लखनऊ (ब्यूरो)। राजधानी में एयर पॉल्यूशन लगातार बढ़ रहा है, जो बच्चों की सेहत के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक है। इससे बच्चों के ओवरऑल डेवलपमेंट पर भी असर पड़ता है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दूषित हवा पांच साल से कम उम्र के औसतन 464 बच्चों की मौत का कारण बन रही है। डॉक्टर्स का मानना है कि बच्चों की हाइट कम होती है जिससे वे डस्ट पार्टिकल ज्यादा इनहेल करते हैं, जिसकी वजह से बच्चे बीमारी की जद में ज्यादा आते हैं।

बच्चों में बढ़ रहीं समस्याएं

संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से प्रकाशित हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट की स्टेट ऑफ द ग्लोबल एयर-2024 के अनुसार, दूषित हवा के कारण 2021 में भारत में हर उम्र के करीब 21 लाख लोगों की मौत हुई थी। वहीं, दूषित हवा से बच्चों की मौत का आंकड़ा दूषित पानी और गंदगी से होने वाली मौतों से भी कई गुना ज्यादा है। बच्चों पर दूषित हवा के साइड इफेक्ट्स सबसे ज्यादा देखने को मिले हैं। वहीं, राजधानी के डफरिन, सिविल, केजीएमयू, लोहिया संस्थान समेत अन्य अस्पतालों में आने वाले बच्चों में एलर्जी, अस्थमा आदि की समस्या ज्यादा बढ़ रही है।

केजीएमयू

बच्चों में अस्थमा, एलर्जी की समस्या ज्यादा

केजीएमयू के रेस्पेरेट्री मेडिसिन विभाग के हेड डॉ। सूर्यकांत ने बताया कि एयर पाल्यूशन का असर बच्चों पर दो कारणों से सबसे ज्यादा होता है। पहला, बच्चों के फेफड़ों का विकास 18-21 वर्ष तक होता है। जिसके कारण बच्चों में निमोनिया, टीबी फ्लू, एलर्जी, अस्थमा और अन्य समस्याएं ज्यादा देखने को मिलती है। दूसरा, बच्चों की हाइट कम होती है। ऐसे में एयर पाल्यूटेंट 2.5 पीएम और 10 पीएम बच्चों के लिए बेहद खतरनाक हैं। वायु प्रदूषण में जितने भारी और विषैले तत्व होते हैं, वे नीचे रहते हैं, जिससे वे इनको ज्यादा इनहेल करते हैं। भारत में हर साल करीब 1 लाख बच्चों की मौत इसी कारण हो रही है। हमारे यहां ओपीडी में रोजाना ऐसे 4-5 बच्चे आ रहे हैं, जिनकी उम्र 12 से 18 साल होती है। दरअसल, कोविड के बाद फेफड़े ज्यादा कमजोर हो गए हैं, जिसकी वजह से एयर पाल्यूशन के कारण समस्या ज्यादा बढ़ रही है।

बच्चों की हाइट कम होना और लंग पूरी तरह से विकसित न होना इसके पीछे की बड़ी वजह है, जिससे उनमें एलर्जी, टीबी, निमोनिया आदि ज्यादा देखने को मिलता है।

- डॉ। सूर्यकांत, केजीएमयू

संजय गांधी पीजीआई

बच्चों की हाइट कम होती है

संजय गांधी पीजीआई में सीनियर चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ। पियाली भट्टाचार्य ने बताया कि एयर पाल्यूशन का इफेक्ट बच्चों में ज्यादा होता है क्योंकि बड़ों के मुकाबले बच्चे जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं। चूंकि उनके रेस्पेरेट्री टैक्ट छोटे होते हैं, इससे हानिकारक पाल्यूटंट्स लंग्स में जल्दी पहुंच जाते हैं। ऐसे में ब्रेन, हार्ट समेत अन्य अंगों में ऑक्सीजन सप्लाई कम हो जाती है, जिससे अन्य अंगों पर भी बुरा असर पड़ता है। वहीं, लंग्स से जुड़ी बीमारियां जैसे अस्थमा व एलर्जी का ज्यादा असर होने से अन्य बीमारियां भी घेर लेती हैं। ऐसे में पैरेंट्स को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।

बच्चे तेजी से सांस लेते हैं और उनके रेस्पेरेट्री ट्रैक्ट छोटे होते हैं, जिससे पाल्यूटेंट्स जल्दी लंग्स में पहुंच जाते हैं, जिससे समस्या और बढ़ जाती है। ऐसे में पैरेंट्स को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।

- डॉ। पियाली भट्टाचार्य, पीजीआई

लोहिया संस्थान

एलर्जी वाले केस ज्यादा आ रहे

लोहिया संस्थान के पीडियाट्रिक विभाग के हेड डॉ। पीयूष उपाध्याय के मुताबिक, बच्चों में एलर्जी की समस्या पहले नहीं थी, लेकिन एक्यूआई बढ़ने से यह समस्या बढ़ती जा रही है। चूंकि बचपन से एक्सपोजर ज्यादा हो रहा है और बच्चों की लंग कैपेसिटी कम होती है इसलिए बच्चे जबतक एडल्ट होते हैं तब तक लंग कैपेसिटी प्रभावित हो चुकी होती है। हालांकि, यह केवल एयर पाल्यूशन की वजह से हो, यह पूरी तरह से नहीं कहा जा सकता क्योंकि मल्टीपल फैक्टर की वजह से बीमारियां बढ़ रही हैं। ओपीडी में ऐसे 10-15 बच्चे रोज आ रहे हैं।

एयर पाल्युशन बढ़ने के साथ ही बच्चों में एलर्जी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। चूंकि बच्चों के लंग्स पूरी तरह से विकसित नहीं होते इसलिए समस्या ज्यादा होती है।

- डॉ। पीयूष उपाध्याय, लोहिया संस्थान

डफरिन अस्पताल

डफरिन अस्पताल में चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ। सलमान बताते हैं कि आजकल बच्चों में एलर्जी की समस्या ज्यादा बढ़ रही है। ओपीडी में 5-10 पर्सेंट बच्चे एलर्जी वाले आ रहे हैं, लेकिन यह एयर पाल्यूशन के कारण है, ऐसा कहना मुश्किल है। हालांकि, यह कई कारणों में से एक हो सकता है।

इस तरह करें बचाव

- जितना हो सके बच्चों को गोद में रखें।

- धूप न हो तो उन्हें घर से बाहर न जाने दें।

- धूल व प्रदूषण वाली जगहों पर ले जाने से बचें।

- घर में कोयला, लकड़ी, अगरबत्ती आदि जलाने से बचना चाहिए।

- बच्चों के आसपास स्मोकिंग आदि न करें।