लखनऊ (ब्यूरो)। बच्चों मे समय के साथ समस्याएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। इसका मुख्य कारण सिंगल फैमिली का चलन, परिवार के अन्य सदस्यों से दूरी, अधिक स्क्रीन टाइम आदि हैं। ये बच्चों के विकास को रोक रहे हैं। बच्चों में ओबेसिटी, एकाग्रता की कमी और दूसरों के प्रति आदर न होना आम बात होती जा रही है। जो आगे चलकर पैनडेमिक की समस्या बनती जा रही है। यह बातें इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडियाट्रिशियन की यूपी ब्रांच द्वारा आईजीपी, गोमतीनगर में हुई 45वें नेशनल कॉन्फ्रेंस के दौरान देशभर आये पीडियाट्रिशियंस ने बताईं।


ह्यूमन लर्निंग गिरती जा रही
अब बच्चे स्क्रीन पर इतना बिजी हैं कि दूसरों के साथ उन्हें कैसा व्यवहार करना है, इसका तजुर्बा ही उन्हें नहीं मिल रहा है। उनकी ह्यूमन लर्निंग लगातार गिरती जा रही है। जिससे बड़े होने पर बिहेवियर जैसे शार्ट टैंपर, अग्रेसिव, आवेश में आकर खुद को या दूसरे का हार्म करना आदि देखने को मिल रहा है। टालरेंस हम स्क्रीन से नहीं आस-पड़ोस से सीखते हैं। पहले ज्वाइंट फैमिली के चलते बच्चे पड़ोसी, रिश्तेदार, दोस्त आदि से कैसा व्यवहार करना चाहिए आसानी से पांच साल की उम्र तक सीख जाते थे। अब ऐसा नहीं हो रहा है। अब एडीएचडी व ऑटिज्म बढ़ रहा है। बच्चे चिड़चिड़े और गुस्सैल होते जा रहे हैं। उनका फोकस बंटा हुआ है। जिसके चलते आगे आने वाले समय में उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
- डॉ। समीर दलवाई, मुंबई

सोशल स्किल में आ रही कमी
पैनडेमिक के बाद बच्चों में ऑटिज्म कामन रूप से दिख रहा है। इसका मुख्य कारण टू-वे कम्युनिकेशन लगातार कम होना है। न्यूक्लियर फैमिली में बच्चे अपनी बात किससे कहें, यह समस्या आ रही है। इससे बच्चों में सोशल स्किल डेवलप नहीं हो रही है। पहले जहां देश में कुपोषण की समस्या थी, वहीं अब शहरों में सुपोषण की समस्या दिख रही है। शहरों में बच्चों की फूडिंग हैबिट बदल गई है। इस समस्या के कई केस लगातार सामने आ रहे हैं। गलत फूडिंग हैबिट से बच्चे मोटे हो रहे हैं और पेरेंट्स इसी में खुश हैं कि उनका बच्चा गोल-मटोल है। जबकि यह बच्चे की ओवरआल हेल्थ के लिए खतरनाक है। बच्चे आउटडोर एक्टिविटी नहीं करते हैं और पढ़ाई के कारण पेरेंट्स भी बच्चों को इसके लिए टोकते नहीं हैं। जिसके चलते बच्चों में डायबिटीज की समस्या भी बढ़ रही है।
- डॉ। आशीष प्रकाश, गाजियाबाद

दूसरों के प्रति खत्म हो रहा लिहाज
सोशल मीडिया पर अधिक टाइम बिताने से बच्चों में अटेंशन डेफेशियंसी दिख रही है। छोटे बच्चों को रील्स की लत लग गई है। उनसे मोबाइल लो तो वे रिएक्ट करने लगते हैं। ऐसे में पढ़ाई के प्रति भी उनका मोह कम होता जा रहा है और उनका दूसरों के प्रति लिहाज खत्म होता जा रहा है। वे किसी के साथ भी किसी तरह का व्यवहार कर देते हैं। पेरेंट्स भी इसे क्यूट बिहेवियर बोलकर उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हैं। यही बच्चे जब बड़े होते हैं तो वे दूसरों का लिहाज ही बंद कर देते हैं। वहीं बुक्स का वजन इनका अधिक हो गया है कि बच्चों की रीढ़, कंधा व गर्दन डिफार्म हो रही है। अगर आपकी रीढ़ पर एक किलो वजन बढ़ता है तो आपकी बॉडी पर पड़ रहा वजन 25 किलो बढ़ जाता है।
- डॉ। रवि खन्ना, बरेली