लखनऊ (ब्यूरो)। हिंदी से ही देश का मान, सम्मान और स्वाभिमान है। समय के साथ हिंदी के प्रति लोगों में प्रेम भी बढ़ा है। जिसके तहत देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हिंदी का डंका बज रहा है। इसमें साहित्यकार खासतौर पर विशेष योगदान दे रहे हैं। राजधानी के ही कई नामी साहित्यकार हैं जो विदेशों में रह रहे भारतीयों के बीच हिंदी का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। पेश है हिंदी दिवस पर अनुज टंडन की स्पेशल रिपोर्ट

यंगस्टर्स को जोड़ रहे हिंदी से

मैं 1996 से मंच पर हूं और अपनी कविताओं के माध्यम से विदेशों में जा रही हूं। हिंदी का मतलब प्योर हिंदी नहीं बल्कि आम बोलचाल है। अपनी बात को कैसे लोगों तक पहुंचायें इस पर ध्यान रहता है। हम हिंदी को संकुचित न करके अन्य को जोड़कर सर्व सुलभ कर रहे हैं और इसे कविता के रूप में पेश कर रहे हैं। गाने का असर लोगों पर ज्यादा होता है। कविता ऐसी विधा है जिसके माध्यम से लोगों को देश-विदेश तक जोड़ा जा सकता है। बाहर भी हमारे देश के ही लोग हैं। उनकी आत्मा भारत में ही रहती है। प्रवासी भारतीयों को अपनी भाषा से प्यार है। वे अपनी भाषा में बात करते हैं। हम वहां के यंगस्टर्स को भाषा से जोड़ते है। संस्कृति से जोड़ते हैं। हिंदी भाषा को लेकर प्रोग्राम करते हैं। कवि सम्मेलन आदि करते हैं। बच्चों को भी साथ लेकर आते हैं। आईसीसीआर, दिल्ली से अधिकतर प्रोग्राम होते हैं। भजन, कविता, निबंध आदि लिखवाते हैं। जो गलती होती उसमें सुधार करवाते है ताकि हिंदी को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।

-डॉ। सुमन दुबे, कवियित्री

वर्तमान साहित्य की चर्चा करते हैं

हिंदी भाषी जहां-जहां गये हैं, उनमें हिंदी के प्रति प्यार बरकरार है। जिसके लिए वे विदेश में भी साहित्यकारों और कवियों आदि को बुलाते रहते हैं। मैं भी कई कवि सम्मेलनों के लिए विदेश गया हूं। वहां जाकर देखता हूं कि अंग्रेज हिंदी सीखकर दूसरों को हिंदी सीखा रहे हैं। वहां के मंदिरों में भी साहित्यिक प्रोग्राम होते हैं। इस दौरान वहां के युवाओं से खातसौर पर वर्तमान साहित्य को लेकर चर्चा करता हूं। वहां के बच्चों से बात करके उनको हिंदी के बारे में बताता हूं कि यह कितनी समृद्ध भाषा है। इसके अलावा, वहां हिंदी अखबार, मैग्जीन आदि भी निकलते हैं। उसमें भी कॉलम लिखता हूं। मेरा मानना है कि आप जिस देश भी देश में रह रहे हैं वहां की भाषा जरूर जानें, लेकिन साथ ही अपनी हिंदी भाषा का भी मौलिक ज्ञान होना चाहिए क्योंकि अब हिंदी ग्लोबल हो चुकी है।

-डॉ। सूर्य कुमार पांडे, साहित्यकार

विदेशों में कर रहे प्रचार

मैं यूएस, कनाडा, दुबई, इंग्लैंड समेत एक दर्जन से अधिक देशों में हिंदी को प्रमोट कर रहा हूं। हिंदी महज भाषा नहीं है। विदेशों में रह रहे भारतीय को अपनी पहचान बनाये रखने के लिए हिंदी बचाये रखना होता है। अकेले यूएस में ही करीब 50 लाख भारतीयों में लगभग 15 लाख से अधिक भारतीय हिंदी बोलते हैं। वहां की कई यूनिवर्सिटीज में हिंदी बतौर सब्जेक्ट पढ़ाई जा रही है। जिसमें हम जैसे साहित्यकारों का भी काफी योगदान है। विदेशों में शो के दौरान हम लोगों से मिलकर हिंदी को और प्रमोट करने के लिए कहते है। इसके अलावा हम ऑनलाइन माध्यम से भी जुड़कर हिंदी को लेकर काम कर रहे हैं। वहां पर कई हिंदी भाषी मैग्जीन आदि निकल रही हैं, जो एक अच्छा प्रयोग भी है। लोगों को हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए।

-सर्वेश अस्थाना, हास्य कवि