लखनऊ (ब्यूरो)। देश में भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता यानि बीएनएस ने ले ली है। यूपी में पहले दिन अमरोहा के थाने में गैर इरादातन हत्या के मामले में बीएनएस की धारा 106 के तहत एफआईआर भी दर्ज हुई थी, लेकिन अब भी थानों में उहापोह की स्थित बनी हुई है। दीवान से लेकर दारोगा और इंस्पेक्टर भी किताबों को पढ़ रहे हैं। इसकी वजह यह है कि अगर कोई भी धारा इधर से उधर हुई तो मुकदमा ही बदल जाएगा। यही वजह है कि राजधानी में अब पुलिस कमिश्नरेट अपने पुलिसकर्मियों को धाराओं को रटवाने के लिए अनुभवी प्रोफेसरों का सहारा लेने जा रही है।
मुंशी से लेकर दारोगा तक खोले बैठे हैं किताब
आजकल लखनऊ के थानों में मुंशी से लेकर दारोगा तक किताबें पढ़ते दिख रहे हैं। ये किताबें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय न्याय संहिता 2023 की हैं, जिनमें वे सभी धाराओं के विषय में लिखा है जो एक जुलाई से लागू हो चुकी है। इसमें आईपीसी की पुरानी धाराओं के सामने बीएनएस की नई धाराएं लिखी हैं। इतना ही नहीं, कौन सी धारा जमानती है और कौन सी अजमानतीय इसके विषय में भी लिखा हुआ है।
एफआईआर दर्ज करने में लग रहा अधिक समय
एक जुलाई से ही थानों में जितनी भी शिकायतें या तहरीर आ रही हैं, उन्हें अब पहले की तरह मुंशी नहीं लिख पा रहा है। पहले तो थाने का मुंशी अपराध को देखते ही आईपीसी की धारा बता देता था लेकिन अब उसे पहले किताब खोलनी पड़ रही है और फिर उसके अनुसार एफआईआर दर्ज कर पा रहा है। ऑफ द रिकॉर्ड पुलिसकर्मियों ने बताया कि एक जुलाई से एक मुकदमा लिखने में पहले की अपेक्षा तीन दुगना समय लग रहा है। छोटी सी गलती मुकदमे का स्वरूप ही बदल सकती है, लिहाजा हर शिकायती पत्र मिलने पर किताब खोल कर देखना पड़ रहा है।
यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पुलिसकर्मियों को पढ़ाएंगे नई धाराएं
लखनऊ सेंट्रल की एडीसीपी मनीषा सिंह ने बताया कि लखनऊ पुलिस अपने कर्मियों को नए कानून के विषय में जागरूक कर रही है, उनके लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। सीनियर अफसरों ने ट्रेनिंग भी दी है। हालांकि, अभी भी थोड़ी बहुत समस्या आ रही है। इसके लिए हमने अब लखनऊ यूनिवर्सिटी से मदद मांगी है। हमने लखनऊ यूनिवर्सिटी को एक पत्र लिखा है, जिसमें अनुरोध किया है कि वहां के प्रोफेसर हमारे पुलिसकर्मियों के लिए खास क्लास का आयोजन करें ताकि उन्हें नए कानून को याद रखने में मदद मिले।