लखनऊ (ब्यूरो)। रामोत्सव 3 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक रामलीला समिति ऐशबाग के प्रागंण में आयोजित किया जायेगा। इसका शुभारंभ गणेश पूजन के साथ होगा। इसके बाद रामलीला में अभिनय करने वाले कलाकारों का पूजन किया जायेगा। जिसमें राम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, सीता एवं हनुमान जी का अभिनय करने वाले कलाकार शामिल रहेंगे। उसके बाद दोपहर 3 बजे से सुंदरकांड का पाठ प्रारंभ होगा, जिसका समापन शाम 6 बजे होगा।
8:30 बजे शुरू होगी रामलीला
श्री रामलीला समिति ऐशबाग के अध्यक्ष हरीश चंद्र अग्रवाल ने बताया कि रामलीला का मंचन प्रारंभ होने के पहले प्रतिदिन शाम 7:30 बजे देवताओं का आह्वान स्तुति पाठ से किया जायेगा। इसके बाद भजनों पर नृत्य डांस एकेडमी द्वारा प्रस्तुति दी जाएगी। वहीं, शाम 8:30 बजे से रामलीला मंचन का मंचन प्रारंभ होगा, जो रात्रि 11:30 बजे तक चलेगा। रामलीला मंचन को अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत करने का शुभारंभ 16वीं शताब्दी से पूर्व संत गोस्वामी तुलसीदास द्वारा इसी रामलीला मैदान से किया गया था।
12 को मनाया जाएगा दशहरा
इस वर्ष दशहरा पर्व 12 अक्टूबर दिन शनिवार को आयोजित होगा। जिसमें रावण वध की लीला के बाद भव्य आतिशबाजी एवं पुतला दहन होगा। वहीं, 13 अक्टूबर दिन रविवार को मंच पर भगवान श्रीराम अयोध्या वापस आयेंगे और भरत मिलन के बाद श्रीराम के भव्य राज्याभिषेक का आयोजन किया जायेगा। उसके बाद प्रसाद वितरण होगा, जबकि 14 अक्टूबर दिन सोमवार को शाम 6 बजे रामलीला परिसर से राजाराम चंद्र अपने पूरे मंत्रीमंडल एवं बंधु-बंधुओं साथ नगर दर्शन यात्रा पर निकलेंगे, जिसका समापन धर्मध्वजी मंदिर यहियागंज वर्मा स्टाप पर होगा।
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आज होगी पितृ लोक से आये पितरों की विदाई
इस वर्ष पितृ विसर्जन सर्वपैत्री, श्राद्ध की अमावस्या 2 अक्टूबर दिन बुधवार को है, जिससे मध्याह्न काल में ही श्राद्ध क्रिया करनी चाहिए। इस वर्ष आश्विन कृष्ण अमावस्या तिथि पूरे दिन व रात्रि 11:05 तक रहेगी। जिस व्यक्ति की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो उन्हें अमावस्या तिथि पर ही श्राद्ध करना चाहिए। यह जानकारी ज्योतिषाचार्य पं। राकेश पांडेय ने दी। इस अवसर पर त्रिपिंडी श्राद्ध करें। गीता का पाठ, रुद्राष्ट्राध्यायी के पुरुष सूक्त, रुद्र सूक्त ब्रह्म सूक्त आदि का पाठ भी करना चाहिए। पीपल के वृक्ष के मूल में भगवान विष्णु का पूजन कर गाय का दूध चढ़ावें। पितृ श्राप से मुक्ति के लिए उस दिन पीपल का एक पौधा भी अवश्य ही लगाना चाहिए। श्राद्ध चिंतामणि के अनुसार किसी मृत आत्मा का तीन वर्षों तक श्राद्ध कर्म नहीं करने पर जीवात्मा का प्रवेश प्रेत योनि में हो जाता है। जो तमोगुणी, रजोगुणी एवं सतोगुणी होती है। पृथ्वी पर रहने वाली आत्माएं तमोगुणी होती हैं। इसलिए इनकी मुक्ति अवश्य करनी चाहिए। पितृ विसर्जन के दिन पितृ लोक से आये हुयें पितरों की विदाई होती है, उस दिन तीन या छह ब्राह्मणों को मध्याहन के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन से संतृप्त कर उन्हें वस्त्र दक्षिणा आदि देकर विदा करें। साथ ही शाम को घी का दीपक जलाकर पितृ लोक गमन मार्ग को आलोकित करने की परिकल्पना करें। जिससे पितृ संतुष्ट होकर अपने वंश के उत्थान की कामना करते हुये स्वलोक गमन करेंगे।