- एसजीपीजीआई के डॉक्टर्स की मानी जा रही बड़ी उपलब्धि

- बना इस तकनीक को यूज करने वाला देश का पहला संस्थान

LUCKNOW: हार्ट सर्जरी के क्षेत्र में संजय गांधी पीजीआई के डॉक्टर्स ने नया कीर्तिमान स्थापित किया है। जिसके बाद अब हार्ट के मरीजों का बिना सीना खोले ही हार्ट का वाल्व बदला संभव होगा। इस तकनीक 'ट्रांस कैथेटर एरोटिक वाल्व इंप्लांट' को शुरू करने वाला एसजीपीजीआई देश का पहला संस्थान बन गया है।

दो विभागों ने मिलकर की सर्जरी

इस उपलब्धि के बारे में संस्थान के निदेशक प्रो। राकेश कपूर, कार्डियोलॉजी विभाग के एचओडी प्रो। पीके गोयल और चिकित्सा अधीक्षक प्रो। अमित अग्रवाल ने कहा कि तकनीक को स्थापित करने में कार्डियक सर्जन प्रो। एसके अग्रवाल, कार्डियोलॉजिस्ट प्रो। रूपाली के अलावा कैथ लेब के स्टाफ का पूरा सहयोग रहा है। इस तकनीक का सबसे अधिक लाभ उन लोगों को होगा जिनमें हार्ट सर्जरी संभव नहीं थी और वॉल्व बदलना भी जरूरी है। इस तकनीक का इस्तेमाल कर अब हर उम्र के व्यक्ति का वॉल्व बदलना संभव हो सकेगा।

7म् साल के मरीज का बदला वाल्व

संस्थान में चार फरवरी को 7म् वर्ष के पेशेंट में इंटरवेंशनल तकनीक का इस्तेमाल करके ही वॉल्व बदला गया। उनका एओर्टिक वॉल्व काम नही कर रहा था। इस परेशानी को 'एओर्टिक स्टोनोसिस' कहते हैं। सामान्य तौर पर वॉल्व के खराब होने पर सीने को खोल कर पुराने वॉल्व को निकाल कर नया वॉल्व लगाया जाता है। इसे ओपेन हार्ट सर्जरी कहते हैं। लेकिन ओपेन हार्ट सर्जरी के अपने रिस्क हैं।

लेकिन इस नई तकनीक में भी एंजियोप्लास्टी की तरह ही जांघ के पास फीमोरल आर्टरी में छह मिमी। का छेद बना कर आर्टरी के जरिए कैथेटर में वॉल्व को लगाकर दिल में डाला जाता है जो वहां पहुंचकर ख्9 मिमी। का वॉल्व हो जाता है। यह वाल्व निटिनॉल पदार्थ का बना होता है जो पानी में सिकुड़ जाता है और शरीर के तापमान पर फैल जाता है।

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जीवनदायी साबित होगी नई तकनीक

इस तकनीक को स्थापित करने वालीटीम में शामिल प्रो। रूपाली खन्ना ने बताया कि अधिक उम्र, फेफड़े की बीमारी, किडनी की कार्यक्षमता में कमी, शारीरिक रूप से कमजोर मरीजों की ओपेन हार्ट सर्जरी संभव नहीं होती। ऐसे में वॉल्व बदलने की यह तकनीक काफी कारगर साबित होगी। उन्होंने बताया कि उम्र बढ़ने के साथ वॉल्व में कैल्शियम जमा हो जाता है जिससे उसके खुलने और बंद होने की गति में कमी आ जाती है। इससे दिल में खून भरने लगता है जो हार्ट फेल्योर का कारण बन सकता है। देखा गया है कि 70 की उम्र के बाद तीन से पांच फीसद लोगों के एओरटिक वॉल्व के काम में कमी आ जाती है। उन्होंने बताया कि वॉल्व खराब होने पर सांस फूलने लगती है। कई बार बैठे बैठे सांस फूलने और सीने में दर्द की परेशानी होती है। इकोकार्डियोग्राफी से इस समस्या का पता चलता है।