लखनऊ (ब्यूरो)। Gauri Murder Case Lucknow: राजधानी में 9 साल पहले हुए जघन्य गौरी मर्डर केस ने केवल लखनऊ ही नहीं पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था। 19 साल की लॉ स्टूडेंट गौरी श्रीवास्तव की 2 फरवरी को तेलीबाग इलाके में बोरी में पांच टुकड़े में डेड बॉडी मिली थी। गौरी के गायब होने और फिर दूसरे दिन उसकी टूकड़ों में उसका शव मिलने से पुलिस महकमे मेें हड़कंप मच गया गया। 8 दिन तक चली पुलिस इंवेस्टिेगशन के बाद सर्विलांस व इलेक्ट्रानिक एवीडेंस की मदद से पुलिस ने गौरी से एकतरफा प्यार करने वाले हिमांशु प्रजापति को गिरफ्तार किया था।

'हमारी बेटी का हत्यारा बाहर आ गया'

पुलिस ने 9 साल पहले भले ही गौरी के हत्यारे को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया, पर उसकी मौत से उसके पैरेंट्स को मिले जख्म कभी न भर सके। 9 साल बाद गौरी के पैरेंट्स के जख्म एक बार फिर तब हरे हो गए जब उनकी बेटी की हत्या के आरोपी को जमानत मिल गई। जमानत मिलने के पीछे की वजह पुलिस की लचर पैरवी और कमजोर एविडेंस बताए जा रहे हैं। गौरी के पैरेंट्स को जब से इसका पता चला है, उनकी आंखों से आंसू थम नहीं रहे हैं। उसका कहना है कि उनकी इकलौती बेटी का हत्यारा बाहर आ गया है।

घर व गली में फिर छाया मातम

गणेशगंज स्थित 93/49 नंबर के मकान में एक बार फिर 9 वर्ष बाद मातम छाया हुआ है। घर के अंदर से तेज-तेज रोने की आवाजें आ रही थीं और गौरी की मां तृप्ति श्रीवास्तव यह कह-कहकर रो रही थीं कि मेरी बेटी के साथ इतनी हैवानियत करने वाला जेल से कैसे बाहर आ सकता है?

बाहर तक आ रही थी रोने की आवाजें

नौ वर्ष पहले एक फरवरी 2015 को गणेशगंज की रहने वाली 19 वर्षीय गौरी की हत्या उसी के दोस्त हिमांशु प्रजापति ने कर दी थी। हत्याकांड छिपाने के लिए आरोपी हिमांशु ने बॉडी के टुकड़े किए और बोर में भर-भरकर फेंक दिए। पुलिस काफी मशक्कत से हिमांशु तक पहुंची और उसे जेल भेज दिया। अब मंडे को उसी हिमांशु को नौ वर्ष बाद जमानत मिल गई तो गौरी का परिवार सकते में है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम गणेशगंज की तंग गलियों में स्थित गौरी के घर पहुंची तो वहां सन्नाटा पसरा हुआ था। बस मकान नंबर 93/49 के अंदर से तेज-तेज रोने की आवाजें आ रही थीं। दो बार बेल बजाने और दरवाजा खटखटाने पर अंदर से अपने आंसू समेटे हुए तृप्ति श्रीवास्तव (गौरी की मां) बाहर आईं और बोलीं कि वह कुछ भी बोलने लायक नहीं बची हैं। आखिर कैसे कोर्ट एक जल्लाद को जमानत दे दी। आखिर लखनऊ पुलिस इतनी लाचार क्यों हो गई कि उनकी बेटी के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करने वाले के खिलाफ मजबूत पैरवी तक नहीं कर सकी। इतना कह तृप्ति ने दरवाजा बंद कर लिया।

क्या था गौरी मर्डर केस

1 फरवरी, 2015 को 19 साल की गौरी दिन के करीब साढ़े बारह बजे अपने पिता शिशिर श्रीवास्तव की जैकेट को ड्राई क्लीन करवाने के लिए घर से निकली थी। गौरी ने मां तृप्ति से कहा कि वह मंदिर भी जाएगी तो आते हुए शाम हो जाएगी। रास्ते में कई लोगों ने उसे देखा, गौरी ने अपने से बड़ों को नमस्ते भी किया। शाम के 4 बज गए, लेकिन गौरी लौटी नहीं। मां ने कई बार गौरी को कॉल की लेकिन फोन उठा नहीं, जिसके बाद मां ने इसकी जानकारी गौरी के पिता शिशिर को दी।

