लखनऊ (ब्यूरो)। नए साल के बाद हिंदुओं का सबसे बड़ा पर्व मकर संक्रांति माना जाता है, जो सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के अवसर पर मनाई जाती है। इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दौरान सूर्य उत्तरायण में आते हैं, जिसके साथ ही सभी शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। मकर संक्रांति को लेकर मंदिरों से लेकर घरों तक में तैयारी तेज हो गई हैं। इस त्योहार को विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। इसे 'खिचड़ी' भी कहते हैं।
मकर राशि में प्रवेश करेंगे सूर्य
वर्ष में कुल 12 मकर संक्रांति होती हैं, लेकिन मकर और मेष संक्रांति का महत्व सबसे ज्यादा है। भगवान सूर्यदेव, देवगुरु बृहस्पति की राशि धनु से निकल अगली राशि मकर में प्रवेश करेंगे। इसमें खिचड़ी, गुड़-गजक और पतंगबाजी का विशेष महत्व है। इस पर्व को विशेष तौर पर नई फसलों के स्वागत के रूप में मनाया जाता है, इसलिए किसान भी इसे विशेष तौर पर मनाते हैं। इस दिन से शरद ऋतु धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है और बसंत का आगमन होने लगता है। जिससे ठंड की सिहरन कम होने के साथ गर्माहट बढ़ने लगती है। ऐसे में, हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व होता है।
खरमास समाप्त हो जाएगा
मकर संक्रांति के साथ ही खरमास समाप्त हो जाएगा, जिसके बाद शादी, मुंडन, गृह प्रवेश, गृह निर्माण आदि मांगलिक व शुभ कार्य शुरू हो जाएंगे। जिसके साथ ही बाजारों में ही रौनक बढ़ जाएगी। घरों में मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाएंगे। इस दिन दान-पुण्य का भी बहुत महत्व है। जहां लोग पवित्र नदियों में स्नान के बाद दान-पुण्य का काम करते हैं। जिसमें तिल और कंबल आदि के दान का विशेष महत्व होता है।
मकर संक्रांति के कई नाम
मकर संक्रांति को देश के अलग-अलग हिस्सों में अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार मनाया जाता है। असम में इसे भोगाली बिहु, मलयाली समाज द्वारा मकर ज्योति, सिंधी समाज द्वारा तिरमोरी नाम से मनाया जाता है। इसके अलावा महाराष्ट्र, बुंदेलखंड और बंगाल में भी अलग नाम से मनाया जाता है। सिख समाज इस एक दिन को लोहड़ी के तौर पर मनाता है।