लखनऊ (ब्यूरो)। डॉक्टरी महज एक पेशा भर नहीं है। यह एक मरीज का डॉक्टर पर विश्वास और भरोसा भी दिखाता है। जो बताता है कि डॉक्टर और पेशेंट के बीच आत्मीयता वाले संबंध होते हैं, क्योंकि एक डॉक्टर के लिए उसके पेशेंट के ठीक होने से बड़ी कोई खुशी नहीं होती। साथ ही, मरीजों की दुआएं भी मिलती हैं। इसी सेवा भाव को आगे बढ़ाते हुए राजधानी में कई ऐसे डॉक्टर परिवार भी हैं, जिनकी कई पीढ़ियां बतौर डॉक्टर अपनी सेवाएं दे रही हैं। पेश है ऐसे ही कुछ परिवारों पर स्पेशल रिपोर्ट

परिवार के 34 सदस्य डॉक्टर

मेरे परिवार में करीब 34 सदस्य डॉक्टर हैं। मेरे नाना डॉ। शांति प्रकाश वाखलू पैथालॉजिस्ट रह चुके हैं, जबकि मेरे फादर डॉ। एके वाखलू पीडियाट्रिक सर्जन, मेरी मदर डॉ। इंदु भी पीडियाट्रिक सर्जन हैं। मेरा भाई डॉ। अनुपम गठिया रोग स्पेशलिस्ट व उनकी वाइफ डॉ। अर्चना गाएनी और डॉ। आशीष पीडियाट्रिक सर्जन व उनकी वाइफ डॉ। गीता गाएनी हैं। इसके अलावा, डॉ। अनुपम की बेटी अदिति भी डॉक्टर बनने वाली है। यह फील्ड जनमानस की सेवा का सबसे बेहतर माध्यम है। इसके अलावा यह प्रोफेशन हमेेंं अच्छा लगता है और इसमें सम्मान भी बहुत मिलता है।

- डॉ। आशीष वाखलू

पिता को देख डॉक्टर बनने की मिली प्रेरणा

मेरे फादर डॉ। उमेश तरंग गुप्ता ने 1954 में केजीएमसी से पढ़ाई की थी। वह पीडियाट्रीशियन थे और उनके ग्रैंड फादर डॉ। पीएल गुप्ता भी सिविल सर्जन रह चुके हैं, चूंकि पिताजी को बचपन से मरीजों की मदद, उनके लिए परेशान होना, रात-रात पर पढ़ना आदि देखती थी, इसलिए उनसे प्रेरणा लेकर मैंने भी डॉक्टरी की पढ़ाई की और उनकी ही तरह पीडियाट्रीशियन बनी। मेरे हसबैंड प्रो। सुनील कुमार रेडियोलॉजिस्ट और हमारा बेटा डॉ। तुषार कुमार आप्थोलॉजिस्ट है। जब भी मरीज ठीक होकर और खुशी के साथ जाता है तो वह हमारी असली कमाई होती है।

- डॉ। माला कुमार, केजीएमयू

सर्जन बनने की मिली प्रेरणा

मेरे फादर डॉ। आर्शी लाल परिवार में पहले डॉक्टर थे। वह बतौर सर्जन कार्यरत रहे। बचपन से उनको काम करते देखता आ रहा था। उनको देखते हुए मैंने भी शुरू से ही सर्जन बनने की ठान ली थी, जिसके बाद मैं भी आर्थोपेडिक सर्जन बना और बतौर निदेशक लोकबंधु अस्पताल से रिटायर हो चुका हूं। हमारी तीसरी पीढ़ी यानि मेरी बेटी डॉ। अनुभा लाल भी सर्जन है। वह आर्थो डेंटिस्ट है। मेरा दामाद भी पेशे से डॉक्टर है। दरअसल, डॉक्टरी का पेशा अन्य से बेहद अलग और जुदा है। जब आपका पेशेंट ठीक होने पर आपको आशीर्वाद देता है तो वह ही आपकी असल पूंजी होती है।

डॉ। अरुण लाल, पूर्व डायरेक्टर, लोकबंधु अस्पताल

समाज की सेवा ही पहला काम

मैं बतौर प्लास्टिक सर्जन इस समय सिविल अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहा हूं। इससे पहले सीएमओ लखनऊ भी रह चुका हूं। अब मेरी बेटी डॉ। माधवी सिंह जोकि आई सर्जन और दामाद डॉ। सौमित सिंह जो नेफ्रोलॉजिस्ट है, अपनी सेवाएं दे रहे है। दरअसल, डॉक्टर बनकर आप असल में समाज की सेवा कर सकते है। जहां किसी मरीज को नया जीवन देना आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। मरीज को सही करना ही आपका असल मकसद होता है। इसके अलावा इसमें आपको सम्मान भी बहुत मिलता है।

-डॉ। आरपी सिंह, सिविल अस्पताल