लखनऊ (ब्यूरो)। दीवाली से हमें स्वच्छता की सीख मिलती है। दीवाली के दौरान होने वाली सफाई, पुताई और रंगाई से निकलने वाली धूल और गर्द से सांस के रोगियो की तकलीफ बढ़ जाती है। आतिशबाजी ये भी वायु प्रदुषण बढ़ जाता है, जो कि सांस के रोगियों के लिए परेशानी का कारण बनता है। आतिशबाजी में होने वाले प्रमुख प्रदूषण में जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण है।
श्वसन तंत्र पर करता असर
केजीएमयू के रेसपेरेट्री मेडिसिन विभाग के एचओडी प्रो। सूर्यकांत ने बताया कि सांस के रोगी जहां तक हो घर के अदर रहें, पानी और पेय पदार्थों का भरपूर सेवन करें और भाप लें। दमा के रोगी अपनी दवायें व इनहेलर नियमित रूप से लें और जरूरत पड़ने पर तुरंत अपने चिकित्सक से सलाह लें। धूल, गर्दा, व पेंट की खुशबू से सांस का दौरा पड़ सकता है। वहीं, हाई ब्लड प्रेशर,स्ट्रोक और सभी हृदय रोगियों को पटाखों की जबर्दस्त ध्वनि सुनने से दिल पर जोर पड़ता है। इसलिए हृदय रोगियो को दूर से ही धमाकेदार आतिशबाजी को देखना चाहिए।
आंखों का बचाव करें
पटाखा आंख में लगने पर आंख को रगड़ना या मलना नही चाहिए। साथ ही आंख मे धसी चीज को निकालने की कोशिश नही करनी चाहिए। आंख जल जाने पर अपने हाथ को साबुन से अच्छी तरह धोएं फिर जली आंख को पानी से दस मिनट तक धोये और शीघ्र डाक्टर को दिखाएं। वहीं पटाखे जलाते समय ढीले-ढाले और सिंथेटिक कपड़ों के स्थान पर चुस्त और मोटे सूती कपड़े पहनें।
जलने पर ऐसे करें बचाव
- जली हुई जगह पर से तुरंत कपड़ा हटाएं
- जली हुई जगह पर ठंडा पानी डालें
- जले स्थान पर मक्खन, चिकनाई, टेल्कम पाउडर या अन्य कोई चीज न लगायें
- आतिशबाजी खुले स्थान पर सावधानी से जलाएं
- पानी या बालू से भरी बाल्टी को पास रखें
- डाक्टर से पूछ कर ही दवा लें