- केजीएमयू में 1995 से हो रहा है हाथों का रीइंप्लांट
- अब प्लास्टिक सर्जरी विभाग को एडमिनिस्ट्रेटिव परमीशन और एक्रीडेशन का इंतजार
- केजीएमयू में 5वें डॉ। एसके भटनागर व्याख्यानमाला का आयोजन
LUCKNOW: दुर्घटना में अपने दोनों हाथ गंवाने वाले लोगों को हम फिर से हाथ लगा सकते हैं। अब ऐसे लोगों में फिर से हाथों को ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। यह हाथ ब्रेन डेड व्यक्ति से निकाले जा सकते हैं। जिससे बाद वह से अपनी लाइफ अच्छे से जी सकता है। यह जानकारी सैटरडे को केजीएमयू में अमृता इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस रिसर्च सेंटर के डॉ। सुब्रमणिया अय्यर ने दी। डॉ। सुब्रमणिया ने ही इंडिया में पहली बार हैंड ट्रांसप्लाट की शुरुआत की थी।
नहीं होते तैयार
सेल्बी हॉल में ऑर्गनाइज पांचवी डॉ। एसके भटनागर व्याख्यान माला में डॉ। सुब्रमणिया अय्यर ने बताया कि किडनी और लिवर ट्रांसप्लांट की अपेक्षा हाथ या चेहरे का ट्रांसप्लांट करना आसान है। लेकिन इसके लिए ब्रेन डेड मरीज के परिवार के लोग जल्दी हाथ डोनेट करने के लिए तैयार नहीं होते क्योंकि लिवर या किडनी से अंग निकालने के बाद बॉडी में कोई चेंज पता नहीं चलता। लेकिन हाथ काटकर निकालने पर वह दिखता है। यही कारण है कि हमारे यहां हाथों का ट्रांसप्लांट इतना अधिक नहीं होता।
टीम वर्क से सफल होता है ट्रांसप्लांट
उन्होंने कोचीन स्थित अमृता इंस्टीट्यूट में अब तक दो लोगों को हाथ लगाए थे। दोनों ही व्यक्ति ठीक हैं और कई अन्य वेटिंग लाइन में कैडेवर से हाथ मिलने का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि विश्व में अब तक 80 लोगों के हैंड ट्रांसप्लांट किए गए हैं, जिनमें से दो उन्होंने किया है। डॉ। सुब्रमणिया के अनुसार, एक ट्रांसप्लांट के दौरान प्लास्टिक सर्जन, एनेस्थेटिस्ट, नेफ्रोलॉजिस्ट, रिहैबिलिटेशन एक्सपर्ट, ट्रेंड टेक्नीशियन की आवश्यक्ता होती है। साथ ही हाथ निकालने के छह घंटे के अंदर हाथ लग जाना चाहिए। जब पहला ट्रांसप्लांट 2013 में हुआ था तो उसमें 16 सर्जन, 10 एनेस्थेटिस्ट की टीम के साथ टेक्नीशियन की टीम ने सहयोग किया था।
केजीएमयू भी प्रयासरत
केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ। एके सिंह ने बताया कि केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग में नार्थ इंडिया में पहली बार 1995 में उन्होंने हैंड रीइंप्लांट शुरू किया था। उसके बाद हाथों का दोबारा जोड़ने की सर्जरी तो की जा रही हैं किसी और हाथ दूसरे में लगाने का काम नहीं हो रहा है। एडमिनिस्ट्रेशन से परमीशन और एक्रीडेशन मिलने के बाद कैडेवर से हाथ मिलते ही यहां भी ट्रांसप्लांट शुरू किया जा सकेगा। उसके अलावा सभी चीजे यहां हैं। यहां पर भी फेस, हैंड, ट्रैकिया, पैंक्रियाज, सहित अन्य ट्रांसप्लांट किए जा सकेंगे।
आता है अधिक खर्च
डॉ। सुब्रमणिया ने बताया कि अमृता इंस्टीट्यूट में लगभग 15 लाख का पहले एक माह का खर्च आया था। उसके बाद हर साल लगभग डेढ़ से दो लाख की दवाएं खानी होती हैं। डॉ। एके सिंह ने बताया कि ट्रांसप्लांट के बाद इम्युनोसप्रेशन दवाएं जिंदगी भर खानी पड़ती हैं। ये दवाएं आगे चल कर सस्ती होंगी। जिसके बाद सस्ती दरों पर ट्रांसप्लांट होगा। उनहोंने बताया कि केजीएमयू में परमीशन मिलने पर यहां खर्च काफी कम आएगा। सिर्फ दवाओं का ही खर्च आएगा।
ट्रैकिया का ट्रांसप्लांट होगा शुरू
डॉ। सुब्रमणिया अय्यर ने बताया कि हाथों के ट्रांसप्लांट के बाद वह अपने हॉस्पिटल में ट्रैकिया के ट्रांसप्लांट की तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल ट्रैकिया को हाथों की स्किन के नीचे रखकर ग्रो कराया जा रहा है। सारे परीक्षण ठीक रहे तो जल्द ही मरीज को इसे ट्रांसप्लांट कर दिया जाएगा। जिसके बाद इंडिया ट्रैकिया के ट्रांसप्लांट में सक्षम हो जाएगा।