लखनऊ (ब्यूरो)। 'यूपी पुलिस आपकी सेवा व सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर है' यह स्लोगन आम जनता के अंदर अपनी सुरक्षा को लेकर थोड़ी सकारात्मकता तो पैदा करता है कि जरूरत पड़ने पर पुलिस उनके साथ खड़ी रहेगी। हालांकि, इसके अलावा पब्लिक के कुछ अधिकार भी होते हैं, जिनके बारे में जानना भी आपके लिए जरूरी है। अकसर देखा गया है कि जानकारी न होने के चलते लोग किसी क्राइम की घटना पर एफआईआर दर्ज कराने के लिए थानों के चक्कर काटते रहते हैं, पर क्या आपने 'जीरो एफआईआर' के बारे में सुना है? आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से
पहले जानें क्या है एफआईआर
एफआईआर (फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट) एक प्रकार का दस्तावेज होता है, जिसके आधार पर पुलिस अपनी कार्रवाई शुरू करती है, अपराधी को सजा दिलाने के लिए। हिंदी में एफआईआर को प्राथमिकी कहते हैं। अपराध के लिए पुलिस के पास कार्रवाई करने के लिए जो सूचना हम दर्ज कराते हैं, उसे प्रथम सूचना रिपोर्ट या प्राथमिकी कहते हैं। एफआईआर में पुलिस आरोपी को वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकती है। यह केवल संज्ञेय अपराधों जैसे हत्या, रेप, चोरी, हमला आदि में दर्ज की जाती है।
एफआईआर के लिए ये हैं प्रावधान
भारतीय न्याय संहिता की धारा 154 में एफआईआर के बारे में जिक्र है। अपराधों की दो श्रेणियां में बांटा गया है। इनमें से पहली श्रेणी वाले अपराधों को संज्ञेय अपराध कहा जाता है जबकि दूसरी श्रेणी के अपराधों को असंज्ञेय कहते हैं। बार-बार पुलिस स्टेशन जाने के बावजूद पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर रही है तो सीनियर अफसर के पास लिखित में शिकायत दर्ज करानी चाहिए। सीनियर अफसर के कहने के बावजूद भी एफआईआर नहीं लिखी जा रही तो भारतीय न्याय संहिता की धारा 156(3) के तहत मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दी जा सकती है। मजिस्ट्रेट को यह अधिकार और शक्ति प्राप्त है कि वह पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने को कह सकता है।
एफआईआर न दर्ज करने पर कार्रवाई
अगर कोई पुलिस अधिकारी या पुलिस कर्मी किसी व्यक्ति की एफआईआर दर्ज करने से इनकार करता है तो उस पर कार्रवाई भी की जा सकती है। उसे विभागीय कार्रवाई का भी सामना करना पड़ सकता है। भारतीय न्याय संहिता में संज्ञेय अपराध की परिभाषा ऐसे अपराध के रूप में की गई है, जिसमें गिरफ्तारी के लिए पुलिस को किसी वारंट की जरूरत नहीं होती। ये आम तौर पर गंभीर अपराध होते हैं, जिनमें पुलिस को तुरंत कार्रवाई करनी होती है। इनमें घातक हथियारों से हमला, रेप, हत्या, विधि विरुद्ध जमाव, सरकारी संपत्ति को नुकसान और लोकसेवक द्वारा रिश्वत लेना जैसे मामले हैं। इनमें पुलिस को जांच शुरू करने के लिए मजिस्ट्रेट से आदेश की अनिवार्यता नहीं होती। ऐसे अपराध जिनमें 7 वर्ष या अधिक की सजा है उनमें सर्च वारंट की आवश्यकता नहीं होती।
एफआईआर दर्ज न हो तो क्या करें
किसी की मानहानि और उसके खिलाफ अपशब्दों के प्रयोग भी अपराध की श्रेणी में आता है। इन मामलों में पुलिस बिना तहकीकात के मुकदमा दर्ज नहीं कर सकती और न ही शिकायत कर्ता इसके लिए पुलिस को बाध्य कर सकता है। इस प्रकार का मामला दर्ज करने या जांच के लिए मजिस्ट्रेट का आदेश प्राप्त करना अनिवार्य है। कई बार पीड़ित को विपरीत व विषम परिस्थितियों में किसी बाहरी पुलिस थाने में केस दर्ज करवाने की जरूरत पड़ जाती है। पर अक्सर देखा जाता है कि पुलिस अपनी सीमा से बाहर हुई किसी घटना के बारे में उतनी गंभीर नहीं दिखाई देती। ऐसी परिस्थितियों में भी नागरिकों के अधिकारों को बचाए रखने के लिए जीरो एफआईआर का प्रावधान किया गया है। इसके तहत पीड़ित व्यक्ति तुरंत कार्रवाई के लिए किसी भी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवा सकता है। बाद में केस को संबंधित थाने में ट्रांसफर करवाया जा सकता है।
क्या होती जीरो एफआईआर
एफआईआर घटनास्थल के पास के थाने में ही दर्ज करानी चाहिए, पर पीड़ित को किसी परिस्थितिवश बाहरी थाने में शिकायत दर्ज करानी पड़ रही है, तो बाद में शिकायत को संबंधित थाने में ट्रांसफर कर दिया जाता है। ये किसी सीनियर ऑफिसर के माध्य से ही ट्रांसफर करा सकते हैं यानी घटनास्थल की सीमा से अलग किसी दूसरे इलाके के थाने में जो प्राथमिकी दर्ज कराई जाती है, उसे जीरो एफआईआर कहते हैं।
कैसे दर्ज कराएं जीरो एफआईआर
यदि आर जीरो एफआईआर दर्ज कराते हैं तो आपको खुद थाने जाने की जरूरत नहीं है। कोई रिश्तेदार या चश्मदीद भी इस एफआईआर को दर्ज करा सकता है। घटना की तारीख के साथ समय और अपराधी की जानकारी होनी जरूरी है। एफआईआर में एक क्राइम नंबर होता है, जिसका इस्तेमाल भविष्य में रेफरेंस के तौर पर किया जाता है। फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट की कॉपी पर मुहर व पुलिस अधिकारी के हस्ताक्षर जरूरी हैं।
एनसीआर (नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट) क्या है
असंज्ञेय अपराध जैसे गाली-गलौज जैसी छोटी घटनाओं में पुलिस के पास किसी को वारंट के बिना गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं होता है। ऐसे केस को पहले ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के पास भेजना होता है। ऐसे ही मामलों में एनसीआर (नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट) दर्ज की जाती है।
एनसीआर और एफआईआर में अंतर
अगर आपका कोई सामान चोरी हो गया है तो एफआईआर दर्ज की जाएगी जबकि अगर वह खो गया है तो एनसीआर दर्ज होगी। एफआईआर के बाद दोषी को सजा दिलाने के लिए पुलिस कार्रवाई शुरू करती है। आपकी चोरी हुई किसी चीज के यूज होने का खतरा होता है। ऐसे में आप अपराध में फंस सकते हैं, जो आपने किया ही नहीं है। ऐसी स्थिति से बचने के लिए एफआईआर जरूर दर्ज करानी चाहिए। घटना के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज करानी चाहिए। देरी होने पर स्पष्ट कारण भी देना जरूरी हो जाता है।