लखनऊ (ब्यूरो)। बढ़ते वायु प्रदूषण के साथ सांस से संबंधित बीमारियों के मरीज भी बढ़ रहे हैं। सीओपीडी की अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइन ग्लोबल इनिसिएटिव फॉर क्रोनिक आब्सट्रक्टिव लंग डिजीज के अनुसार सीओपीडी पूरी दुनिया में मौत के लिए जिम्मेदार तीसरी प्रमुख बीमारी है। जबकि, भारत में मौत का यह दूसरा कारण है। यह जानकारी केजीएमयू के रेस्पिरेट्री मेडिसिन विभाग के हेड प्रो। सूर्यकांत ने वर्ल्ड सीओपीडी डे के अवसर पर जागरूकता कार्यक्रम के दौरान दी।
कई रिस्क फैक्टर
प्रो। सूर्यकांत ने कहा कि क्रोनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज सांस की प्रमुख बीमारी है। दो दशक पहले सीओपीडी को केवल धूम्रपान करने वालों में होने वाली बीमारी के रूप में देखा जाता था। आज विश्व स्तर पर हो रहे शोधों से यह सिद्ध हुआ है कि धूम्रपान के अलावा चूल्हे से निकलने वाले धुएं, वायु प्रदूषण एवं लंबे समय तक बने रहने वाले फेफड़े के संक्रमण भी सीओपीडी के लिए उतने ही प्रमुख रिस्क फैक्टर हैं।
कई आंग होते हैं प्रभावित
इस बीमारी के लक्षण 30 वर्ष की उम्र के बाद प्रारंभ होते हैं। सबसे पहला लक्षण सुबह-सुबह खांसी आना होता है। इसके बाद धीरे-धीरे सर्दी के मौसम में एवं फिर बाद में साल भर खांसी आना, बलगम भी आना और बीमारी बढ़ने पर रोगी की सांस भी फूलने लगती है। सीओपीडी सिर्फ फेफड़े की ही बीमारी नही है, बल्कि बीमारी की तीव्रता बढ़ने पर हृदय, गुर्दा व अन्य अंग भी प्रभावित हो जाते है। वायु प्रदूषण से बचने के लिए अंगौछा की चार परत से नाक व मुंह से ढंके व भाप लें तथा प्राणायाम करेंं। इस अवसर पर विभाग के डॉ। आरएसए कुशवाहा, डॉ। राजीव गर्ग, डॉ। अजय कुमार वर्मा आदि मौजूद रहे।