लखनऊ (ब्यूरो)। इकोकॉर्डियोग्राम जांच की मदद से गर्भ में पल रहे शिशु की दिल की बीमारियों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। इस जांच से 50-70 प्रतिशत तक दिल की असमानताओं का पता लगाया जा सकता है। साथ ही गर्भ में ही इलाज कर समस्या पर काबू पा सकते है। यह जानकारी शुक्रवार को केजीएमयू रेडियोडायग्नोसिस विभाग के हेड डॉ। अनित परिहार ने राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ पीडियाट्रिक रेडियोलॉजी की कान्फ्रेंस के दौरान दी।

गर्भ में ही इलाज किया जा सकता है

कॉन्फ्रेंस के दौरान डॉ। अनित परिहार ने बताया कि गर्भस्थ शिशु में कई कारणों से दिल का विकास नहीं हो पाता है। ऐसे में 18 से 24 हफ्ते के गर्भस्थ की जांच कर हम दिल की 50-70 फीसदी बीमारियों व कमियों का पता लगा सकते हैं। जिसे दूर को गर्भस्थ की जान बचाई जा सकती है। इसके अलावा, डीटीआई जैसी तकनीकें मस्तिष्क के विकास और बीमारियों जैसे सेरेब्रल पाल्सी, पेरिवेंट्रिकुलर ल्यूकोमलेसिया और ल्यूकोडिस्ट्रॉफीज का पता लगाकर शुरुआत में ही इलाज किया जा सकता है। इस दौरान डॉ। पीके श्रीवास्तव व डॉ। सौरभ कुमार ने गर्भ में भ्रूण असमानताओं के इलाज में रेडियोलॉजी संबंधी जांचों की उपयोगिता पर चर्चा की।

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40 के बाद कब्ज बढ़े तो कराएं थायराइड जांच

थायराइड की समस्या हर 10 में से तीन लोगों को अपनी चपेट में ले रही है। यह बीमारी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा होती है। कुछ लोगों में हार्मोन इम्बैलेंस तो कुछ लोगों में थायराइड ग्रंथि बढ़ने से यह समस्या होती है। यह जानकारी केजीएमयू इंडोक्राइन सर्जरी विभाग के हेड डॉ। आनंद मिश्र ने शुक्रवार को हुई कॉन्फ्रेंस के दौरान दी। वहीं, डॉ। कुलरंजन ने कहा कि अगर 40 साल की उम्र के बाद अचानक कब्ज की समस्या बढ़ जाए तो तुरंत थायराइड की जांच करानी चाहिए। इसके अलावा अनियमित मासिक धर्म, जोड़ों या मांसपेशियों में दर्द, चेहरे पर पीलापन या शुष्क त्वचा आदि भी थायराइड की समस्या से हो सकता है। वहीं, आस्ट्रेलिया के डॉ। जेम्स ली ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से एंडोक्राइन सर्जरी काफी आसान हो गई है। क्योंकि इससे मरीज को अधिक तकलीफ नहीं होती है और ऑपरेशन से गले में कोई निशान भी नहीं पड़ता है।

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जहरखुरानी में पीड़ित को उल्टी कराने से बचें

अगर कोई व्यक्ति जहरखुरानी का शिकार हो गया है तो उसे जबरदस्ती उल्टी कराने से बचना चाहिए। दरअसल, ऐसा करने से दूषित तरल पदार्थ गले में फंसने से जान जाने तक का खतरा हो सकता है। हालांकि, मरीज को खुद से उल्टी हो जाये तो ठीक है। यह सलाह शुक्रवार को केजीएमयू फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग की डॉ। शिउली ने टॉक्सिकोलॉजी सप्ताह टॉक्सिकोमेनिया के दौरान दी। विभाग के हेड डॉ। अनूप वर्मा ने कहा कि लोगों को कीटनाशक, चूहे मारने वाली दवा व अन्य जहरीले पदार्थ को बच्चों की पहुंच से दूर रखा जाना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति गलती से जहरीला पदार्थ खा या पी लेता है तो तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए। समय पर इलाज से काफी हद तक मरीज की जान बचाई जा सकती है। इस मौके पर पोस्टर व वाद-विवाद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया।