लखनऊ (ब्यूरो)। वजीरबाग सआदतगंज निवासी मो। वसीम और उनकी पत्नी तरन्नुम वसीम दिव्यांग हैं। उनका जीवन चुनौतियों से भरा है। जीविका का कोई ठोस साधन नहीं है, इसके बावजूद दंपति ने 70 से अधिक बच्चों को शिक्षित बनाने की जिम्मेदारी उठा रखी है। इसके साथ ही उन्होंने एक दर्जन से अधिक बच्चों का स्कूल में एडमिशन भी कराया है और उनका भी पूरा खर्च खुद उठा रहे हैैं। समय-समय पर दंपति अन्य पैरेंट्स की काउंसिलिंग भी करते हैैं और उन्हें शिक्षा का महत्व बताते हैैं, ताकि कोई बच्चा अशिक्षित न रहे।
कोविड के समय हुई शुरुआत
मो। वसीम ने बताया कि जब कोविड की पहली लहर आई तो मोहल्ले के कई गरीब परिवार इससे ग्रसित हुए। जिसकी वजह से उनके घरों के बच्चों की पढ़ाई छूट गई। बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए उन्होंने व उनकी पत्नी ने बीड़ा उठाया। दंपति ने जब अपने अभियान की शुरुआत की तो उस दौरान सिर्फ दो बच्चे आए, लेकिन गुजरते वक्त के साथ बच्चों की संख्या बढ़ती गई जो अब 70 हो गई है।
इन विषयों की दे रहे जानकारी
मो। वसीम ने बताया कि बच्चों को हिंदी, इंग्लिश, मैथ्स समेत कई अन्य विषयों की जानकारी दे रहे हैैं। इसके साथ ही सप्ताह में एक दिन एक्टिविटी क्लासेस भी लगाते हैैं जहां बच्चों को कंप्यूटर, आर्ट्स इत्यादि की जानकारी देते हैैं। बच्चों में भी पढ़ाई को लेकर जोश होने की वजह से दंपति का हौसला मजबूत रहता है।
छोटे से कमरे में तीन शिफ्ट में पढ़ाई
मो। वसीम ने बताया कि खुद के जीवन-यापन के लिए वे लोग सिर्फ उन बच्चों से फीस लेते हैैं, जिनके परिवार संपन्न हैं, जबकि 70 बच्चों को पूरी तरह से शिक्षा निशुल्क देते हैैं। उनके पास एक छोटा सा कमरा है, जिसमें तीन शिफ्ट में क्लासेस लगाती हैैं। स्पेस की कमी के कारण बच्चों की संख्या बढ़ाने में समस्या आ रही है। उनका कहना है कि अगर स्पेस की समस्या दूर हो जाए तो अधिक से अधिक गरीब बच्चों की एजुकेशन की व्यवस्था की जा सकती है।
पैरेंट्स की करते हैं काउंसिलिंग
तरन्नुम ने बताया कि उनकी ओर से समय-समय पर पैरेंट्स की भी काउंसिलिंग की जाती है। पैरेंट्स को बताया जाता है कि उनके बच्चे की एजुकेशन का स्टेटस क्या है। इसके साथ ही उन्हें इस बात के लिए भी प्रेरित किया जाता है कि बच्चों को पढ़ाना क्यों जरूरी है। कई बार देखने में आता है कि कई लोग बच्चों की एजुकेशन को जरूरी नहीं मानते हैैं, जो सरासर गलत है। हर एक बच्चे की एजुकेशन बहुत जरूरी है।
कहीं से कोई मदद नहीं
दंपति ने बताया कि उनके एजुकेशन अभियान के लिए कहीं से किसी भी प्रकार की कोई फाइनेंशियल हेल्प नहीं मिलती है। जीविकोपार्जन के लिए जो राशि कमाते हैैं, उसके एक हिस्से को गरीब बच्चों की शिक्षा में लगाते हैैं। कई बार यह स्थिति आ जाती है कि महीने के आखिर में राशन तक खत्म हो जाता है, लेकिन वे बच्चों की एजुकेशन पर कोई असर नहीं आने देते हैैं।