लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी में स्कूली वाहनों से आए दिन हादसे हो रहे हैं और बच्चे घायल हो रहे हैं। हादसों का कारण यह है कि कई स्कूली वाहन नियमों की अनदेखी कर दौड़ते हैं और जिम्मेदार अधिकारी इन पर एक्शन ही नहीं लेते हैं। अधिकारी और पैरेंट्स अगर बच्चों की सुरक्षा के प्रति सतर्क रहें तो इस तरह के हादसों को रोका जा सकता है। बहुत से पैरेंट्स की लापरवाही का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वे न तो बच्चों के स्कूली वाहन की कंडीशन को देखते हैं और ना ही उसके ड्राइवर के बारे में जानकारी हासिल करते हैं।

केस 1

आनंद नगर मोड़ के पास वैन ने दो ई-रिक्शा में टक्कर मारी, जिससे 15 से अधिक बच्चे घायल हो गए। सभी को अस्पताल पहुंचाया गया।

केस 2

अगस्त माह में शहीद पथ के पास स्कूली वाहन टायर फटने से डिवाइडर से टकराकर पलट गया और हादसे में 12 बच्चे जख्मी हो गए।

केस 3

सितंबर में पारा के मुजफ्फरखेड़ा गांव के पास साइकिल को टक्कर मार स्कूली वैन दुकान से टकरा गई। वैन में सवार आठ बच्चे घायल हो गए।

पैरेंट्स चेक करें वाहन को

अधिकारियों का कहना है कि विभाग द्वारा समय-समय पर चेकिंग अभियान चलाया जाता है। पैरेंट्स को भी चाहिए कि वे जिस वाहन से बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं वह नियमों का पालन कर रहा है कि नहीं इसे देखें। पैरेंट्स के लिए जरूरी है कि वे चेक करें कि गाड़ी के कागज हैं कि नहीं, वह सुरक्षा मानकों पर फिट है कि नहीं। ड्राइवर का ट्रैक रिकार्ड कैसा है। वह रैश ड्राइविंग तो नहीं करता है। बच्चों से भी इसकी जानकारी पैरेंट्स को लेते रहना चाहिए। अगर ड्राइवर नशे में गाड़ी चलाता है या ओवर स्पीड करता है तो विभाग संग पुलिस को भी इसकी जानकारी दें। स्कूल प्रबंधन को भी इसके बारे मेंं सूचित करें।

ई-रिक्शा के फेर में न फंसे

कई बार कुछ पैरेंट्स चंद पैसे बचाने के लिए बच्चों को स्कूल पहुंचाने और लाने के लिए ई-रिक्शा लगवा देते हैं। जबकि ऐसा करना नियम विरुद्ध है। ई-रिक्शा बच्चों के लिए सेफ नहीं है। आए दिन इनके पलटने के मामले सामने आते रहते हैं। ई-रिक्शा में 10-10 बच्चों तक को बैठाया जा रहा है।

नियमों का करें पूरा पालन

अगर पैरेंट्स किसी निजी वाहन या कार पूलिंग से बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं तो यह सुनिश्चित करें कि वाहन चलाने वाले व्यक्ति का पुलिस वैरिफिकेशन है या नहीं। कहीं उससे पहले कोई हादसा तो नहीं हुआ है। बच्चों की सुरक्षा के लिए पैरेंट्स को ये जिम्मेदारी उठानी ही चाहिए। ड्राइवर का मोबाइल नंबर और घर का एड्रेंस पैरेंट्स के पास होना ही चाहिए।

इन बातों का रखना होगा ध्यान

-ड्राइवर और वाहन मालिक से आधार, मोबाइल नंबर, इमरजेंसी नंबर, पुलिस वेरिफिकेशन, ड्राइविंग लाइसेंस व परमिट एंड फिटनेस सर्टिफिकेट मांगें।

-स्कूली वाहन पर ड्राइवर और स्कूल की पूरी डिटेल हो।

-ड्राइवर अधिक क्षमता में बच्चे न बैठाए।

-बच्चों को महत्वपूर्ण संपर्क नंबर याद कराएं।

-बच्चों से ड्राइवर के व्यवहार आदि के बारे में पूछते रहें।

-समस्या होने पर तत्काल शिकायत दर्ज कराएं।

स्कूली वाहनों की चेकिंग जरूर होनी चाहिए। साथ ही पैरेंट्स की भी जिम्मेदारी है कि वो ड्राइवर, गाड़ी, जरूरी कागजात आदि की जानकारी रखें। चेक करें कि नियमों का पालन हो रहा है कि नहीं।

-प्रदीप श्रीवास्तव, अध्यक्ष, पैरेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन

पैरेंट्स को भी अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए सजग व सतर्क रहना चाहिए। समय-समय पर खुद भी देखना चाहिए कि गाड़ियां नियमों का पालन कर रही है कि नहीं। स्कूल और प्रशासन को भी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

-मनीष तिवारी

कार्रवाई करने की जिम्मेदारी आरटीओ विभाग की है। पैरेंट्स का भी कर्तव्य है कि वो भी देखें कि जिस गाड़ी से बच्चे जा रहे है वो कितनी सुरक्षित है। बच्चों से ड्राइवर के व्यवहार और चलाने के बारे में रोजाना पूछना चाहिए।

-विक्रम मिश्रा

बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पैरेंट्स, स्कूल और विभाग सभी की है। खासतौर पर पैरेंट्स को देखना चाहिए कि स्कूली वाहन फिट है कि नहीं। आए दिन हादसों के बाद गाड़ी के गड़बड़ी की बात पता चलती है।

-सरिता श्रीवास्तव