लखनऊ (ब्यूरो)। 10 उम्र के बच्चों से लेकर 20 वर्ष के किशोरों में जूविनाइल नासोफिरिंजियल एंजियोफाइब्रोमा (जेएनए) नामक बीमारी देखने को मिलती है। जिसे आम भाषा में नाक के पीछे होने वाली गांठ बोलते हैं। यह समस्या केवल मेल बच्चों में देखने को मिलती है। इसमें नाक से ब्लीडिंग ज्यादा होने लगती है। पहले इसे हटाने के लिए ओपन सर्जरी करने पड़ती थी, लेकिन संजय गांधी पीजीआई के ईएनटी विभाग के डॉक्टर्स ने एंडोस्कोपी की मदद से इसे दूर करने का तरीका ईजाद किया है। जिससे चेहरे पर कोई विकृती नहीं होती है और खर्च भी कम होता है। इसके लिए टीम को अवार्ड भी मिला है।
यहां होती है अधिक समस्या
संजय गांधी पीजीआई के ईएनटी विभाग के हेड डॉ। अमित केसरी ने बताया कि जेएनए समस्या मुख्यता यूपी, बिहार और झारखंड में ही देखने को मिलती है। यह बेहद रेयर तरह का ट्यूमर होता है। इसमें नाक से अधिक खून बहने की वजह से नाक बंद हो जाती है। वहीं, ट्यूमर ज्यादा बड़ा होने लगता है तो चेहरे पर सूजन आ जाती है। इसको हटाने के लिए पहले ऑपरेशन करते थे तो चेहरे पर निशान पड़ जाता था। पर अब दूरबीन विधि से इसे पूरी तरह निकाल देते हैं। दांत के नीचे चीरा लगाकर एंडोस्कोपी की मदद से इसे निकाला जाता है, चूंकि बढ़ने पर यह स्कल बेस में होता है। ऐसे में एंडोस्कोपी की मदद से इसे अच्छे से देख पाते हैं। एमआरआई और सीटी स्कैन से भी इसे देख पाते हैं, जिससे इसे हटाने में मदद मिलती है।
हर साल करीब 25 मामले आ रहे
डॉ। अमित के मुताबिक, हर साल ऐसे 20-25 केस आते हैं। इसकी सर्जरी के लिए रेडियोलॉजी और न्यूरो सर्जरी की टीम साथ काम करती हैं। बड़ा ट्यूमर नाक से नहीं निकाल सकते, इसलिए मुंह के पीछे धकेल कर इसे निकाला जा सकता है। यह समस्या 20-21 की उम्र के बाद नहीं होती है। अमूमन यह 14-15 की उम्र में ज्यादा होती है।
डॉक्टर को दिखाएं
अगर बच्चा नाक में उंगली करता है और खून निकल आता है और खून फर्स्ट एड से नहीं रुकता तो डॉक्टर को दिखाएं। ज्यादा ब्लीड होन पर खून चढ़ाना पड़ता है। हालांकि, सर्जरी में एक तिहाई को ही खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ओपीडी में स्टेज 2-3 के केस ज्यादा आते हैं। इसका पूरा खर्च करीब एक लाख रुपये से कम होता है। आयुष्मान योजना के अंदर यह पूरी तरह से फ्री है। इसके अलावा अन्य मद के तहत भी मदद की जाती है। यही तकनीक म्यूकर मायकोसिस में भी अपनाई गई है।