लखनऊ (ब्यूरो)। डिजिटल एरा में साइबर फ्रॉड के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। मेडिकल सेक्टर भी इससे अछूता नहीं है। कई डॉक्टर नियमों को ताक पर रखकर बेखौफ पर्चे पर अपना नाम, डिग्री व रजिस्ट्रेशन नंबर लिखने से बच रहे हैं। जिससे चलते लोगों के लिए पता लगा पाना भी मुश्किल हो जाता है कि डॉक्टर असली है या नकली। वहीं, स्वास्थ्य विभाग भी शिकायत मिलने पर जांच व कार्रवाई की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लेता है, जिसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। ऐसे में, जिला स्वास्थ्य विभाग, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और इंडियन डेंटल एसोसिएशन की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है।
जानकारी नहीं दे रहे तो वे डॉक्टर नहीं
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, लखनऊ चैप्टर की प्रेसिडेंट डॉ। विनीता मित्तल ने बताया कि एमबीबीएस, एमडी, एमएस आदि किया हर डॉक्टर रजिस्टर्ड होता है और वह अपना नाम, डिग्री व रजिस्टे्रशन नंबर आदि पर्चे पर लिखता है। मेरे अनुसार, अगर कोई ऐसा नहीं करता है तो वह डॉक्टर ही नहीं है। बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो डॉक्टर नहीं है, लेकिन फिर भी प्रैक्टिस करते मिलते हैं। ऐसे लोगों पर सरकार को सख्त एक्शन लेना चाहिए। एसोसिएशन भी समय-समय पर लोगों को जागरूक करने के साथ फ्रॉड डॉक्टर्स के खिलाफ पहल करने का काम करता है।
ऑनलाइन सर्च एक बड़ी समस्या
डॉ। विनीता मित्तल आगे बताती हैं कि कोरोना के बाद से ऑनलाइन सर्च का चलन बढ़ गया है। सरकार ने भी कई वेबसाइट और एप लॉन्च की हैं। बड़े कार्पोरेट अस्पताल तो सही होते हैं, पर जो सिंगल क्लीनिक या छोटे इस्टैब्लिशमेंट होते हैं, उनको लेकर थोड़ा सतर्क रहना चाहिए। लोगों को ऑनलाइन सर्च के दौरान कौन डॉक्टर है, कौन सी वेबसाइट है, किस विधा का है आदि के बारे में अन्य माध्यमों से भी जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए ताकि वह किसी तरह के झांसे में न फंसे। आईएमए भी समय-समय पर लोगों को अवेयर करने का काम करता रहता है और झोलाछाप डॉक्टर्स के खिलाफ लड़ाई में हमेशा आगे रहता है।
डेंटल काउंसिल से शिकायत करें
इंडियन डेंटल एसोसिएशन, लखनऊ चैप्टर के प्रेसिडेंट डॉ। संजीव श्रीवास्तव बताते हैं कि डेंटल काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमानुसार सभी डॉक्टर को पर्चे पर नाम, डिग्री व रजिस्ट्रेशन नंबर आदि लिखना जरूरी है। अगर कोई डेंटिस्ट ऐसा नहीं करता है तो मरीज डेंटल काउंसिल में शिकायत कर सकता है। जहां जांच के बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाती है। वैसे सभी डॉक्टर पूरी जानकारी लिखते हैं, अगर कोई नहीं लिख रहा है तो मरीज को इसके बारे में उसी वक्त पूछना चाहिए। अगर डॉक्टर मना करे या आनाकानी करे तो तत्काल शिकायत दर्ज करायें। एसोसिएशन भी लगातार मरीजों को उनके अधिकारों के प्रति और फ्रॉड से बचने के लिए जागरूक करता रहता है।
सीएमओ डॉ। एनबी सिंह से सवाल-जवाब
सवाल- अगर पर्चे पर डॉक्टर का नाम, डिग्री व रजिस्ट्रेशन नहीं तो मरीज क्या करे?
सीएमओ- अगर कोई डॉक्टर ऐसा करता है तो यह गलत है। मामला संज्ञान में आता है तो जांच करने के बाद नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
सवाल- क्या कार्रवाई के लिए शिकायत का इंतजार किया जाए?
सीएमओ- राजधानी में बहुत से डॉक्टर हैं। समय-समय पर जांच भी की जाती है, लेकिन शिकायत मिले तो ज्यादा बेहतर रहता है।
सवाल- नियम विरुद्ध मिलने पर सजा का क्या प्रावधान है?
सीएमओ- अगर पर्चे पर जानकारी नहीं है तो जांच के दौरान पूछा जाता है कि ऐसा क्यों किया गया। अगर जांच में पर्चा गलत मिलता है तो उसे झोलाछाप डॉक्टर माना जाता है। ऐसे में 6 माह से लेकर 3 साल तक की जेल की सजा का प्रावधान है।
सवाल- क्या फोन पर शिकायत की जा सकती है?
सीएमओ- लिखित में शिकायत मिले तो ज्यादा बेहतर होता है। इससे कार्रवाई करने में आसानी होती है। दरअसल, कई बार शिकायतकर्ता बाद में सामने नहीं आता है।
सवाल- मरीज आखिर कैसे अपना बचाव करें?
सीएमओ- मरीजों को ऑनलाइन सर्च करने में सतर्कता बरतनी चाहिए। अगर रजिस्ट्रेशन नंबर नहीं है तो ऐसे डॉक्टर से इलाज कराने से बचना चाहिए। अगर कहीं कोई कमी लगे तो तुरंत सीएमओ ऑफिस में शिकायत दर्ज करानी चाहिए। इसको लेकर लोगों को समय-समय पर जागरूक भी किया जाता है।