- सीआईएसएच ने सीएआरआई के साथ मिलकर तैयार किया बेहद सस्ता हैचरी स्टार्टअप मॉड्यूल
- पुराने फ्रिज में तैयार होंगे चूजे, प्लॉट, गार्डेन और बागों में स्थापित हो सकेगी हैचरी
लखनऊ (ब्यूरो)। 'कड़कनाथ' अब स्टार्टअप शुरू करने वालों की जेब भरेगा। आप सोच रहे होंगे कि आखिर इस अजीब नाम से स्टार्टअप शुरू करने वालों का क्या ताल्लुक? तो जान लीजिए यह मुर्गे की नवविकसित प्रजाति है, जिसे लेकर सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ सबट्रॉपिकल हार्टिकल्चर (सीआईएसएच) ने सेंट्रल एवियन रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएआरआई) के साथ मिलकर बेहद सस्ता हेचरी (मुर्गीपालन) स्टार्टअप मॉड्यूल तैयार किया है। इस मॉड्यूल में कारी श्यामा, कारी देवेंद्रा और कारी अशील प्रजातियों को भी शामिल किया गया है। इन प्रजातियों की खास बात यह है कि न सिर्फ यह देखने में देशी मुर्गे लगते हैं बल्कि, यह आमतौर पर बिकने वाले बॉयलर से ज्यादा सेहतमंद गुणों से भरपूर होते हैं। हेचरी को लगाने के लिये भी सीआईएसएच और सीएआरआई ने मिलकर बेहद सस्ता सेटअप तैयार किया है, जिसमें पुराने फ्रिज में ही चूजों का उत्पादन किया जा सकता है।
चार प्रजातियों का किया चुनाव
सीआईएसएच के डायरेक्टर डॉ। शैलेंद्र राजन ने बताया कि सीएआरआई, बरेली के सहयोग से हैचरी मॉड्यूल तैयार किया है। इसके लिये 'कड़कनाथ', 'कारी श्यामा', 'कारी देवेंद्रा' और 'कारी अशील' जैसी मुर्गे-मुर्गियों की नवविकसित प्रजातियों का चुनाव किया गया है। इन प्रजातियों को चुनने की वजह यह है कि यह खुली जगहों मसलन प्लॉट व बाग में इनका पालन संभव है। डॉ। राजन ने बताया कि फिलवक्त मुर्गीपालन के लिये बॉयलर को चुना जाता है। जिसका उत्पादन में तमाम स्टीयरायड्स दिया जाता है। जो इसे खाने वालों के शरीर के लिये नुकसानदेह होती है। जबकि, इन चारों प्रजाति के चूजों को प्राकृतिक तरीके से पैदा किया जाता है। इन चूजों से तैयार मुर्गो की कीमत भी बॉयलर के मुकाबले ज्यादा मिलती है। साथ ही इनकी मुर्गियों के अंडे और भीतर की जर्दी भी देशी अंडे की तरह होती है। जिसकी वजह से इसकी कीमत भी फार्म के अंडो के मुकाबले बाजार में ज्यादा मिलती है।
कबाड़ फ्रिज में होगा चूजों का उत्पादन
डॉ। राजन ने बताया कि इन चार नवविकसित प्रजातियों के चूजों की बढ़ती मांग को सीएआरआई पूरा नहीं कर पा रही थी। नतीजतन, आईवीआरआई के पोल्ट्री एक्सपर्ट डॉ। आरबी राय से इस पर चर्चा की गई। उन्होंने पुराने अनुपयोगी फ्रिज को हैचरी में परिवर्तित करने का तरीका सुझाया। उनका सुझाया तरीका बेहद प्रभावी और सस्ता था। सीआईएसएच ने इस 'जुगाड़' तकनीक की परिकल्पना से चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। अंडो से चूजों का उत्पादन सफल रहा और हैचरी स्टार्टअप के लिये पर्याप्त गुणवत्ता पूर्ण चूजे मुहैया हो सके। इस तकनीक की सफलता से पालकों को चूजों के लिये औरों की निर्भरता भी नहीं रहेगी।
वर्कशॉप में देंगे ट्रेनिंग
डॉ। शैलेंद्र राजन ने बताया कि कम लगत की हैचरी निश्चित रूप से विशेष पोल्ट्री नस्लों के उत्पादित चूजों की संख्या में वृद्धि में सहायक होगी। उन्होंने यह भी बताया कि इस तरह की हैचरी लगाने के इच्छुक लोगों को सितंबर में एक दिन की वर्कशॉप आयोजित कर ट्रेनिंग दी जाएगी। इसमें एवियन इंस्टीट्यूट के डॉ। त्यागी और उनकी टीम द्वारा पुराने फ्रिज को छोटी हैचरी में परिवर्तित करने का डेमो दिया जाएगा।
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