसले में परिवार का भी पूरा साथ मिला। आज बीते 20 साल से काम कर रही हूं। हर्बल प्रोडक्ट्स समेत अन्य चीजें बना रहे हैं। साथ ही दूसरों को काम भी दे रही हूं। पहले घर-घर जाकर सामान बेचा। इसके बाद मार्केट में प्रोडक्ट उतारा और अब हमारे प्रोडक्ट्स की काफी डिमांड हो गई है। खास बात यह है कि सभी प्रोडक्ट हैंड मेड होते हैं। इसके लिए सुबह जल्दी उठकर घर का काम करने के बाद मंदिर जाती हूं। फिर खाना बनाकर 12 बजे निकल जाती हूं । रात 8 बजे तक घर आती हूं , फिर फ्रेश होकर खाना बनाती हूं । इस तरह घर और काम दोनों को मैनेज कर रही हूं ।
-तृप्ता शर्मा, बिजनेसवुमेन
रनिंग को बनाया अपना पैशन
वैसे तो मैं सहायक आयुक्त, उप्र राज्य कर विभाग में तैनात हूं। शादी के बाद दो बच्चे हुए, जिसकी वजह से मेरा वजन 82 किलो हो गया था। चलने-फिरने में दिक्कत होने लगी तो अपनी हेल्थ को ठीक करने के लिए रनिंग शुरू की। रनिंग करते-करते यह मेरा पैशन बन गया। फिर क्या था मैंने कई काम्प्टीशन में हिस्सा लिया और विनर तक बन चुकी हूं। इसके बाद घर-घर तिरंगा यात्रा के दौरान श्रीनगर से दिल्ली के बीच रनिंग की, जिसमें देशभर से 11 नॉन-रनर लोग चुने गये थे। अब रनिंग करना मुझे बेहद अच्छा लगता है, जो मुझे हेल्दी रखने के साथ फिट भी रखता है। इस काम में मेरी फैमिली खासकर मेरे बच्चे सबसे ज्यादा मोटिवेट करते हैं। उनकी ही बदौलत आज अपने पैशन को समय दे पा रही हूं।
-अंजली चौरसिया, एथलीट
देश-विदेश तक जाता है आचार
मेरे तीन बच्चे हैं। मैं आचार का काम करती हूं । आंवले के मुरब्बे से काम शुरू किया था। आचार मुरब्बा सभी को पसंद आया तो बात उठी कि क्यों न मैं भी यह काम करूं। एक मंदिर जाती थी वहां से इसकी शुरुआत की और लोगों को यह काफी पसंद आया, जिसके बाद हिम्मत बढ़ी। पूरी तरह से नेचुरल सामान बनाना शुरू किया। जो पैशन था वो काम में बदला। पैसा आया और डिमांड भी बढ़ती गई। अब डेढ़ साल हो गया है। सोशल मीडिया पर लोग तारीफ करते हैं। दादी-नानी का टेस्ट लोगों को पसंद आया है। देश-विदेश भी सामान जाता है। हमारे यहां आर्गेनिक और नेचुरल प्रोडक्ट्स तैयार किए जाते हैं।
-ऋषी मुनी, बिजनेसवुमेन