लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू के पीडियाट्रिक विभाग के डॉक्टर्स द्वारा गिलियन बैरे सिंड्रोम जैसी दुर्लभ बीमारी से पीड़ित एक बच्ची का सफल इलाज कर उसे दूसरे जीवन देने का काम किया है। बच्ची का अस्पताल में करीब 7 माह तक इलाज चला। अब बच्ची पूरी तरह से ठीक है और उसे डिस्चार्ज कर दिया गया है। वीसी प्रो। सोनिया नित्यानंद ने पूरी टीम को बधाई दी है।

बच्ची की हालत खराब थी

डॉ। शालिनी के मुताबिक, जब मदीहा अस्पताल आई तो उसके हाथ-पैर काम नहीं कर रहे थे और उसे सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी। इसलिए उसे वेंटिलेटर पर रखा गया। उसे आईवीआईजी थेरेपी दी गई, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में उसे एक और खुराक दी गई। साथ ही पीआईसीयू में रहते हुए उसे सेप्टिक शॉक और वेंटिलेटर से जुड़ा निमोनिया भी हो गया था। उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, इसलिए न्यूरोलॉजी विभाग से सलाह ली गई। उन्होंने सीएसएफ परीक्षण और प्लाज्माफेरेसिस की सलाह दी। प्लाज्माफेरेसिस के 3 चक्र किए गए। संक्रमण के अनुसार एंटीबायोटिक्स को बदला गया। लंबे समय तक इंटुबेशन की जरूरत को देखते हुए ट्रेकिओस्टॉमी की गई। बच्चे को दौरे भी पड़े, जिसके लिए आवश्यक उपचार किया गया।

सात माह तक चला इलाज

शुरुआत में बच्चे को कमजोरी के कारण ट्यूब के जरिए भोजन दिया गया। मरीज को हाई ब्लड प्रेशर हो गया इसलिए उसे मुंह से लेने वाली दवाएं दी गईं। लगातार तेज धड़कन के लिए भी इलाज किया गया। धीरे-धीरे बच्चे के हाथों की कमजोरी में सुधार हुआ और उसने मुंह से खाना शुरू कर दिया। मरीज लगभग 14 दिनों तक वेंटिलेटर के बिना रहा। लेकिन सांस लेने में परेशानी के कारण उसे फिर से वेंटिलेटर पर रखा गया। धीरे-धीरे उसे वेंटिलेटर से हटाया गया और सामान्य हवा पर रखा गया। बच्चा लगभग 5 महीने तक ट्रेकिओस्टॉमाइज्ड था। जिसे बाद में पट्टी बांधकर बंद कर दिया गया। बच्चे को आहार चार्ट दिया गया। निचले अंगों में आई जकड़न के लिए फिजियोथेरेपी और पुनर्वास चिकित्सा की सलाह ली गई। अस्पताल में 7 महीने तक इलाज के बाद बच्चे की स्थिति में सुधार हुआ और अब उसे छुट्टी दी जा रही है।