लखनऊ (ब्यूरो)। कैंसर शब्द सुनते ही लोगों में एक अजीब सा डर बैठ जाता है। दरअसल, बहुत से लोगों को लगता है कि कैंसर होने के बाद मौत तय होती है। हाल के दिनों में कैंसर के मरीजों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। आंकड़ों की माने तो देश में 2.6 करोड़ से अधिक कैंसर मरीज हैं। वहीं, प्रदेश में बीते 10 वर्षों में कैंसर के मामलों में 16.58 पर्सेंट और कैंसर से मौतों के आंकड़ों में 46.72 पर्सेंट की बढ़ोतरी हुई है। डॉक्टर्स के अनुसार, समय रहते कैंसर का पता चल जाये तो इसे काफी हद तक ठीक किया जा सकता है इसलिए डरने की जगह जागरूकता की अधिक जरूरत है।

ये कैंसर सबसे ज्यादा फैल रहे

कैंसर एक अनुवांशिक विकार है। यह तब होता है जब कोशिका गतिविधियों को कंट्रोल करने वाले जीन उत्परिवर्तित होते है। जो असामान्य कोशिकाएं बनाते है, जो विभाजित और बढ़ते जाते है। कैंसर कई प्रकार के होते हैं। अगर भारत की बात की जाये जो यहां सबसे ज्यादा होने वाले कैंसर हैं

-मुंह व गले का कैंसर

-ब्रेस्ट कैंसर

-सर्विक्स कैंसर

-बड़ी आंतों का कैंसर

-लंग कैंसर

तेजी से बढ़ रहे हैं मरीज

लखनऊ में सरकारी में केजीएमयू, कैंसर संस्थान, संजय गांधी पीजीआई, लोहिया संस्थान और निजी अस्पतालों समेत करीब 12 प्रमुख बड़े संस्थानों में कैंसर ट्रीटमेंट उपलब्ध है। एक अनुमान के मुताबिक, इन संस्थानों के ऑन्कोलॉजी विभाग में रोजाना 2500 से 3000 हजार के करीब कैंसर मरीज आते हैं, जिनमें 600-700 के करीब नए मरीज होते हैं। डॉक्टर्स के अनुसार, कम उम्र में भी कैंसर मिलना एक चिंता की बात है।

कैंसर की जांच बेहद अहम

कैंसर की पहचान के लिए जांच बेहद जरूरी है। कई एडवांस टेस्ट से इसका पता लगाया जा सकता है, जैसे

-ब्लड टेस्ट

-ट्यूमर मार्कर टेस्ट

-ब्लड प्रोटीन टेस्ट

-सीटीसी टेस्ट

-मैमोग्राफी

-पैप स्मीयर टेस्ट

-बायोप्सी

-सीटी स्कैन

-एमआरआई

ञपीईटी स्कैन

मरीजों का लोड काफी ज्यादा

कई अन्य टेस्ट हैं जिनकी मदद से कुछ प्रकार के कैंसर का पता लगाया जा सकता है। हालांकि, मरीजों का लोड इतना अधिक है कि सीटी स्कैन, एमआरआई और पीईटी स्कैन के लिए सरकारी संस्थानों में महीनों की वेटिंग चल रही है। जिसमें कैंसर जांच के लिए पीईटी टेस्ट सबसे महत्वपूर्ण होता है, जो सरकारी में केवल केजीएमयू, पीजीआई और लोहिया में ही उपलब्ध है। जहां इसका खर्च करीब 12 हजार रुपये आता है। जबकि निजी में इसका खर्च 25-30 हजार रुपये तक होता है। ऐसे में सरकारी संस्थानों में एक दिन में सीमित मरीजों की ही जांच हो पाती है, जिसके कारण कई मरीजों में कैंसर घातक हो जाता है या जांच के अभाव में कैंसर मरीज की मौत तक हो जाती है। ऐसे में कैंसर ट्रीटमेंट से पहले जांच बेहद जरूरी है।

डॉक्टरों की कमी बन रही प्रॉब्लम

राजधानी के केजीएमयू, लोहिया संस्थान, पीजीआई और कैंसर संस्थान में ऑन्कोलॉजिस्ट की बड़ी कमी है। केजीएमयू में तो एक ही डॉक्टर के भरोसे विभाग चल रहा है, जबकि सरकारी संस्थानों में 150-300 तक मरीज आ रहे हैं। जिसके कारण मरीजों को दिखाने में ही बड़ा युद्ध लड़ना पड़ रहा है। क्योंकि बड़े संस्थानों में अधिकतर मरीज एडवांस स्टेज में पहुंच है। ऐसे में समय पर डॉक्टर को न दिखा पाने की वजह से मरीजों की जान तक चली जाती है। गांव-देहात में कैंसर के प्रति जागरूकता काफी कम है और मरीज जांच के खर्च के डर से जल्दी जांच भी नहीं करवाते हैं, जिससे समस्या और बढ़ जाती है। ऐसे में ग्रामीण इलाकों में कैंसर के प्रति जागरूकता और लक्षणों की पहचान बेहद जरूरी है।

ट्रीटमेंट मिलना भी मुहाल

कैंसर ट्रीटमेंट में कीमोथेरेपी व रेडियोथेरेपी बेहत महत्वूपर्ण होती है। इसके अलावा दवा और इंजेक्शन आदि भी लगाया जाता है। सरकारी संस्थानों का आलम यह है कि एक दिन में अधिकतर जगह 30-35 मरीजों को कीमो या रेडियाथेेरेपी हो पा रही है। जबकि मरीजों की संख्या इससे कई गुना होती है। जिसकी वजह से कई बार मरीज की ट्रीटमेंट के इंतजार में ही मौत हो जाती है।

सरकार को देना चाहिए ध्यान

डॉक्टर्स की माने तो कैंसर का इलाज सस्ता है, अगर बेवजह की दवाएं न दी जाएं। क्योंकि महंगी दवाओं की कुछ मरीजों को ही जरूरत पड़ती है। करीब 80-90 पर्सेंट मरीजों का सस्ती दवा से इलाज संभव है। साथ ही हर तरह के कैंसर में एक जैसा इलाज नहीं होता है। इसके लिए सरकार को चाहिए कि मरीजों की जरुरत के अनुसार ही दवा लिखे इसके लिए पॉलिसी बनाये ताकि मरीजों को बिना वजह महंगी दवाओं और ट्रीटमेंट के खर्च से बचाया जा सके। जिसका फायदा गरीब मरीजों को सबसे ज्यादा मिलेगा।

कैंसर के लक्षण

-वजन में कमी

-लगातार बुखार

-भूख में कमी

-हड्डियों में दर्द

-खांसी

-मुंह से खून आना

-नई गांठ या उभार