लखनऊ (ब्यूरो)। केजीएमयू में मरीजों की मदद करने वाला कोई नहीं है। यहां पर्चा बनवाने और मरीज को भर्ती कराने में ही कई बार पूरा दिन निकल जाता है। इस भीषण गर्मी में मरीज स्ट्रेचर पर बाहर पड़े रहते हैं, फिर भी यहां के जिम्मेदारों का दिल नहीं पसीजता है। सर्वाधिक दिक्कतें रेफर केस के मरीजों को होती है। वे घंटों एंबुलेंस में पड़े भर्ती होने का इंतजार करते रहते हैं। इलाज के इंतजार में कई बार यहां एंबुलेंस में ही मरीजों की मौत के मामले भी सामने आ चुके हैं।

केस 1-कविता सिंह अपने पिता को यहां भर्ती कराने गोंडा से लाई थीं। उन्होंने बताया कि यहां उन्हें काफी देर तक इंतजार करना पड़ा। एंट्री कराने में ही दिक्कतों का सामना करना पड़ा, काफी देर वह इधर-उधर भटकती रहीं। इसके बाद उनके पिता को भर्ती किया गया।

केस 2-राजेश और उनका परिवार चार घंटे से मरीज को स्ट्रेचर पर धूप में लिए खड़ा मिला। उन्होंने बताया कि मरीज को भर्ती कराने में दिक्कतें हो रही हैं। मरीज बेहोश है, यहां पर कोई जानकारी नहीं मिल रही है। हम किसी को जानते नहीं हैं। क्या करें

केस 3-तीमारदार ओम प्रकाश ने बताया कि यहां पर्चा बनवाना और मरीज को भर्ती कराना ही जंग जीतने के बराबर है। फाइल लेकर कभी इधर तो कभी उधर दौड़ते रहे। अब जाकर मरीज को भर्ती किया गया है।

दवा लेने बाहर जाना पड़ता है

बाहर बैठे कई तीमारदारों ने बताया कि यहां कोई भी काम आसानी से नहीं होता है। कैंपस में सारी दवाएं आपको नहीं मिलेंगी। कई दवाएं लेने बाहर जाना पड़ता है। जो मरीज दूसरे जिलों के होते हैं, उन्हें अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

सभी मरीजों को देखा जाता है। गंभीर मरीजों को प्राथमिकता दी जाती है। किसी को कोई परेशानी नही आने दी जाती है।

-डॉ। सुधीर सिंह, प्रवक्ता केजीएमयू

आखिर कब होगा ट्रामा की 'बीमारी' का इलाज!

बीते कुछ महीनों में हुई घटनाओं पर नजर डालें तो केजीएमयू प्रशासन के तमाम दावों के बावजूद साफ नजर आ रहा है कि व्यवस्था पूरी तरह पटरी से उतर चुकी है। मरीजों की सुनवाई भी कहीं नहीं होती है। संस्थान प्रशासन कभी जांच की बात कहकर तो कभी आरोपों से इंकार कर अपना पल्ला झाड़ लेता है, जो मरीजों और उनके परिजनों के घावों पर नमक रगड़ने जैसा काम करता है।

केस 1-26 जून को बीकेटी निवासी नीरज तिवारी को हादसे में गंभीर घायल होने पर ट्रामा में भर्ती कराया गया। परिजनों का आरोप था कि डॉक्टर ने सही उपचार किए बिना ही मरीज को डिस्चार्ज कर दिया, जिससे उसकी मौत हो गई।

केस 2-16 मार्च को जीशान के पिता ओपीडी में रजिस्ट्रेशन की लाइन में लगे रहे। इसी दौरान बेटे की तबियत बिगड़ने से और वह गिर पड़ा। ट्रामा सेंटर ले जाते समय उसकी मौत हो गई।

केस 3-22 दिसंबर 2023 को इलाज के अभाव में हरदोई निवासी रघुनंद सिंह की मौत हो गई। परिजनों का आरोप था कि मरीज को करीब 13 घंटों तक एक विभाग से दूसरे विभाग भेजा गया। इलाज के अभाव में उसकी मौत हो गई।

लगातार लग रहे लापरवाही के आरोप

राजधानी के मेडिकल संस्थानों में हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। हाल ही में लोहिया संस्थान में भी डायलिसिस के दौरान बड़ी लापरवाही का मामला सामने आया था। जिसमें जांच कराने के बाद एक संविदा कर्मचारी को हटाकर कर्तव्यों की इतिश्री कर ली गई। कुछ ऐसा ही हाल केजीएमयू और ट्रामा सेंटर का भी है, जहां रोजाना 400 से अधिक मरीज इलाज के लिए आते हैं, जिसमें गंभीर मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा होती है। वहीं, आये दिन परिजनों द्वारा अस्पताल प्रशासन पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया जाता है। पर इसके बावजूद संस्थान कोई उचित कदम नहीं उठाता है। कई बार जांच कमेटी बनाई जाती है, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता। खानापूर्ति के नाम ज्यादातर किसी संविदाकर्मी पर गाज जरूर गिरा दी जाती है। वहीं, कई बार तो परिजनों के आरोपों को ही सिरे से नकार दिया जाता है। ऐसे में परिजनों को रजिस्टे्रशन से लेकर भर्ती और बेड पाने तक के लिए संघर्ष करना पड़ता है, जिसमें कई बार मरीज की जान इलाज शुरू होने से पहले ही चली जाती है।

शासन का आदेश भी नहीं मानते

सरकारी संस्थानों में लगातार लापरवाही की शिकायतों को लेकर कई बार शासन-प्रशासन सख्त आदेश दे चुका है। जहां खुद डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक भी निरीक्षण के दौरान डॉक्टर्स को मरीज को तुरंत इलाज देने के निर्देश दे चुके हैं, ताकि किसी मरीज को कोई दिक्कत न हो। पर इसके बावजूद हालातों में कोई सुधार नहीं हो रहा है।