लखनऊ ( ब्यूरो)। आईपीएस रूचिता चौधरी के मुताबिक 1991 में बतौर पीपीएस पुलिस सेवा में ज्वाइन किया। एक ऐसा विभाग, जो पुरूष प्रधान है। यहां काम करने के अपने अलग ही चैलेंज हैं। यहां कॉमन वॉशरूम से लेकर हेल्थ प्रॉब्लम की समस्या होती है। इसके अलावा नाइट ड्यूटी के साथ कहीं बाहर जाना हो तो एक महिला के तौर पर कई दिक्कतें होती हैं। कई बार परिवार के किसी सदस्य को लेकर भी जाना पड़ता है। ऐसे में परिवार के लोग भी परेशान होते हैं, लेकिन इसके बावजूद अपना फर्ज पूरी ईमानदारी के साथ निभा रही हूं।
डीसीपी रूचिता चौधरी बताती हैं कि उनके पास फैमिली प्रॉब्लम के केस आते हैं। इसमें पति-पत्नी, मां-बेटी व बेटे, बहनों में दिक्कत, सास-बहू, लिव-इन रिलेशन समेत गलफ्रेंड ब्वॉयफ्रेंड संबंधित केस काफी आते हैं। इनकी मदद हम लोग काउंसिलिंग के तहत करते हैं। जब कोई केस आता है तो उस समस्या को समझते हुए काउंसिलिंग की टीम बनाई जाती है। जो दोनों पार्टी को समझाती है। अगर दोनों पक्ष संतुष्ट होते हैं तभी उस केस को क्लोज करते हैं। कई बार आप दूसरों के लिए अच्छा काम करते हैं, तो दूसरे बुरा मान जाते हैं। इसके बावजूद हम अपना काम करते रहते हैं।
किरण बेदी से मिली प्रेरणा
डीसीपी एनिमल लवर होने के साथ घर व ऑफिस दोनों में तालमेल बहुत बेहतरी से निभा रही हैं। वो बताती हैं कि उनके फादर प्रशासनिक सेवा से रिटायर्ड हुए हैं। उसी दौरान किरण बेदी से मिलना हुआ। उनसे प्रेरणा मिली, जिसके बाद आगे चलकर पुलिस में ज्वाइन किया। यहां पर हर दिन नया होता है और हर दिन नया चैलेंज आता है। जो मुझे और बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है।
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