लखनऊ (ब्यूरो)। हाउस अरेस्ट और पुलिस अरेस्ट जैसे शब्द तो आपने कई बार सुने होंगे, पर इन दिनों हर ओर डिजिटल अरेस्ट की चर्चा है, जो साइबर क्रिमिनल्स के लिए ठगी का नया हथियार बन गया है। उनका टारगेट अगर पहली कॉल में डर गया तो साइबर क्रिमिनल्स के जाल में फंस जाता है। ये क्रिमिनल्स कभी खुद को सीबीआई, कभी ईडी, कभी कस्टम्स तो कभी पुलिस अधिकारी बताकर लोगों को डिजिटल अरेस्ट करते हैं और कई दिनों तक उन्हें कैमरे के सामने बैठाकर उनसे पैसे ऐंठते रहते हैं। राजधानी में बीते एक साल में करीब 15 हाई प्रोफाइल लोगों को शिकार बनाया गया है, जिनमें डॉक्टर से लेकर बड़े अफसर और सीनियर सिटीजंस शामिल हैं।
केस 1
एससीएसटी निगम में एमडी व 2012 बैच के आईएएस अफसर शिव प्रसाद लखनऊ के आशियाना इलाके में रहते हैं। बीती दो अगस्त को उनके पास कॉल आई और खुद को सीबीआई अफसर बताने वाले व्यक्ति ने उनसे कहा कि उनकी आईडी व पते से विदेश भेजी जा रही अवैध सामग्री पकड़ी गई है। उसने कहा कि उनके नाम से समन जारी हुआ है। यह कहते हुए साइबर जालसाजों ने उन्हें डिजिटल अरेस्ट कर लिया। दो दिनों तक उन्हें अरेस्ट रखा और दो बार में 4 लाख रुपए अपने अकाउंट में ट्रांसफर करा लिए।
केस 2
पीजीआई की महिला डॉक्टर को खुद को ट्राई की अधिकारी बताने वाली महिला का कॉल आया और उन्हें बताया गया कि उनके नंबर पर 22 शिकायतें दर्ज हैं। इतना ही नहीं, उनसे सीबीआई के अफसर भी बात करना चाहते हैं। इसके लिए वह स्काइप डाउनलोड कर लें। डॉक्टर ने स्काइप डाउनलोड किया और फिर सीबीआई अफसर से वीडियो कॉल पर बात की। अफसर ने डॉक्टर को बताया उनका नाम मनी लांड्रिंग, चाइल्ड और वूमेन ट्रैफिकिंग में आया है। डॉक्टर डर गईं और 2 करोड़ 81 लाख रुपए गंवा दिए।
केस 3
लखनऊ के रहने वाले अखिलेश्वर कुमार सिंह के पास वाट्सएप काल आई। कॉलर ने खुद को सीबीआई अफसर आकाश कुलहरी (जो वर्तमान में लखनऊ में जॉइंट सीपी क्राइम हैं) बताया। कॉलर ने बताया कि राज कुंदरा (अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति) मनी लांडिंग में दोषी हैं, उस केस में उनका भी नाम आया है। अब उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा। कॉलर ने कहा कि यदि बचना है तो अपनी 28.5 लाख की एफडी है तुड़वा कर रकम भेज दो। उन्होंने ऐसा ही किया। इसी तरफ उनसे 16 लाख की एफडी भी तुड़वाई गई।
डर का सहारा लेकर फंसाते हैं
साइबर थाना प्रभारी बृजेश यादव ने बताया कि साइबर अपराधियों का सबसे बड़ा हथियार डर और लालच होता है। डिजिटल अरेस्ट में जालसाज लोगों के डर का फायदा उठाते हैं। वे ऐसे लोगों को टारगेट कर रहे हैं, जो या तो रिटायर्ड अफसर होते हैं या बड़े अफसर, डॉक्टर, इंजीनियर होते हैं। इसके पीछे की एक वजह यह होती है कि उनके पास बैंक में काफी पैसा होता है। इसके बाद ये जालसाज खुद की फेक फोटो तैयार करते हैं, जो पुलिस की वर्दी में होती है। वीडियो कॉल से पहले वे थाने जैसा माहौल तैयार कर लेते हैं ताकि सामने वाले को शक न हो।
विदेशों में बैठ कर रहे हैं फ्रॉड
साइबर सेल के शिशिर यादव बताते हैं कि बीते कुछ महीनों की केस स्टडी करने पर सामने आया कि डिजिटल अरेस्ट के जरिए फ्रॉड करने वाले गैंग ने अपनी मॉडस ऑपरेंडी में बदलाव किया है। पहले इस तरह का फ्रॉड नाइजीरियन गैंग दिल्ली से करता था। अब ऐसे गैंग देश में रहकर या फिर देश के बाहर से इन वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। जो अधिकांश ठगी हो रही है। इसमें इन ठगों के पास लोकल स्तर की भी जानकारियां थीं। साइबर पुलिस को कुछ सफलताएं मिली हैं और तीन मामलों में अरेस्टिंग भी हुई है।
डेटा खरीद कर करते हैं रेकी
लखनऊ एसीपी साइबर अभिनव ने बताया कि डिजिटल अरेस्ट करने वाले गैंग का नेटवर्क काफी बड़ा है। वे दलालों के माध्यम से रिटायर्ड अफसर, शिक्षक, डॉक्टर्स का डाटा खरीदते हैं। बैंक की डिटेल लेकर लोगों को फोन करते हैं। लोगों को बाकायदा उनकी एफडी और खाते में जमा रकम की जानकारी दी जाती है। यही नहीं, टारगेट से बातचीत के दौरान उनके ही जिले से आईपीएस अफसर का नाम भी यूज किया जाता है ताकि लोगों को शक न हो।
इन चीजों का रखना होगा ध्यान
-साइबर थाना प्रभारी बृजेश यादव का कहना है कि साइबर जालसाज शिकार के उसी नंबर पर कॉल करते हैं, जो उसने सोशल मीडिया पर दिया होता है।
-सीबीआई अफसर बता कर की जाने वाली कॉल आने पर जिस अधिकारी का नाम लिया जा रहा है, उसके नंबर की जांच खुद से करें।
-इस काम में लोकल थाने और साइबर सेल की मदद भी ली जा सकती है।
-पुलिस कभी कॉल करके नहीं बताती है कि आपको गिरफ्तार किया जा रहा है। इतना ही नहीं, डिजिटल अरेस्ट नाम की कोई चीज ही नहीं है।
-ऐसी कॉल आने पर तत्काल 1930 डायल करें और नजदीकी थाने या साइबर थाने में शिकायत दर्ज कराएं।