लखनऊ (ब्यूरो)। सूर्य उपासना का महापर्व छठ 19 और 20 नवंबर को है, लेकिन नहाय-खाय से शुक्रवार से इसकी शुरुआत होगी। इस दिन घर व पूजन सामग्री की सफाई होती है। दूसरे दिन पूजन में प्रयोग होने वाली सामग्री बनाने के साथ ही खरना होता है। तीसरे दिन अस्ताचलगामी और चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पर्व का समापन होता है। इस महापर्व में गन्ने, छह प्रकार के फल और साठी के चावल का विशेष महत्व होता है। जो खासतौर पर बिहार से आता है। इसी से प्रसाद तैयार किया जाता है।
नहाय-खाय से आज होगी शुरुआत
दीपावली के छह दिनों के बाद यह महापर्व मनाया जाता है। छठ व्रत रोगों से मुक्ति, संतान के सुख और समृद्धि में वृद्धि के लिए रखा जाता है। मान्यता है कि सच्चे मन से व्रत रखने से मनोकामना जरूर पूरी होती है, जिनकी मनोकामना पूरी होती है, वे कोसी भरते हैं। बहुत से लोग घाटों पर दंडवत पहुंचते हैं। छठ महापर्व का आरंभ नहाय-खाय से होता है। नहाय-खाय के अंतर्गत व्रती महिलाएं नदी, तालाब आदि में जाकर स्नान करेंगी। इसके बाद घर आकर खाना बनाएंगी। नहाय-खाय के दिन साठी का चावल, चने की दाल एवं सब्जी बनाई जाती है। जिसका विशेष महत्व होता है। इसमें प्याज और लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह पूरी तरह से शुद्ध रूप में बनाया जाता है।
गन्ना और चावल का विशेष महत्व
छठ पर्व में गन्ने का विशेष महत्व बताया गया है। खासतौर पर पांच गन्नों का इस्तेमाल पूजन के दौरान किया जाता है। माना जाता है कि कोसी भराई में पांच गन्ने पंच तत्व के समान होते हैं। ये पांच गन्ने अग्नि, वायु, आकाश, भूमि और जल का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अलावा इस दौरान ऋतु फल का भी विशेष महत्व होता है, क्योंकि कोसी में 6 प्रकार के फलों को रखा जाता है। जोकि सूर्य की रोशनी से उत्पन्न होते है। इसके अलावा, साठी का चावल का विशेष प्रयोग किया जाता है। साठी मतलब वो चावल जो 60 दिन में पैदा होता है। यह खासतौर पर बिहार और तराई वाले क्षेत्रों में होता है।
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य का समय शाम 5 से 5:22 के बीच
कार्तिक शुक्ल षष्टी को सूर्यषष्ठी का व्रत मनाया जाता है। जिसे छठ भी कहा जाता है। इस दिन सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है। इस व्रत को करने वाली महिलाएं धन, धान्य, पति-पुत्र व सुख, समृद्धि से परिपूर्ण व संतुष्ट रहती हैं। यह सूर्य षष्ठी व्रत चार दिनों का है। इस बार 17 नवंबर शुक्रवार, चतुर्थी को नहाय खाय व्रत के साथ होगा। यह जानकारी ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पांडेय ने दी।
चार दिवसीय महापर्व
नहाय खाय के साथ ही छठ पूजा का प्रारंभ हो जाता है। इस दिन स्नान के बाद घर की साफ-सफाई करने के बाद सात्विक भोजन किया जाता है। 19 नवंबर शनिवार पंचमी को खरना होगा। इस दिन से व्रत शुरू होता है और रात में खीर खाकर फिर 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत रखा जाता है। खरना के दिन सूर्य षष्ठी पूजा के लिए प्रसाद बनाया जाता है। 19 नवंबर रविवार को सूर्यषष्ठी व्रत रहते हुए सायंकाल अस्त होते हुए सूर्य को सूर्यार्घ पूजन के बाद अर्घ्य देती है। यह व्रत महिलाएं 36 घंटे तक करती हैं। सोमवार की सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण होगा।
चर्म व नेत्र रोग से मुक्ति
ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पांडेय के मुताबिक सूर्यष्ठी व्रत करने से विशेषकर चर्म रोग व नेत्र रोग से मुक्ति मिल सकती है। इस व्रत को निष्ठा पूर्वक करने से पूजा व अर्घ्य दान देते समय सूर्य की किरण अवश्य देखना चाहिए।