लखनऊ (ब्यूरो)। ऑर्गन डोनेशन से गंभीर मरीजों को जीवनदान मिल सकता है, पर इसको लेकर जागरूकता कम होने की वजह से आज भी रोज बड़ी संख्या में देशभर में अपनी जान गंवानी पड़ती है। ऑर्गन डोनेशन की बात करें तो भारत में यह दर प्रति 10 लाख की आबादी में महज 0.16 पर्सेंट ही है, जो बेहद चिंता का विषय है। राजधानी में केजीएमयू, संजय गांधी पीजीआई और लोहिया संस्थान में ही ऑर्गन ट्रांसप्लांट की सुविधा है, जबकि कई निजी अस्पतालों में भी यह सुविधा मिल जाती है। डोनर न होने की वजह से हजारों की संख्या में मरीज ट्रांसप्लांट की राह देख रहे हैं।

नौ लोगों की बचाई जा सकती है जान

ऑर्गन डोनेशन की बात करें तो इसमें हार्ट, लंग, किडनी, लिवर, कार्निया, पैनक्रियाज और आंते शामिल है। इसके अलावा स्किन भी डोनेट की जा सकती है। एक मृतक, जिसे कैडेवर कहा जाता है, अगर उसके ऑर्गन डोनेट किए जाएं तो वह नौ लोगों की जान बचा सकता है। पर कैडेवर डोनर की संख्या बेहद कम है। वहीं, लाइव डोनर से केवल किडनी और लिवर ही लिया जा सकता है, जो केवल परिवार का ही सदस्य हो सकता है। ऑर्गन डोनेशन तभी संभव है जब मरीज की मौत अस्पताल में हुई हो। घर पर मौत होने पर केवल कार्निया और स्किन ही समयावधि के अंदर लिया जा सकता है।

निजी में खर्च काफी ज्यादा

अगर राजधानी में ऑर्गन ट्रांसप्लांट की बात करें तो केवल केजीएमयू, पीजीआई और लोहिया संस्थान में ही इसकी सुविधा है। इसके अलावा, शहर के बड़े प्राइवेट अस्पतालों में भी ट्रांसप्लांट की सुविधा मिलती है। निजी में जहां ट्रांसप्लांट का खर्च 15 लाख से अधिक होता है, तो वहीं सरकारी में यह खर्च करीब एक तीहाई ही होता है। जहां किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट का खर्च अलग-अलग है। करीब 95 फीसदी मरीज निजी में महंगा ट्रांसप्लांट कराने में असमर्थ होते हैं, जिसकी वजह से मरीजों की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है।

हजारों लोग ट्रांसप्लांट के लिए वेटिंग में

प्रदेश में करीब 50 हजार से अधिक मरीज अकेले किडनी ट्रांसप्लांट की कतार में हैं, जबकि लिवर के करीब 25 हजार से अधिक मरीज इंतजार कर रहे हैं। वहीं, राजधानी के तीनों सरकारी संस्थान में 1500 से अधिक मरीज किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट होने का इंतजार कर रहे हैं, जहां पीजीआई में हर साल 150 और लोहिया में करीब 35 मरीजों में किडनी ट्रांसप्लांट हो रहा है। केजीएमयू में बीते एक साल से किडनी ट्रांसप्लांट ठप है। ऐसे में मरीजों की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही हैं। वहीं, राजधानी समेत पूरे प्रदेश में किसी भी संस्थान में हार्ट व लंग ट्रांसप्लांट नहीं हुआ है, जबकि पीजीआई और केजीएमयू में डॉक्टर्स को इसकी ट्रेनिंग दी जा चुकी है।

एक्ट के तहत ही ऑर्गन डोनेशन

ऑर्गन डोनेशन और ट्रांसप्लांट, मानव अंग प्रतिरोपण अधिनियम 1994 के तहत आता है। जो लाइव डोनर एवं ब्रेन डेड को ऑर्गन डोनेट करने की अनुमति देता है। वहीं, 2011 में संशोधन में ऊतक दान को भी इसमें अनुमति दी गई है। भारत में अंग व ऊतक दान को बढ़ाने के लिए नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन का गठन किया गया है। वहीं, राज्यों में इसे बढ़ाने के लिए स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन का गठन किया गया है। प्रदेश में इसका नोडल संजय गांधी पीजीआई को बनाया गया है। जो लगातार इस ओर काम कर रहा है। जहां वेबसाइट या मेडिकल संस्थान में जाकर आप ऑर्गन या टिश्यू डोनेशन का फार्म भर सकते है।

सरकारी के मुकाबले निजी में कैडेवर डोनर ज्यादा

ज्यादातर ऑर्गन डोनेशन कैडेवर यानि मृतक से ही लिए जाते हैं, पर राजधानी में सरकारी के मुकाबले निजी अस्पतालों में कैडेवर से ऑर्गन डोनेशन की स्थिति बहुत बेहतर है। आलम यह है कि निजी अस्पतालों द्वारा पीजीआई और केजीएमयू तक में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए भेजा जाता है। वहीं, सरकारी में परिवार द्वारा ऑर्गन डोनेशन की संख्या अधिक है। ऐसे में लोगों को बड़ी संख्या में आगे आकर ऑर्गन डोनेशन करना चाहिए। प्रदेश सरकार द्वारा इसके लिए डोनर के इलाज को फ्री करने की योजना भी लागू की गई है। ताकि अधिक से अधिक लोग ऑर्गन डोनेट कर सकें।

हजारों मरीज ट्रांसप्लांट की उम्मीद लगाये हुए हैं, पर ऑर्गन डोनेशन की कमी की वजह से इसमें दिक्कत आ रही है। लोगों को ऑर्गन डोनेशन के लिए अवेयर करना बेहद जरूरी है।

-प्रो। आरके धीमन, निदेशक, संजय गांधी पीजीआई