- पूर्व रॉ एजेंट को समय से नहीं मिल सका इलाज, हुई मौत

- पेशेंट्स और तीमारदारों को लेटर के लिए करनी पड़ती भागादौड़ी

- सीएम के आदेश के बावजूद रेफरल लेटर के बिना अस्पताल में भर्ती नहीं

LUCKNOW:

केस एक

नहीं मान रहे सीएम का आदेश

पूर्व रॉ एजेंट मनोज रंजन दीक्षित (56) कोरोना पीडि़त थे और रविवार शाम करीब छह बजे उनकी तबीयत अचानक खराब हो गई। पत्रकारों समेत कई अन्य लोगों ने उन्हें सरकारी अस्पताल में एडमिट कराने का भरसक प्रयास किया। अधिकारियों ने भी मामले को संज्ञान में लिया, लेकिन रेफरल लेटर में उनकी जिंदगी की सांसें उलझ गईं। शाम से शुरू हुई रेफरल लेटर के लिए कवायद देर रात दो बजे जाकर पूरी हुई। कोविड कमांड सेंटर से कई बार फोन भी आया, लेकिन सिर्फ सवालों की बौछार की गई। रेफरल लेटर बनने के बाद उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती तो कराया गया, लेकिन इलाज मिलने में हुई देरी के कारण उनकी सांसें हमेशा के लिए थम गईं।

केस दो

काफी देर से मिला रेफरल लेटर

आशियाना में रहने वाली एक महिला कोविड पॉजिटिव थी। ऑक्सीजन लेवल कम होने की वजह से उन्हें भी अस्पताल की दरकरार थी, लेकिन रेफरल लेटर समय से न मिलने की वजह से उन्हें भी इलाज के लिए खासा इंतजार करना पड़ा। फिलहाल उनकी जान बच गई।

एक तरफ जहां सीएम योगी आदित्यनाथ की ओर से स्पष्ट किया गया है कि गंभीर कोरोना पेशेंट को तत्काल अस्पताल में एडमिट कर इलाज शुरू करें। वहीं दूसरी तरफ इस आदेश कोई मानने को तैयार नहीं है। आलम यह है कि रेफरल लेटर के बिना पेशेंट्स को अस्पताल में एडमिट नहीं किया जा रहा है, जिसकी वजह से कई बार तो पेशेंट्स दम तक तोड़ दे रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि सरकारी सिस्टम की ओर से इस समस्या की तरफ कोई ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है।

सुबह से शाम तक इंतजार

जो हकीकत सामने आई है, उससे साफ है कि रेफरल लेटर के लिए पेशेंट्स या उनके तीमारदारों को सीएमओ ऑफिस से लेकर कोविड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। इसकी वजह से कोविड पेशेंट्स को समय से इलाज नहीं मिल पा रहा है और उनकी जिंदगी पर बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। अभी तक दर्जनों मामले ऐसे सामने आ चुके हैं, जिसमें समय से इलाज न मिलने की वजह से कोविड पेशेंट्स की या तो मौत हो गई है या उनकी कंडीशन और क्रिटिकल हो गई है।

सीएम का स्पष्ट निर्देश

सीएम योगी आदित्यनाथ की ओर से स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि गंभीर कोविड पेशेंट को तत्काल अस्पताल में एडमिट कर इलाज शुरू किया जाए। आरटीपीसीआर रिपोर्ट का इंतजार न किया जाए। इलाज शुरू होने के बाद जांच प्रक्रिया शुरू की जाए, लेकिन आलम यह है कि बिना रेफरल लेटर के पेशेंट्स को इलाज मिलना तो दूर, अस्पताल में एडमिट तक नहीं किया जा रहा है। इसकी वजह से हालात और भी अधिक भयावह होते जा रहे हैं।

सिर्फ सवालों की बौछार

पेशेंट्स के पास कोविड कमांड सेंटर से फोन तो आता है, लेकिन इतने सवाल पूछे जाते हैं कि पेशेंट या उसके तीमारदार खुद परेशान हो जाते हैं। कमांड सेंटर की ओर से पेशेंट की कंडीशन, उसकी उम्र, बीमारी के लक्षण इत्यादि के बारे में लंबी जानकारी ली जाती है। इसकी वजह से खासा समय बर्बाद हो जाता है। पूर्व रॉ एजेंट मामले में ऐसा ही देखने को मिला है। इस सिस्टम में तत्काल सुधार किए जाने की जरूरत है, जिससे गंभीर कोविड पेशेंट को तुरंत इलाज मिल सके। सवालों के जवाब में ही पेशेंट या उसके तीमारदारों का समय न खराब हो। इस दिशा में कोई मॉनीटरिंग व्यवस्था भी नहीं है, जिससे स्थिति और भी खराब होती जा रही है।

कहां से मिलेगा पता नहीं

ज्यादातर कोविड पेशेंट्स या उनके तीमारदार यह जानते ही नहीं हैं कि उन्हें किस तरह से रेफरल लेटर मिलेगा। इसकी वजह से उन्हें पहले प्रक्रिया पता लगानी पड़ती है, जिससे उनका कीमती समय खासा बर्बाद होता है। वहीं प्रक्रिया जानने के बाद रेफरल लेटर के लिए भी खासा संघर्ष करना पड़ता है। इस दौरान पेशेंट् की स्थिति और भी ज्यादा क्रिटिकल हो जाती है।

अधिकारी भी उलझ जाते

जिला प्रशासन के अधिकारियों की ओर से गंभीर कोविड पेशेंट को अस्पताल में एडमिट कराने के लिए खासा प्रयास किया जाता है, लेकिन रेफरल लेटर की वजह से उन्हें भी खासी निराशा का सामना करना पड़ता है। पूर्व रॉ एजेंट मामले में भी कोविड नोडल अधिकारी ऋतु सुहास की ओर से भरसक प्रयास किया गया, लेकिन रेफरल लेटर देर रात मिला। इस दौरान पूर्व रॉ एजेंट की कंडीशन और क्रिटिकल हो गई। अगर उन्हें समय से इलाज मिल जाता तो शायद उनकी जान बच जाती। वहीं रेफरल लेटर संबंधी सीएम के आदेश को तुरंत इंप्लीमेंट कर दिया जाए तो निश्चित रूप से गंभीर कोविड पेशेंट्स की जिंदगी को बचाया जा सकता है। वहीं कई पेशेंट्स को क्रिटिकल कंडीशन में जाने से पहले ही ठीक किया जा सकता है।