हर बार युवक कॉल करता रहा रिसीव

काफी देर तक गौरी का फोन मिलाने पर आखिरकार एक कॉल उठी और सामने से एक लड़के ने फोन उठा कर कहा कि गौरी आ जाएगी, टेंशन मत लो। इसके बाद काफी देर तक इंतजार करने के बाद भी जब गौरी घर नहीं आई तो एक बार फिर से गौरी के फोन पर कॉल की गई, जिस पर उसी लड़के ने एक बार फिर कॉल उठाई और कहा कि वह दोनों ईको पार्क में है थोड़ी देर में आ रही है, लेकिन बार-बार वह लड़का गौरी से बात करवाने की बात करते ही कॉल काट दे रहा था। अब गौरी के पिता शिशिर को चिंता होने लगी थी, उन्हें कॉल उठाने वाला लड़का संदिग्ध लग रहा था। लिहाजा उन्होंने इसकी सूचना अमीनाबाद थाने पहुंचे कर पुलिस को दी। पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज की और गौरी की तलाश शुरू हुई। उधर शिशिर और तृप्ति ईको पार्क के आसपास अपनी बेटी को तलाशते रहे।

तीन बोरे में भरे थे लाश के पांच टुकड़े

गौरी के गायब होने के दूसरे दिन दो फरवरी को शहीद पथ के पास पड़ी एक बोरी के आसपास स्ट्रीट डॉग मंडरा रहे थे। इसी दौरान उस बोरी से इंसानी पैर निकला देख राहगीरों ने पुलिस को सूचना दी। मौके पर पुलिस पहुंची। बोरी में किसी लड़की के दो पैर थे। अब पुलिस ने पूरे इलाके को सीज कर तलाशी अभियान शुरू किया। इसी दौरान झाड़ियों में एक और बोरी दिखाई दी। उस बोरी के अंदर दो हाथ और सिर मिला। थोड़ी ही देर में आसपास तलाशी लेने पर किसी लड़की का टुकड़ों में पूरा शरीर मिल गया था। पुलिस ने डॉक्टरों की टीम के पास सभी कटे अंगों को री-अरेंज के लिए भेजा और दूसरे दिन गौरी के पैरेंट्स को बॉडी की शिनाख्त के लिए बुलाया। 3 फरवरी को शिशिर और तृप्ति अस्पताल आए और सिर से गौरी रूप में पहचान की और बॉडी को देख फूट-फूटकर रोने लगे। गौरी का टुकड़ों में शरीर मिलने पर पूरे देश में आक्रोश था। हर कोई गौरी मर्डर केस की ही बात कर रहा था। जघन्य हत्याकांड के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए कैंडिल मार्च भी निकाला गया।

5 मिनट की फुटेज से मिली पुलिस को लीड

गौरी की कॉल डिटेल से पुलिस को कुछ भी खास नहीं मिला था, हालांकि जब उसकी लास्ट लोकेशन ट्रेस की गई तो वह तेलीबाग की निकली। पुलिस ने गणेशगंज से लेकर चारबाग और फिर तेलीबाग की सीसीटीवी फुटेज खंगाली। पुलिस को नाका के पास लगे सीसीटीवी कैमरे में गौरी पैदल जाती हुई दिखी। फुटेज में दोपहर 1.14 मिनट पर वह अशोक नगर मोड़ के पास लगे कैमरे में चारबाग की तरफ पैदल जाती दिखी थी। इसके बाद 1.15 बजे, 1.16 बजे, 1.17 बजे, 1.18 बजे और फिर 1.19 बजे तक वह फुटेज में नजर आई। जिसमें एक हेलमेट लगाए हुए युवक के साथ बाइक में जाती हुई दिखी। पुलिस ने बाइक की जानकारी निकालने को कोशिश की, सीसीटीवी में बाइक का नंबर दिखा नहीं तो गाड़ी कंपनी के आधार पर पता पता चला कि बाइक हिमांशु प्रजापति के नाम से रजिस्टर थी। वह गौरी का दोस्त था और जब सीसीटीवी फुटेज हिमांशु के जानकारों को दिखाई गई तो उन्होंने पहचान लिया कि गौरी को बाइक पर ले जाने वाला हिमांशु ही है।

हिमांशु के इकबालिया बयान सुन सिहर गए अफसर

तत्कालीन एसएसपी लखनऊ यशस्वी यादव ने हिमांशु प्रजापति को गिरफ्तार कर खुद पूछताछ शुरू की, लेकिन उसने किसी भी प्रकार की घटना में शामिल होने से इंकार कर दिया, लेकिन जब पूछताछ और सख्त हुई तो हिमांशु ने एक खौफनाक वारदात से पर्दा उठा दिया, जिस सुन कर रिमांड रूम में बैठे पुलिसकर्मी सिहर गए।

