लखनऊ (ब्यूरो)। सिस्टम की बेपरवाही, स्कूलों की अनदेखी और पैरेंट्स की मजबूरी के बीच स्कूली बच्चे राजधानी में हर दिन जोखिम भरा सफर कर रहे हैं। नियम कायदे बना दिए गए हैं फिर भी आए दिन स्कूली वाहन हादसे के शिकार हो रहे हैं। सरकारी मशीनरी ने अनफिट स्कूल व्हीकल के लिए गाइडलाइन बनाई है, पर उसे ठीक से फॉलो नहीं किया जा रहा। स्कूल मैनेजमेंट ऐसे व्हीकल को लेकर कोई स्थिति साफ नहीं करता और न ही कोई जिम्मेदारी लेता है। वहीं, पैरेंट्स की भी मजबूरी है कि वे स्कूल बस की मोटी फीस के बदले सस्ते जरियों से बच्चों की जान जोखिम में डाल रहे हैं।
आखिर क्यों पैरेंट्स रिस्क ले रहे
कम किराये के चलते
राजधानी में स्कूली बच्चे अनफिट वाहनों और ई-रिक्शा में सफर कर रहे हैं। इसकी वजह पैरेंट्स की लापरवाही भी है, जो कम किराये के लालच में निजी वाहनों से बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं। स्कूलों की ओर से चलाए जाने वाले व्हीकल का एक महीने का किराया करीब 2000 से 2500 रुपये तक है। प्राइवेट व्हीकल किराया एक हजार से 15 सौ रुपये पर मंथ होता है। पैसे बचाने के चलते कई बार पैरेंट्स ई-रिक्शा व कांट्रेक्ट पर चलने वाले प्राइवेट व्हीकल को हायर कर बच्चों को स्कूल भेजते है।
गलियों में नहीं जाती स्कूल बस
स्कूल बस गलियों में नहीं जाती है। मेन रोड से ही बच्चों को पिक एंड ड्राप करती है। कई बार पैरेंट्स का घर मेन रोड से काफी अंदर होता है। पर प्राइवेट व्हीकल व ई-रिक्शा स्कूली बच्चों को घर से पिक एंड ड्राप करता है। इस वजह से भी पैरेंट्स प्राइवेट व्हीकल व ई-रिक्शा को स्कूली बच्चों के लिए हायर करते हैं।
अभियान चला, फिर ठंंडे बस्ते में
हर हादसे के बाद आरटीओ, ट्रैफिक पुलिस अनफिट स्कूली वाहनों के खिलाफ अभियान चलता है। गाड़ियों की फिटनेस, पेपर चेक किए जाते हैं, लेकिन स्कूल व्हीकल के लिए जो गाइडलाइन बनाई गई है, उसके कई प्वाइंट्स फॉलो नहीं होते। इस पर न तो गाड़ियों के मालिकों और न स्कूल मैनेजमेंट के खिलाफ कार्रवाई होती है और न ही इनपर अंकुश लगाया जाता है। कुछ दिन बाद स्थिति फिर वही हो जाती है। हर दिन प्राइवेट स्कूल व्हीकल व ई-रिक्शा में बच्चों को भूसे की तरह भर कर ले जाया जाता है, जिम्मेदार अधिकारी भी इसे देखते हैं पर एक्शन नहीं लेते।
स्कूल के व्हीकल्स के लिए क्या हैं नियम
-वाहन का रंग सुनहरा पीला हो, उस पर दोनों ओर बीच में चार इंच मोटी नीले रंग की पट्टी हो।
-स्कूल बस में आगे-पीछे दरवाजों के अतिरिक्त दो इमरजेंसी गेट भी हों।
-सीटों के नीचे बैग रखने की व्यवस्था हो।
-बसों व व्हीकल में स्पीड अलार्म लगा हो, ताकि स्कूल संचालक को वाहन की गति का पता चल सके।
-पांच साल के अनुभव वाले ड्राइवर और कंडक्टर को ही रखा जाए।
-स्कूल वाहन में फर्स्ट एड बॉक्स की व्यवस्था हो।
-सेफ्टी के लिए बस के शीशे पर लोहे की रेलिंग लगी हो।
-चालक के पास ड्राइविंग लाइसेंस, आईकार्ड और वाहन के कागजात होने चाहिए।
-वाहन पर स्कूल का नाम, प्रबंधक और प्रिंसिपल का पता व फोन नंबर होना चाहिए।
-स्कूल वाहन का फिटनेस सर्टिफिकेट होना जरूरी है।
कब-कब स्कूल के व्हीकल हुए हादसे का शिकार
-शहीदपथ पर पलासियो माल के सामने टायर फटने से वैन पलटी, छह बच्चे जख्मी।
-वृंदावन कालोनी में स्कूली वैन और कार में भिड़ंत, दो बच्चियां घायल हुईं
