लखनऊ (ब्यूरो)। अब गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीजों को दवा या पोषण देने के लिए बार-बार निडिल लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि संजय गांधी पीजीआई के डॉक्टर्स द्वारा मुख्य नस में सुई डालने की विशिष्ट विधि खोजी है। ऐसे में निडिल के कम या ज्यादा अंदर तक जाने का खतरा भी कम हो जाएगा। इसके लिए बुधवार को संस्थान को पेटेंट भी हासिल हो गया है। भारतीय पेटेंट कार्यालय ने पत्र जारी कर दिया है। निदेशक डॉ। आरके धीमन ने टीम को बधाई दी और बताया कि नई तकनीक गंभीर मरीजों के लिए वरदान से कम नहीं है।
इनके नाम मिला पेटेंट
इस विशेष निडिल के लिए क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के डॉ। तन्मय घटक, हेड डॉ। आरके सिंह और पूर्व हेड डॉ। एके बैरोनिया के नाम से यह पेटेंट मिला है। संस्थान के डॉक्टरों ने वर्ष 2013 में तकनीक खोजी और 2016 में पेटेंट के लिए आवेदन किया गया था। पर पेंटेट 23 जुलाई 2024 को मिला।
मरीजों को मिलेगी बड़ी राहत
डॉ। तन्मय घटक ने बताया कि बेहद गंभीर मरीजों को क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग में भर्ती किया जाता है। इन मरीजों को दवा से लेकर खाना तक कैथेटर के माध्यम से देना पड़ता है। इसके लिए गले के पास या फिर पैर की मोटी नस का सहारा लिया जाता है। चूंकि गले के पास सुई या सेंट्रल वेनस कैन्युलेशन (सीवीसी) डालना काफी खतरे वाला होता है। जिसकी वजह से कई अंग क्षतिग्रस्त होने की आशंका बनी रहती है। जिसको देखते हुए पहले अल्ट्रासाउंड आधारित सुई डालने की तकनीक उपयोग में लाई गई। पर इसमें अड़चन थी कि सुई की नोक नजर नहीं आती थी। लिहाजा नस की दीवार क्षतिग्रस्त होने का खतरा बना रहता है। इस संकट से निपटने के लिए सुई पर माप अंकित करने का प्रयोग किया गया। सुई पर हर आधे सेंटीमीटर पर निशान लगाए गए। अल्ट्रासाउंड के माध्यम से गहराई मापी गई। इससे सुई डालने का अंदाजा हो जाता है।