लखनऊ (ब्यूरो)। अगर आप भी अपने बच्चे को लेकर ओवर प्रोटेक्टिव हैं, उससे जुड़े फैसले खुद लेेते हैं, बच्चे को खुद कुछ सीखने नहीं देते, तो यह बच्चों की सेल्फ एस्टीम को लो करने के साथ उनमें कई अन्य समस्याएं भी खड़ी कर सकता है, जिसे साइकोलाजी की भाषा में हेलीकॉप्टर या ओवर पैरेंटिंग कहा जाता है। यह समस्या खासतौर पर सिंगल चाइल्ड या न्यूक्लीयर फैमिली में ज्यादा देखने को मिलती है। इस तरह के मामले केजीएमयू के चाइल्ड साइकियाट्री विभाग में लगातार आ रहे हैं।

सभी निर्णय खुद ले लेते हैं

केजीएमयू के चाइल्ड साइकियाट्री विभाग के डॉ। अमित आर्य बताते हैं कि ओवर पैरेंटिंग, जिसे हेेलीकॉप्टर पैरेंटिंग भी कहते है, यह पैरेंटिंग का वह स्टाइल है जहां पैरेंट्स बच्चों की लाइफ में ज्यादा इंगेज रहते हैं। 'यह कर लो, यह न करो, वहां वो मत खाना बीमार पड़ जाओगे, दूसरे के यहां ऐसा करना या न करनाÓ आदि पहले से ही बताने लगते हैं, यानि एक तरह से ऑथेरिटेरियन स्टाइल का बर्ताव करते हैं। वे बच्चों को चैलेंज फेस नहीं करने देते हैं। खुद उनसे जुड़े सभी निर्णय लेकर उनको बस बता देते हैं। उनको लगता है कि वे अपनी तरफ से अच्छा कर रहे हैं ताकि बच्चे को कोई तकलीफ न हो, वह उदास न रहे, वह चिंता या गुस्सा का शिकार न हो।

फेस नहीं कर पाते रिजेक्शन

डॉ। अमित आगे बताते हैं कि ओवर पैरेंटिंग के कारण बच्चे आगे चलकर रिजेक्शन और फेलियर को सही से नहीं ले पाते हैं। क्योंकि पैरेंट्स उनको फ्रस्टे्रशन को एसेप्ट करना नहीं सीखा पाते। ऐसे में बच्चे बड़े होकर फेल होते हैं तो गलत कदम उठा लेते हैं, क्योंकि लो सेल्फ इस्टीम और सिचुएशन से जल्दी उबर नहीं पाते और खुद महसूस करते हैं कि कुछ कर नहीं सकते। वे प्रेशर हैंडल नहीं कर पाते, जिससे उनके आत्मविश्वास को नुकसान पहुंचता है। ओवर पैरेंटिंग से बच्चों में स्ट्रेस, एंग्जायटी और डिप्रेशन होने का खतरा ज्यादा रहता है।

मेंटली हो जाते हैं कमजोर

डिजीटल एरा में पहली बार पैरेंट्स बने लोग काफी ओवर प्रोटेक्टिव रहते हैं। उनकी सोच होती है कि बच्चा स्कूल जाये तो हर चीज में सेलेक्ट हो और हमेशा अच्छा करे। यह समस्या सिंगल चाइल्ड फैमिली में 60-70 पर्सेंट तक देखी जाती है। वहीं, जिनके दो या दो से ज्यादा बच्चे होते हैं, वहां थोड़ा कम असर देखने को मिलता है, इसीलिए बच्चों को थोड़े चैलेंज फेस करने दें। फेलियर और रिजेक्शन फेस करने दें। अपनी एंग्जायटी और एक्सपेक्टेशन को बच्चों पर न थोपें। ऐसा करने से बच्चा साइकोलॉजिकली कमजोर होता है।

चार तरह की पैरेंटिंग होती हैं

डॉ। अमित आर्य बताते हैं कि पैरेंटिंग चार तरह की होती हैं

-पहली है आथारेटेरियन पैरेंटिंग यानि कड़े रूल वाली, जिन्हें बच्चे फॉलो करते है। यहां बच्चा कोई सवाल नहीं करता और गलती करने पर सजा मिलती है। ऐसे बच्चे ठीक तो होते हैं, लेकिन उनमें अग्रेशन, शायनेस, सोशल प्राब्लम और खुद निर्णय न ले पाने की समस्या होती है।

-दूसरी है आथॉरेटेटिव पैरेंटिंग यानि क्लोज और नर्चरिंग रिलेशन बनाते हैं। इसमें गाइडलाइन तो पैरेंट्स बनाते हैं, लेकिन वैसा न करने पर सजा जो होनी चाहिए वह नहीं होगी यानि कुछ सहूलियतें जैसे टीवी, खेलने का टाइम कम कर सकते हैं। इसमें बच्चे को डांटना व मारना नहीं होता है। बच्चों को निर्णय में शामिल करते हैं कि क्या करेंगे क्या नहीं करेंगे। ये बच्चे मेंटली हेल्दी, इमोशनल, कॉन्फिडेंट, रिस्पांसिबिल होते हैं और जजमेंट अच्छा ले पाते हैं।

-तीसरी है पर्मेसिव पैरेंटिंग यानि बच्चों के लिए सब करते जाते हैं, लेकिन उम्मीदें कम रखते हैं। वे ओवर फ्रेंडली हो जाते हैं। ऐसे बच्चों में सेल्फ इस्टीम और सोशल स्किल थोड़ी कम हो जाती हैं।

-चौथी है अनइन्वाल्वड पैरेंटिंग यानि बच्चे को खुली छूट। इसमें पैरेंट्स बच्चों की लाइफ में ज्यादा इन्वाल्व नहीं होते है और बच्चे को बहुत ज्यादा आजादी रहती है। ऐसे बच्चे इमोशंस कंट्रोल नहीं कर पाते और उन्हें एकेडमिक और लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप में समस्या आती है।

ओवर पैरेंटिंग की समस्या सिंगल चाइल्ड या न्यूक्लीयर फैमिली में ज्यादा देखने को मिलती है। बच्चों को शुरुआत से छोटे-छोटे निर्णय लेने दें। इससे उनको बड़े होकर निर्णय लेने में आसानी होती है।

-डॉ। अमित आर्य, केजीएमयू