लखनऊ (ब्यूरो)। अगर किसी मरीज को पॉलिसाइथीमिया ब्लड कैंसर है, तो उसका हीमोग्लोबिन 20 से 22 ग्राम तक पहुंच जाता है, जबकि सामान्य लोगों का हीमोग्लोबिन 13 से 16 के बीच होता है। हिमोग्लोबिन हाई होने से ब्लड गाढ़ा होने लगता है, जिससे ब्लड जमने का खतरा बढ़ जाता है, स्ट्रोक, पैरालिसिस, आंखों के पर्दे में ब्लड जमना या बीपी हो सकता है। अगर समय रहते इलाज नहीं किया जाये तो एक्यूट ल्यूकेमिया हो सकता है, इसलिए शुरुआती इलाज में ब्लड को निकालकर फेंक दिया जाता है, जिसे फ्लेबोटमी कहते हैं। ट्रांसफ्यूजन विभाग का इसमें अहम रोल होता है। यह जानकारी बुधवार को केजीएमयू के ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन द्वारा आयोजित ट्रांसकॉन 2023 की 48वीं वार्षिक कान्फ्रेंस ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन इम्यूनोहिमेटोलॉजी की कार्यशाला के दौरान आयोजन अध्यक्ष डॉ। एके त्रिपाठी ने दी।
ब्लड क्रास चेक करना बेहद जरूरी
डॉ। एके त्रिपाठी ने आगे बताया कि ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग का काम सिर्फ खून देना ही नहीं है, बल्कि मरीजों की जान बचाना भी है। गायनी से लेकर ब्लड कैंसर के मरीजों का जीवन बचाया जा सकता है। ट्रांसप्लांट में भी विभाग की भूमिका अहम है। वहीं, आयोजन सचिव और विभागाध्यक्ष डॉ। तुलिका चंद्रा ने बताया कि सड़क हादसे, ऑपरेशन या फिर एनीमिया पीड़ित मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए ट्रांसफ्यूजन की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है। इससे पहले खून की क्रास जांच अहम होती है। इसमें मरीज का ब्लड सैंपल व ब्लड बैंक में रखे खून को आपस में मिलाकर जांच की जाती है। इसमें जरा सी चूक से मरीज की जान जोखिम में पड़ सकती है। इसलिए जांच में ब्लड ग्रुप, एंटीबाडी समेत दूसरे एंटीजेन की जांच की जाती है। ऐसे में न्यूक्लीयर एसिड टेस्ट से परखा खून अधिक सुरक्षित है। क्रास मैच में चूक से करीब एक प्रतिशत मरीजों की जान खतरे में पड़ जाती है। सावधानी से इसे रोका जा सकता है।
मरीजों को मिलता है फायदा
इस दौरान मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने कहा कि जरूरतमंदों की जिंदगी बचाने के लिए स्वैच्छिक रक्तदान करें। अभी भी युवाओं की रक्तदान में भागीदारी कम है। हालांकि, धीरे-धीरे लोगों में जागरूकता बढ़ रही है। वहीं, केजीएमयू वीसी डॉ। सोनिया नित्यानंद ने कहा कि इस तरह की कार्यशाला से ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। नई तकनीक सीखने का अवसर मिलता है, जो मरीजों के इलाज में काम आ सकती है।