लखनऊ (ब्यूरो)। संजय गांधी पीजीआई में अब डायबिटिक फुट मरीजों को और बेहतर ट्रीटमेंट मिलेगा और बार-बार ड्रेसिंग करवाने की वजह से इंफेक्शन का खतरा भी कम होगा। दरअसल, यहां के इंडोक्राइन सर्जरी विभाग में दी जा रही वैक्यूम असिस्टेड क्लोजर (वीएसी) थेरेपी जख्म भरने में मददगार साबित हो रही है। इस थेरेपी का ट्रायल सफल रहा है। इससे मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी।

90 पर्सेंट सफल रहा ट्रायल

पीजीआई के इंडोक्राइन सर्जरी विभाग में ट्रीटमेंट करवा रहे 100 रोगियों पर इस थेरेपी का ट्रायल किया गया। 90 पर्सेंट मरीजों के जख्म इस थेरेपी की मदद से ठीक हो गये। इन मरीजों की उम्र 40-70 वर्ष के बीच की थी। इंडोक्राइन सर्जरी विभाग के डॉ। ज्ञान चंद के मुताबिक, डायबिटिक फुट के मरीजों के पैरों में मामूली चोट लगने पर भी घाव हो जाता है, जिसकी रोजाना ड्रेसिंग करानी पड़ती है। पर डायबिटीज की वजह से इनके घाव जल्दी भरते नहीं है। जिसकी वजह से मरीज चल नहीं पाता और इंफेक्शन का खतरा भी बढ़ जाता है। कई बार मरीजों के पैर तक काटने की नौबत आ जाती है।

एक माह में भर गया घाव

डॉ। ज्ञान चंद ने बताया कि डायबिटिक फुट के 100 मरीजों की सहमति पर वैक्यूम असिस्टेड क्लोजर थेरेपी का इस्तेमाल किया गया। इनमें 90 मरीजों को थेरेपी देने का फायदा मिला। करीब एक माह में इनके पैरों के जख्म भर गए। ये रोगी पहले की तरह चलने-फिरने लगे हैं। इसमें करीब 28 हजार रुपये का खर्च आता है। उन्होंने बताया कि हर माह इस तरह के करीब 20-25 मरीज आते हैं।

ऐसे काम करती है थेरेपी

डॉ। ज्ञान चंद ने बताया कि फोम या गॉज ड्रेसिंग को सीधे घाव पर लगाया जाता है। इसके बाद घाव को एक प्रकार की फिल्म ड्रेसिंग से ढक कर सील कर दिया जाता है। जिसके बाद उसमें एक ट्यूब लगायी जाती है। इस ट्यूब को पोर्टेबल वैक्यूम पंप से जोड़ दिया जाता है। यह पंप घाव पर हवा के दबाव को कम करता है और घाव में मौजूद पस और गंदगी को ट्यूब से बाहर निकाल देता है। मरीज को एक हफ्ते तक लगातार थेरेपी दी जाती है। यह प्रकिया करीब चार चरणों में होती है। वहीं, छोटा घाव होने पर कम समय लगता है और घाव भी जल्दी भर जाता है। ऐसे में मरीजों को एक बड़ी राहत मिलेगी और इंफेक्शन का खतरा भी कम होगा।

वीएसी थरेपी से डायबिटिक फुट मरीजों को काफी फायदा मिलेगा। इंफेक्शन होने का खतरा कम होगा और उनका बेहतर ट्रीटमेंट हो सकेगा।

-डॉ। ज्ञान चंद, पीजीआई