लखनऊ (ब्यूरो)। शहर में आए दिन लावारिस शव मिलते हैं। किसी की हत्या तो किसी कि बीमारी के चलते मौत हुई होती है, लेकिन इनकी पहचान न होने की वजह से इन्हें लावारिस घोषित कर दिया जाता है। अधिकतर केसों में देखा गया है कि लावारिस शवों की शिनाख्त नहीं हो पाती है। पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2023 से लेकर अबतक शहर के अलग-अलग थाना क्षेत्र के अंतर्गत करीब 75 ऐसे शव मिले हैं, जिनकी पहचान नहीं हो सकी है। ऐसे में कहा जा सकता है कि इन शवों की 'आत्माएं' न्याय के लिए भटक रही हैं।

नहीं पता चल पाती असल वजह
लावारिस लाशों की पहचान के लिए यूपी कॉप एप में एक ऑप्शन दिया गया है। जहां गुमशुदगी व लावारिस लाश, दोनों ऑप्शंस को एक साथ जोड़ा गया है। इसमें थाने स्तर पर मिलने वाली शव की फोटो व अन्य पहचान उसमें अपलोड की जाती है। पुलिस के मुताबिक, कई बार पहचान बहुत कम शवों की हो पाती है। शव के पास मिली चीजों के आधार पर पुलिस घटनास्थल और आसपास के थानों से लावारिस शव के पहचान की कोशिश की जाती है। इसके अलावा सोशल मीडिया पर फोटो, कपड़े और चीजों को डाला जाए और पूरी सूचना दी जाती है, लेकिन ज्यादातर केसों में इनकी शिनाख्त नहीं हो पाती है।

चार दिन बाद होता है पोस्टमार्टम
लावारिस शव मिलने पर सबसे पहले पुलिस आसपास के लोगों को बुलाकर शव की पहचान करवाती है। इसके बाद शव को मोर्चरी में रखवा दिया जाता है। करीब चार दिनों तक शव वहीं रहता है। इस दौरान शहर के अन्य थानों से गुमशुदगी की रिपोर्ट जांची जाती है। पहचान नहीं होने पर पुलिस डीसीआरबी और एनसीआरबी के गुमशुदगी फॉर्मेट में फोटो के साथ सभी उपलब्ध जानकारियां अपलोड करती है। इसके साथ ही विज्ञापन दिया जाता है, ताकि उसके अपने मिल जाएं, लेकिन ऐसा न होने पर शव का पोस्टमार्टम करवाकर अंतिम संस्कार कर दिया जाता है।

हत्या के केसों में भी पहचान नहीं
- नवंबर 2023 में सुशांत गोल्फ सिटी थाना क्षेत्र में युवक की सिर कटी लाश मिली थी। युवक की हत्या की गई और पहचान छिपाने के लिए सिर धड़ से काट दिया गया था। शख्स की शिनाख्त नहीं हो सकी।
- मार्च 2022 को ठाकुरगंज में एक महिला की अधजली लाश मिली। इस केस को सुलझाने के लिए क्राइम ब्रांच समेत कई थानों की पुलिस लगी, लेकिन अब तक पुलिस उस महिला की शिनाख्त नहीं कर सकी है।
- जनवरी 2019 में भी इकाना स्टेडियम के पास एक ट्राली बैैग में युवती की लाश मिली थी। उसकी पहचान के लिए पुलिस ने थानों में दर्ज गुमशुदगी के रिकार्ड खंगाले, लेकिन पहचान न हो सकी।

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अपनों के इंतजार में तालों में बंद अस्थियां
राजधानी के श्मशान घाटों में लावारिस अस्थियां 'मोक्ष' का इंतजार कर रही हैं, जो यहां के लॉकरों में बंद पड़ी हैं। इनको पवित्र नदियों में प्रवाहित करने वाला अपना कोई नहीं है। कोविड काल से शुरू हुआ यह सिलसिला अभी तक जारी है। वहीं, शोभा तिवारी द्वारा अबतक करीब 15 अस्थियों को विधि-विधान से गोमती नदी में प्रवाहित किया जा चुका है। वे लंबे वक्त से निस्वार्थ भाव से यह कार्य कर रही हैं। हालांकि, अभी भी कई अस्थियां लॉकर में बंद हैं।

लॉकरों में बंद कई अस्थियां
कोविड काल के दौरान लोगों के बर्ताव में काफी बदलाव लाया था। अपनों के अंतिम संस्कार की रीतियों में यह बदलाव देखने को मिला था। कई लोग तो अंतिम संस्कार के बाद फूल चुनने तक नहीं आये। जिसके चलते अस्थियों को शमशान घाट के लॉकर में रखवा दिया गया, ताकि स्थिति सामान्य होने के बाद वे उन्हें नदियों में प्रवाहित कर सकें। पितृ पक्ष में रलखनऊ सहित देश भर के विभिन्न धार्मिक स्थलों पर जहां लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध कार्य विधि विधान से कर रहे हैं। वहीं, राजधानी के कुड़ियाघाट स्थित स्वर्गीय लाल जी टंडन स्मृति उपवन के लॉकरों में अभी भी कुछ अस्थि कलश ऐसे जो वर्षों से बंद हैं।

15 अस्थियों को किया प्रभावित
लॉकर में अस्थि कलश रखने की व्यवस्थापक कार्य से जुड़ीं शोभा ने बताया कि कोविड काल के समय लगभग 15 अस्थि कलश को लेने कोई नहीं आया। जिसके बाद इन अस्थियों को स्वयं निकाल कर हमने नदी में विधि-विधान से प्रवाहित किया। अभी भी कुछ अस्थि कलश हैं, जिनके ताले आज तक नहीं खुले हैं। अगर कोई जल्द नहीं आया तो हम स्वयं नदी में अस्थि कलश को प्रभावित करेंगे।