लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी के छोटे-बड़े अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं अकसर होती रहती हैं। जिसके बाद जांच कमेटी तो बनाती हैं, लेकिन उनका आग से बचाव के इंतजामों पर कितना असर होता है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। आग की घटनाओं से हर बार मरीजों और तीमारदारों की जान सांसत में पड़ जाती है। संडे को भी क्वीन मेरी अस्पताल के बेसमेंट में आग लगी, जिससे वहां अफरातफरी मच गई। अस्पताल में मौजूद कर्मचारियों ने सभी को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। मौके पर पहुंचे फायर कर्मियों ने 15 मिनट में आग पर काबू पा लिया।

सुबह चार बजे लगी आग

एफएसओ चौक पुष्पेंद्र कुमार के मुताबिक, क्वीन मेरी अस्पताल के बेसमेंट में संडे तड़के चार बजे आग लग गई थी। दमकल की तीन गाड़ियां अस्पताल भेजी गईं। आग बेसमेंट में रखे मेडिकल उपकरणों में लगी थी। अस्पताल के कर्मचारी ने सबसे पहले धुएं में फंसे लोगों को बाहर निकाला। इसके साथ ही उपकरणों की मदद से आग पर काबू पाने का प्रयास किया गया। इससे आग अन्य स्थानों पर नहीं फैल सकी, लेकिन बेसमेंट में धुआं भर जाने के कारण लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी।

शार्ट सर्किट से लगी आग

एफएसओ ने बताया कि टीम ने आननफानन खिड़कियां खोलीं और स्मोक एग्जास्टर की मदद से धुआं बाहर निकाला। आग लगने का कारण शार्ट सर्किट बताया जा रहा है। फिलहाल मामले की जांच की जा रही है।

माकड्रिल का हुआ फायदा

एफएसओ चौक के मुताबिक, दमकल पहले अस्पताल प्रशासन के साथ माकड्रिल कर चुकी थी। इसी कारण अस्पताल कर्मियों ने सिखाए गए तरीकों से एक बड़ी घटना होने से रोक ली। इससे आग नहीं फैली और 15 मिनट में ही आग बुझा ली। वहीं केजीएमयू के प्रवक्ता प्रो। सुधीर सिंह के मुताबिक, हादसे में कोई जनहानि नहीं हुई। आग लगने का कारण अभी स्पष्ट नहीं हो सका है।

पहले भी अस्पतालों में लग चुकी है आग

19 मई 2018

निराला नगर स्थित ग्लोब हॉस्पिटल में एसी में शॉर्ट सर्किट के चलते आग लगी थी। भगदड़ के दौरान कई तीमारदार जान बचाने के लिए खिड़की से पार्किंग की तरफ कूद गए, जिसमें तीन महिलाओं सहित कई लोगों को चोटें आईं।

18 दिसंबर 2023

पीजीआई अस्पताल में आग लगने से हड़कंप मच गया था। आग अस्पताल के ओटी (ऑपरेशन थियेटर) में लगी। इस घटना में दो लोगों की मौत हो गई। आग अस्पताल के पुराने ओपीडी भवन में लगी थी। यहां एक वेंटिलेटर फट गया था। पीजीआई में अग्निकांड में एक महिला और तीन महीने के एक बच्चे की मौत हो गई।

2 जनवरी 2024

डॉ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल की पैथोलॉजी में आग लगी थी। करीब 1.30 बजे सिविल अस्पताल की पैथोलॉजी में अचानक से धुआं भरने लगा था। धुआं बढ़ता होता देख पैथोलॉजी में मौजूद लोग बाहर की ओर भागने लगे थे। आग से पैथोलॉजी में रखे 10 मरीजों के नमूने खराब हो गए थे।

27 दिसंबर 2016

केजीएमयू के क्वीन मेरी के फर्स्ट फ्लोर पर बने एनएनयू में आग लगने से 12 दिन का नवजात झुलस गया था। वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर था। किसी तरह स्टाफ ने उसे बचाया।

16 जुलाई 2017

केजीएमयू ट्रामा सेंटर के सेकेंड फ्लोर पर भीषण आग लग गई थी। जहां करीब 10 फायर ब्रिगेड की गाड़ियों ने आग पर काबू पाया था। उस दौरान अस्पताल का फायर फाइटिंग सिस्टम फेल साबित हुआ था।

6 जून 2022

लोहिया संस्थान के फोर्थ फ्लोर पर आग लग गई थी। आग फॉल्स सीलिंग में लगी थी। हालांकि, कोई हताहत नहीं हुआ था।

समय पर काम नहीं करते फायर फाइटिंग सिस्टम

राजधानी के विभिन्न सरकारी और निजी अस्पतालों में आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं। सभी अस्पताल अपने यहां पुख्ता फायर फाइटिंग सिस्टम होने का दावा करते हैं। पर जब आग लगती है तो उस समय सिस्टम जैसे अलार्म, वॉटर स्प्रिंक्लर आदि काम ही नहीं करते हैं। जैसे बीते साल केजीएमयू के शताब्दी फेज-2 में आग लगने के बाद अलार्म बजा ही नहीं। धुआं निकलने के बाद कर्मचारियों को इसकी जानकारी हुई और किसी तरह आग पर काबू पाया गया। इतना ही नहीं, आग लगने की घटना के दौरान स्टाफ के ट्रेंड न होने की बात भी सामने आती है। जिसके चलते आग पर काबू पाने में दिक्कतें हुई थीं।

छोटे अस्पतालों में अधिक दिक्कत

सीएमओ ऑफिस के तहत करीब 1200 प्राइवेट अस्पताल रजिस्टर्ड हैंै। राजधानी में दो हजार से अधिक अस्पतालों का संचालन हो रहा है। इसमें 600 से अधिक अस्पताल दो फ्लोर से अधिक के हैं। नियमानुसार सभी छोटे-बड़े अस्पतालों में आग से बचाव के पुख्ता बचाव के संसाधन होने चाहिए। पर राजधानी में सबसे खराब हालत छोटे अस्पतालों की है। इन अस्पतालों में आग से बचाव का कोई साधन नहीं है। कई अस्पतालों के तो आग बुझाने के संसाधन पुराने हैं और कई जगहों पर तो रैंप तक नहीं हैं। पर कई बार सीएमओ की टीम के औचक निरीक्षण में यह तमाम खामियां मिल चुकी हैं। पर इसके बावजूद इन अस्पतालों में सुधार नहीं हो रहा है। ऐसे में ये अस्पताल मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। इनपर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जाती है।