-निगोहां के हरिहरपुर पटसा में ट्रैक्टर की टक्कर से वैन सवार छह बच्चे घायल।
-आशियाना में स्टेयरिंग फेल होने से वैन सड़क किनारे बाक्स से टकराई।
-समता मूलक चौराहे पर बस की टक्कर से वैन सवार चार बच्चे जख्मी हुए।
-मड़ियांव में घने कोहरे में रोडवेज बस, स्कूली वैन और टेंपो में टक्कर।
-कृष्णानगर में खटारा स्कूली वैन ने बच्चे को कुचला, दोनों पैर जख्मी।
-पक्का पुल पर 18 बच्चों से भरी वैन और ई-रिक्शे में भिड़ंत, 8 बच्चे घायल
बोले जिम्मेदार
स्कूली वाहनों को लेकर समय-समय पर चेकिंग अभियान चलाया जाता है। नोटिस देने के साथ कार्रवाई भी होती है। स्कूल में अवेयरनेस प्रोग्राम भी करते हैं। इसमें स्कूल के साथ पैरेंट्स का भी सहयोग चाहिए। बच्चों की सुरक्षा सबसे पहले है।
-संदीप पंकज, आरटीओ प्रवर्तन, लखनऊ
बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी पर है। पर जिम्मेदार एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल के अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। अवैध ई-रिक्शा और स्कूल वाहन को लेकर लगातार शिकायत करते हैं। हादसा होता है, तब कार्रवाई करते हैं। जल्द ही आरटीओ और शासन-प्रशासन संग बैठक की जाएगी।
-प्रदीप श्रीवास्तव, पैरेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन
अगर कोई बच्चा प्राइवेट वाहन से स्कूल आ रहा है तो उसकी सेफ्टी की जिम्मेदारी प्राथमिक तौर पर पैरेंट्स की है। स्कूल से जुड़े व्हीकल से बच्चा आता है तो उसकी सेफ्टी की जिम्मेदारी स्कूल मैनेजमेंट की है। कई बार पैरेंट्स से प्राइवेट व्हीकल का डेटा मांगा जाता है, जो वे उपलब्ध नहीं कराते।
-अनिल अग्रवाल, अध्यक्ष, अनएडेड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन, यूपी
क्या बोले पैरेंट्स
प्राइवेट वैन व बस चालकों की मनमानी के चलते पैरेंट्स अपने बच्चों को ई-रिक्शा जैसे सस्ते साधनों से भेजने को मजबूर हैं। इस समस्या के लिए स्कूल मैनेजमेंट, सरकारी सिस्टम से जुड़े अफसर और पैरेंट्स की साझा समिति बने, जो इन समस्याओं के समाधान और निवारण के विकल्पों पर विचार कर उसने क्रियान्वयन कर निगरानी करें ताकि भविष्य में हादसों को रोका जा सके।
-रज्जन पांडेय
स्कूल बस मेन रोड से ही बच्चों को पिक एंड ड्राप करती है। गलियों में बस नहीं जाती है, जिसके चलते कई बार प्राइवेट व्हीकल को हायर करना पड़ता है। उनसे सेफ्टी के बारे में जब पूछा जाता है तो ड्राइवर सब ठीक बताता है जबकि न तो कोई पेपर चेक करता है और न ही उनके ड्राइवर फिक्स होते हैं, वे बदलते रहते हैं।
-कपिल वर्मा
पैरेंट्स अपने बच्चों को बड़े भरोसे से स्कूल व्हीकल में भेजते हैं। बच्चा का सफर सेफ रहे इसको लेकर सिस्टम, स्कूल मैनेजमेंट और पैरेंट्स सभी को चिंता करनी चाहिए। सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी की है। पैरेंट्स को भी जागरूक किया जाना चाहिए।
-मनमोहन सिंह
जिस तरह से स्कूल वैन में बच्चों को ठंूसा जाता है, यह हर पैरेंट को दिखता है। कुछ पैरेंट्स की मजबूरी भी होती है जिसके चलते वे न चाहते हुए भी बच्चों के साथ रिस्क लेते हैं। सरकारी सिस्टम ने जो नियम-कायदे बनाए हैं उन्हें सही से फॉलो किया जाए तो रिस्क को कम किया जा सकता है।
-कविता मिश्रा