लखनऊ (ब्यूरो)। रमजान के मुकद्दस महीने में बच्चों का उत्साह भी देखते ही बन रहा है। शहर के ऐसे कई बच्चे हैं जिन्होंने जब पहली बार रोजा रखा तो उनके रिश्तेदार उनका हौसला बढ़ाने पहुंचे और रोजाकुशाई में गिफ्ट्स दिए। किसी ने 9 साल की उम्र में रोजा रखा तो किसी ने 11 साल में अपना पहला रोजा रखकर सबाब कमाया। दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने ऐसे ही बच्चों से बातकर उनका अनुभव जाना
इस साल मैंने अपना पहला रोजा रखा। रोजाकुशाई में अम्मी ने नए कपड़े बनवाए। पापा, दादा और चाचू ने पैसे दिए। दिनभर अम्मी ने खूब सपोर्ट किया। खेलकर और सोकर अपना पहला दिन गुजारा। रोजा सबको सब्र सिखाता है। मैंने अल्लाह से दुआ मांगी कि मेरे पास ढेर सारी किताबें आएं और पढऩे में दिल लगे।
-सामिया उस्मानी, गोमतीनगर
इस साल मैंने अपना पहला रोजा रखा है। रोजा रखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। अम्मी और बहन ने पूरा दिन ख्याल रखा। अम्मी ने रोजाकुशाई कराई तो खूब सारे गिफ्ट्स भी मिले। मुझे घरवालों के साथ सहरी और इफ्तार करके बहुत अच्छा लगा। रोजा सब्र सिखाता है और मैं कोशिश करूंगी कि हर साल रखूं।
-हुमैरा फातिमा, हैदर मिर्जा रोड, गोलागंज
इस रमजान मैंने पहले रोजे के दिन खुद ही सहरी कर ली थी। अम्मी अभी रोजा रखवाना नहीं चाह रही थीं, लेकिन शौक की वजह से मैंने रखा। फिर पूरे दिन सिपारा पढ़ा, थोड़ा कार्टून देखा। शाम को थोड़ी भूख लगने लगी थी, लेकिन अम्मी ने सब्र सिखाया। मुझे पहला रोजा रखकर बहुत खुशी हुई। अल्लाह सबको खुश रखे।
-इस्मत जहरा, बुनियादबाग, सआदतगंज
घर के सब बड़े लोगों को रमजान में रोजा रखते हुए देखती थी तो मन में आता था कि मैं भी जल्दी से बड़ी होकर रोजा रखूं। इस साल मेरी यह ख्वाहिश पूरी हुई। मैंने अपना पहला रोजा रखा। इफ्तार में अम्मी ने मेरी पसंदीदा चीजें बनाईं और पहली बार रोजा रखने के लिए गिफ्ट्स भी मिले। बहुत मजा आया।
-मर्जिया हुसैन, पीर बुखारा, चौक
मैंने अपना पहला रोजा नमाज, सिपारा पढ़कर और दोस्तों के साथ थोड़ा खेलकर बिताया। खेलने से थोड़ी प्यास भी लगी तो मैं सो गया। मुझे रमजान में सबसे ज्यादा इफ्तार पसंद है। घरवालों के साथ बैठकर एक साथ इफ्तार करके बहुत अच्छा लगता है। मुझे अपना पहला रोजा हमेशा याद रहेगा।
-मोहम्मद इब्राहिम हैदर, हाता फकीर मोहम्मद, गोलागंज