लखनऊ (ब्यूरो)। घरों के अंदर सूखा-गीला वेस्ट अलग-अलग रखने का प्राविधान है, लेकिन 80 फीसदी भवन स्वामी एक साथ ही दोनों तरह का वेस्ट रखते हैैं और इस कंडीशन में नगर निगम कर्मी को थमा देते हैं। ऐसे में, वेस्ट का प्रॉपर निस्तारण नहीं हो पाता, भवन स्वामी और निगम कर्मियों की सेहत पर विपरीत असर पड़ता है और वेस्ट की रीसाइकिलिंग नहीं हो पाती। कई फॉरेन कंट्रीज या इंदौर की बात करें तो वहां पब्लिक स्वच्छता के प्रति काफी जागरूक है और वेस्ट रीसाइकिलिंग पर फोकस किया जाता है। नगर निगम लखनऊ ने कई भी इसको लेकर कई योजनाएं बनाईं, लेकिन पब्लिक का साथ न मिलने से योजनाओं का फायदा नहीं मिला।
एक ही डस्टबिन में नजर आता है वेस्ट
एक तरफ जहां नगर निगम की ओर से अभी तक शत प्रतिशत घरों से वेस्ट कलेक्शन की सुविधा को शुरू नहीं किया जा सका है, वहीं दूसरी तरफ आलम यह है कि करीब 80 फीसदी भवन स्वामी जागरूकता के अभाव में सूखा और गीला वेस्ट एक साथ ही दे रहे हैैं। जिसकी वजह से उनकी सेहत के साथ-साथ निगम कर्मियों की सेहत पर विपरीत असर पड़ रहा है साथ ही पर्यावरण को भी नुकसान हो रहा है। नगर निगम की ओर से भवन स्वामियों को वेस्ट रीसाइकिल करने के संबंध में जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है, बावजूद इसके 20 से 25 फीसदी भवन स्वामी ही वेस्ट को खाद में डेवलप करते हैैं। उन इलाकों में तो स्थिति और भी ज्यादा चिंताजनक है, जहां वेस्ट कलेक्शन की सुविधा नहीं है, वहां पर तो लोग रोड साइड ही वेस्ट फेंक रहे हैैं।
वेस्ट रखने का नियम
घरों के अंदर वैसे तो तीन तरह के डस्टबिन रखने का नियम है। जो तीन डस्टबिन रखे जाएंगे, उनमें एक में सूखा वेस्ट रखा जाना है, एक में गीला वेस्ट और एक में वो वेस्ट रखा जाना है, जो खतरनाक ठोस अपशिष्ट श्रेणी में आता है।
1-ग्रीन डस्टबिन-इस तरह के डस्टबिन में किचन वेस्ट को डाला जाना चाहिए। जिसमें सब्जी-फलों के छिलके, चायपत्ती इत्यादि शामिल होती है।
2-ब्लू डस्टबिन-इस डस्टबिन का यूज घरों से निकलने वाले हार्ड वेस्ट के लिए किया जा सकता है। इसमें आप ब्रेड-चिप्स पैकेट के रैपर, प्लास्टिक बोतल, दूध के पैकेट, मेटल निर्मित वस्तुएं इत्यादि डाल सकते हैैं।
3-रेड डस्टबिन-इसका मुख्य रूप से यूज ठोस अपशिष्ट के लिए किया जाना चाहिए। जिसमें एक्सपायर्ड दवाएं, सेनेटरी पैड, रूई-पट्टïी इत्यादि शामिल हैैं।
वेस्ट निकलता एक दिन में
1700 मीट्रिक टन वेस्ट निकलता था पहले
2200 मीट्रिक टन वेस्ट का पहुंच गया भार
40 फीसदा सूखा वेस्ट निकलता घरों से
60 फीसदी गीला वेस्ट कलेक्ट होता है घरों से
वेस्ट निस्तारित न होने के नुकसान
1-वेस्ट के ढेरों में आग लगने से एयर क्वालिटी इंडेक्स पर असर पड़ता है
2-पॉलीथिन का सेवन करने से पशुओं की जिंदगी खतरे में पड़ती है
3-बॉयोमेडिकल वेस्ट के संपर्क में आने से स्किन समेत कई तरह की बीमारियां फैल सकती हैैं।
4-शहर की स्वच्छता रैैंकिंग पर असर पड़ता है।
इस तरह हो सकता है रीयूज
घरों से निकलने वाला वेस्ट खासकर गीले वेस्ट को रीयूज किया जा सकता है। गीले वेस्ट के माध्यम से खाद बनाई जा सकती है, जिसका यूज घरों में रखे गमलों में किया जा सकता है। वहीं, सूखे वेस्ट को अलग रखने से नगर निगम कर्मी द्वारा उसे प्रॉपर तरीके से कलेक्ट किया जा सकता है, जिसका यूज टाइल्स बनाने में किया जा सकता है। प्लास्टिक वेस्ट की बात की जाए तो नगर निगम के पास अलग से कोई प्लांट की व्यवस्था नहीं है।