दोस्त ने घर लाकर कर दी हत्या

पुलिस की कहानी के अनुसार, हिमांशु वर्ष 2014 में एक कॉमन फ्रेंड के जरिए गौरी से मिला था। कुछ ही दिन में वह दोनों एक दूसरे से मिलने भी लगे। जनवरी 2015 को हिमांशु का परिवार मुंबई गया हुआ था। इसी का फायदा उठाते हुए हिमांशु ने गौरी को 1 फरवरी 2015 को अपने घर बुलाया। वह मन ही मन गौरी से प्यार करने लगा था। उसे भी लगने लगा कि गौरी उससे प्यार करती है। लेकिन गौरी उसे केवल अच्छा दोस्त समझती थी। नाका से गौरी को पिक कर हिमांशु उसे तेलीबाग स्थित अपने घर ले आया। इसी दौरान हिमांशु ने उससे फोन दिखाने को कहा। गौरी ने फोन देने से मना किया तो हिमांशु ने उसका फोन छीना। हिमांशु ने गौरी से फोन का पासवर्ड मांगा। पासवर्ड मिलने पर हिमांशु ने देखा कि गौरी ने कुछ फोटो किसी लड़के को भेजे थे। यह देखते ही हिमांशु भड़क गया। दोनों में झगड़ा होने लगा। इसी दौरान हिमांशु ने उसका गला दबा दिया। गौरी बेहोश हो गई। हिमांशु को लगा कि वह मर गई। घबरा कर कहीं चला गया। इसके बाद वह अपने एक दोस्त को लेकर घर के बाहर आया। करीब दो घंटे तक दोनों के बीच बातचीत हुई। इसके बाद दोस्त वहां से चला गया। हिमांशु बहुत घबराया हुआ था, इसलिए वह शराब पीने चला गया और फिर गौरी की लाश को ठिकाने लगाने की प्लानिंग करने लगा।

बॉडी के टुकड़े करते समय गौरी जिंदा थी

हिमांशु ने अपने दोस्त से आरी और बोरियां खरीदकर मंगवाई। इसके बाद वह अपने घर आकर गौरी के उसी आरी से लाश के टुकड़े किए। लाश को ठिकाने लगाने के बाद वह घर लौटकर पूरे घर की धुलाई की और फिर सो गया। पुलिस तब हैरान हो गई जब पोस्टमार्टम में सामने आया कि गौरी को हिमांशु ने जिंदा ही काट दिया था। दरअसल, जब हिमांशु ने गौरी का गला दबाया तो वह सिर्फ बेहोश हुई थी और कोमा में चली गई थी लेकिन उसे लगा कि वह मर गई इसी लिए उसने आरी से बॉडी के टुकड़े कर दिए।

लचर पैरवी और कमजोर एविडेंस ने नाउम्मीद किया

जिस हिमांशु के खिलाफ पूरे देश में आक्रोश का माहौल था, जिसका बयान सुन हर कोई दहशत में आ गया। जिसने एक जिंदा लड़की के टुकड़े-टुकड़े कर दिए उसकी जमानत हो जाने पर सवाल खड़े होना लाजमी है। दरअसल, इसके पीछे पुलिस की लापरवाही है। हिमांशु को जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने इस मामले में 75 गवाह बनाए थे, इनमें 14 ही गवाहों का परीक्षण कराया गया था। अन्य कोई भी तथ्य सामने पेश नहीं किए गए। इसके अलावा आरी पर मिला खून गौरी का ही है, इसके विषय में अभियोजन पक्ष ने कोई भी दलील दी ही नहीं। इतना ही नहीं, गौरी के मां-बाप का डीएनए सैंपल तक टेस्ट के लिए नहीं भेजा।

गौरी मर्डर केस में आरोपी को मजबूत पैरवी और एविडेंस के अभाव में जमानत मिली है तो इसके पीछे विवेचक की लापरवाही है। ऐसे केस में पैरेंट्स का डीएनए जरूरी होता है। अगर पैरेंट्स का डीएनए नहीं लिया गया और ब्लड सैैंपल भी नहीं लिया गया तो यह विवेचना में घोर लापरवाही है। जिस समय यह मर्डर केस हुआ था तब एफएसएल टेस्टिंग आसान नहीं होती थी। उस समय डीएनए टेस्ट व रिपोर्ट काफी लंबे समय के बाद आती थी। हालांकि, वर्तमान मेें डीएनए टेस्टिंग किट व एफएसएल की कई यूनिट बन गई हैं। ऐसे केस नजीर हैं, अब संसाधन होने पर विवेचक को हमेशा इन बातों का ध्यान रखने की जरूरत है।

- राजेश पांडेय, रिटायर्ड आईपीएस

गौरी मर्डर केस के वक्त मैं डीजीपी के चार्ज पर था और डेड बॉडी मिलने की सूचना पर मैैं खुद मौके पर गया था। इस केस को वर्कआउट भी किया गया। इस केस में मेन आरोपी के साथ एक और युवक का नाम सामने आया था, लेकिन उसकी भूमिका न होने के चलते उसे पुलिस जांच में बरी कर दिया गया था। 9 साल बाद अगर आरोपी को जमानत मिली है तो जानकारी करनी होगी कि आखिर उसे यह किस आधार पर मिली है। अगर विवेचक की जांच में कोई कमी रह गई तो उसे भी देखने की जरूरत है।

- एके जैन, रिटायर्ड डीजीपी