लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी में नाट्य प्रस्तुतियां लगातार महंगी होती जा रही हैं, जिसके चलते नाट्य संस्थाओं को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। एक नाटक प्रस्तुत करने में ही 1 लाख से अधिक तक का खर्च हो जाता है। हाल ही में संगीत नाटक अकादमी और भारतेंदु नाट्य अकादमी द्वारा कुछ नाटकों में टिकट भी लगाना शुरू किया गया है, जिसके बाद कुछ निजी संस्थाओं ने भी इसे आजमाया। रंगकर्मियों के मुताबिक, दर्शक आते तो हैं, पर टिकट लगने से थियेटर का किराया महंगा हो जाता है, जिससे काफी परेशानी होती है।
टिकट कल्चर की हुई शुरुआत
बीते दिनों एसएनए के स्थापना दिवस और विदुषी गिरिजा देवी की याद में आयोजित कार्यक्रम में 20 व 50 रुपये के टिकट की व्यवस्था की गई थी। वहीं, बीएनए में भी चार दिवसीय नाट्य उत्सव के तहत 100 रुपये का टिकट लगाया गया था। जिसके बाद निजी नाट्य संस्थाओं ने भी ऐसा करना शुरू कर दिया। जहां मंचकृति व यायावर रंगमंडल समेत कई अन्य संस्थाएं टिकट लगाकर नाट्य मंचन कर चुकी हैं। हालांकि, इसमें दर्शक ज्यादा नहीं आये थे, जबकि टिकट दर बेहद कम थी।
थियेटर हो जाता है महंगा
वरिष्ठ रंगकर्मी संगम बहुगुणा बताते हैं कि नाटक फ्री में करने पर दर्शक आते हैं, पर इसका कोई विशेष फायदा नहीं मिलता है। इसके अलावा, अगर किसी नाटक में 100 रुपये के ऊपर टिकट लगाया जाता है तो थियेटर का किराया डबल हो जाता है, जिससे खर्चा और बढ़ जाता है। टिकट के बावजूद कम दर्शक आने से खर्च नहीं निकल पाता है। सरकार को चाहिए कि 500 रुपये तक के टिकट को इससे दूर रखा जाये। इसके अलावा, सरकार से आर्टिस्ट को ग्रांट मिलती है, पर प्रोडक्शन के लिए कोई ग्रांट नहीं है। बाकि अन्य मदों में जो मिलता है, वो आपकी कितनी पहुंच है, उस आधार पर मिलता है। ऐसे में, नाटक करना आजकल काफी महंगा होता जा रहा है।
लोग नहीं दिखाते हैं रुचि
वरिष्ठ रंगकर्मी राधेश्याम सोनी बताते हैं कि नाटक करने में बहुत चीजों पर खर्चा होता है। सबसे ज्यादा खर्चा मंच, एक्टर और साजो-सामान पर होता है। सबसे बड़ा दर्द यह है कि लोग भी नाटक देखने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं, जबकि पहले बड़ी संख्या में लोग नाटक देखने आते थे। कोई मशहूर या अंग्रेजी नाटक होता है तो लोग महंगा टिकट भी खरीदने को तैयार रहते हैं, पर जब लोकल स्तर पर होता है तो कोई रुचि नहीं दिखाता। केवल जान-पहचान के लोग ही अधिकतर बुलाने पर आते हैं। सरकार को भी चाहिए कि नाट्य संस्थाओं की मदद करे ताकि इस विधा को जीवित रखा जा सके।