कानपुर (ब्यूरो) ये रकम किस लिए भेजी गई, इसकी जानकारी के लिए हयात जफर को रिमांड पर लेने के दौरान पूछताछ की जाएगी। टीम का अनुमान है कि ये रुपये किसी देश हित या समाज हित के काम के लिए नहीं भेजे होंगे। टीम का ये भी मानना है कि ये रकम हिंसा फैलाने के लिए भेजी गई थी। एटीएस ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा है कि जफर हयात हाशमी अपनी पत्नी और बहन के साथ मिलकर शहर में पीएफआई की जड़ें मजबूत कर रहा था।
नाबालिगों का भी इस्तेमाल
पीएफआई चीफ ने भले ही संस्था का बवाल से कोई कनेक्शन न होने की बात कह रहे हों लेकिन इलेक्ट्रानिक और मैनुअल इविडेंस के अलावा दस्तावेजी साक्ष्य चीख चीख कर गवाही दे रहे हैैं कि हयात और उसके संगठन के लोग शहर को दंगे की आग में झोंकने की तैयारी कर चुके थे। एटीएस ने अपनी रिपोर्ट में सीपी विजय सिंह मीना और जेसीपी आनंद प्रकाश तिवारी के दंगे की सूचना पर रिएक्शन की वजह से दंगा न होने देने की बात भी कही है। जफर हयात की संस्था समाज मेें जहर फैलाने के लिए नाबालिगों का इस्तेमाल कर रही थी।
सोशल मीडिया सेल थी एक्टिव
हयात जफर हाशमी में संस्था की सोशल मीडिया सेल भी बना रखी थी, जिसकी जानकारी काफी खंगालने के बाद टीम को हुई है। 3 जून की शाम पथराव के बाद इस सेल से जुड़े लोगों ने अपने मोबाइल स्विच ऑफ कर लिए और अंडरग्राउंड हो गए। सोशल मीडिया पर तमाम जानकारी गायब की जा चुकी है, जिसकी रिकवरी में इंटेलीजेंस विंग लगी हुई है।
गुपचुप तरीके से पनप रहीं सस्थाएं
यूपी के जिन जिलों में गुपचुप तरीके से देश विरोधी संस्थाओं की बेल पनप रही है, उनमें कानपुर भी शामिल है। हालांकि कानपुर लगभग तीन दशक पहले आतंकी नक्शे पर आ गया था। कई बड़ी वारदातों में कानपुर का दरवाजा सुरक्षा एजेंसियां न सिर्फ खटखटा चुकी हैैं। बल्कि कानपुर और आस पास से कई स्लीपर सेल्स और शहर का माहौल खराब करने वालों की गिरफ्तारी कर चुकी हैैं। इतना ही नहीं कई बार घनी आबादी वाले इलाकों से बड़ी बरामदगी तो हुई है साथ ही जिन लोगों की गिरफ्तारी की गई थी उन पर केस चलाकर उन्हेें यूपी की बाहर की जेलों में रखा गया है।