लखनऊ (ब्यूरो)। बदलती लाइफस्टाइल और भागदौड़ भरी जिंदगी के चलते आजकल पैरेंटिंग बेहद टफ जिम्मेदारी होती जा रही है। पैरेंट्स के वर्किंग होने के चलते ऑफिस वर्क और बच्चों को मैनेज करना उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है, जिसकी वजह से वे स्टे्रस, टेंशन, चिड़चिड़ेपन, नींद में कमी, डिप्रेशन आदि तक का शिकार हो रहे हैं। कई बार तो पैरेंट्स को यह भी लगने लगता है कि वे अच्छे पैरेंट्स नहीं हैं, जिसे मेडिकल टर्म में 'पैरेंटल बर्नआउटÓ कहा जाता है। इस तरह के केस राजधानी में भी लगातार सामने आ रहे हैं। पढ़ें अनुज टंडन की रिपोर्ट

छोटे शहरों में भी मिल रहे केस

केजीएमयू के पीडियाट्रिक साइकियाट्री विभाग के हेड डॉ। विवेक अग्रवाल ने बताया कि आजकल के हेक्टिक वर्क कल्चर में जो पैरेंट्स बहुत बिजी रहते हैं, उनके बच्चों को अगर कोई प्रॉब्लम होती है तो इसकी वजह से वे भी स्ट्रेस में आ जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे ऑफिस वर्क के बीच इस प्रॉब्लम को मैनेज नहीं कर पाएंगे। इस समस्या को पैरेंटल बर्नआउट कहा जाता है। यह समस्या पहले बड़े शहरों में ज्यादा देखने को मिलती थी। पर अब यह समस्या छोटे शहरों में भी देखने को मिल रही है क्योंकि वहां भी ज्यादातर पति-पत्नी वर्किंग हो रहे हैं।

होने लगती हैं कई समस्याएं

बच्चों को अगर डीएसडी या ऑटिज्म जैसी प्रॉब्लम होती है तो पैरेंट्स को उसे मैनेज करने में कठिनाई होती है। वे मैनेज करने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन उनसे हो नहीं पाता, जिससे उन्हें चिड़चिड़ापन, नींद की कमी, भावनात्मक कमजोरी, स्ट्रेस व डिप्रेशन तक की समस्या हो जाती है। यह समस्या खासतौर पर महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है क्योंकि बच्चे के साथ वे ही सबसे ज्यादा समय बिताती हैं।

बच्चों पर लगा देते हैं सारा जोर

वहीं, साइकियाट्रिस्ट डॉ। अभिनव पांडे बताते हैं कि आजकल पैरेंट्स अपने बच्चों की जरूरतों पर पूरा फोकस कर देते हैं, जिसके चलते वे खुद पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते, जिसकी वजह से उनकी मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है और वे वर्क व होम, दोनों को मैनेज नहीं कर पाते। यह उन्हें डिप्रेशन, अलगाव की भावना, भ्रम, जल्दी गुस्सा आना आदि की ओर ले जाता है।

पैरेंटल ट्रेनिंग दी जाती है

पैरेंटल बर्नआउट की शिकायत वाले लोगों को मदद के लिए साइकियाट्रिस्ट के पास जाना चाहिए, जहां उनको पैरेंटल ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें उनको वर्क व ऑफिस लाइफ कैसे मैनेज करनी है, बच्चे को कैसे मैनेज करना है आदि के बारे में बताया जाता है। वेस्टर्न कंट्रीज में सपोर्ट ग्रुप का भी चलन होता है, पर इंडिया में अभी इस तरह के सपोर्ट ग्रुप्स बहुत लिमिटेड हैं। इसे बढ़ावा देना चाहिए। पैरेंट्स को खुद के लिए भी समय निकालना चाहिए।

इन लक्षणों पर दें ध्यान

-शारीरिक थकावट

-भावनात्मक थकावट

-निराश होना

-चिड़चिड़ापन

-नींद में कमी

-अकेला महसूस होना

ऐसे करें बचाव

-पैरेंटल ट्रेनिंग

-सपोर्ट ग्रुप

-मेडिटेशन करना

-ब्रीथिंग एक्सरसाइज

जब लोग अपनी प्रोफेशनल लाइफ और बच्चों को सही तरह से मैनेज नहीं पाते तो उनमें पैरेंटल बर्नआउट की समस्या देखने को मिलती है। इस तरह के कई केस आजकल ओपीडी में आ रहे हैं। ऐसे लोगों को पैरेंटल ट्रेनिंग दी जाती है।

-डॉ। विवेक अग्रवाल, केजीएमयू

पैरेंटल बर्नआउट की समस्या धीरे-धीरे बढ़ रही है क्योंकि पैरेंट्स बच्चों पर ज्यादा फोकस करते हैं और खुद के लिए टाइम नहीं निकालते, जिसकी वजह से मेंटल हेल्थ पर काफी असर पड़ता है।

-डॉ। अभिनव पांडे, साइकियाट्रिस्ट