उनके समर्थक समझते हैं उनकी गिरफ़्तारी अमरीका और पाकिस्तान के बीच खराब होते संबंधों का नतीजा है। लेकिन उनके विरोध में बोलने वाले कहते हैं की उन्हें फ़ाई की गिरफ्तारी से हैरानगी नहीं हुई क्योंकि वो अमरीका में पाकिस्तानी सरकार के लिए काम करते हैं जिसके एवज़ में ज़ाहिर है उन्हें पाकिस्तान से पैसे मिलते होंगे। डाक्टर फ़ाई इस आरोप को ग़लत बताते हैं।
मैं पहली बार डाक्टर फ़ाई से पिछले साल अमरीका में मिला जहां मैं बीबीसी के लिए काम करने गया था। वो वॉशिंगटन में कश्मीर पर तीन दिनों का एक सम्मेलन आयोजित कर रहे थे।
फ़ाई का सम्मेलन
मुद्दा था कश्मीर की गुत्थी सुलझाना। इसमें पाकिस्तानी कश्मीर और पाकिस्तान से दर्जनों लोग हिस्सा लेने आये थे। अमरीका से भी कई लोग इस सम्मेलन में पहुंचे हुए थे।
भारत से जस्टिस सच्चर जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ता, कुलदीप नय्यर जैसे पत्रकार और भारतीय कश्मीर के कश्मीरी पंडित भी आये थे। बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और कश्मीरी अलगाववादी नेताओं का एक जमघट लगा हुआ था। सम्मेलन के दौरान कई अमरीकी कांग्रेसमैन भी भाषण देने आए।
मैं कॉन्फ़्रेंस शुरू होने से एक रात पहले डाक्टर फ़ाई की दावत पर एक होटल गया, जहाँ डाक्टर फ़ाई ने सूट और टाई में अपने ख़ास मेहमान यानी अमरीका में पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक़्क़ानी का स्वागत किया।
पाकिस्तानी राजदूत ने बाद में मेहमानों का स्वागत इस तरह से किया जैसे कि वो मेज़बान हों। मैं कई लोगों से मिला जिनमें भारत से आए जस्टिस सच्चर और कुलदीप नय्यर शामिल थे।
सम्मेलन के दौरान मैंने महसूस किया कि पाकिस्तान और पाकिस्तानी कश्मीर का पक्ष ज्यादा उभर कर आ रहा है। मैंने ये भी देखा की डॉक्टर फ़ाई भारत के विरोध में बोलेन वालों को टोकने की कोशिश भी कर रहे हैं।
भारत का पक्ष
तीन दिन बाद जब इस सम्मेलन का 'स्वीकृत प्रस्ताव' सामने आया तो मैंने देखा वहां काफी तनाव है। बाद में समझ में आया भारतीयों को इस स्वीकृत प्रस्ताव पर एतराज़ है। काफ़ी बहस के बाद पर्दे के पीछे इस पर सहमति हुई। बाद में जस्टिस सच्चर और कुलदीप नय्यर ने अपने भाषणों में ये नहीं बताया कि मतभेद किस बात पर था लेकिन उनकी बातों से समझ में आया कि मसौदे की भाषा कुछ ज्यादा ही भारत विरोधी थी।
बाद में डाक्टर फ़ाई ने दोनों से माफ़ी मांगी और स्वीकार किया कि कट्टर इस्लामी अलगाववादी हावी होने लगे थे। पूरे सम्मेलन में डाक्टर फ़ाई ने भारत से आए लोगों का ख़ास ख्याल रखा।
कॉन्फ़्रेस के बीच ही मुझे महसूस होने लगा था कि भारत का पक्ष ठीक से नहीं रखा जा रहा है। बाद में मैंने डाक्टर फ़ाई से बीबीसी के लिए एक बातचीत के दौरान पूछा कि हर कहानी के दो पहलू होते हैं और आपका सम्मेलन कश्मीर के भविष्य पर था तो इसमें भारत का पक्ष ठीक से क्यों नहीं पेश किया गया?
उनका कहना था कि वो चाहते हैं कि भारत का पक्ष सामने आए। उन्होंने कहा वो भारतीय दूतावास के लोगों को इस तरह की कॉन्फ़्रेस में निमंत्रण देते हैं लेकिन वहां से कोई नहीं आता।
'चंदे से आता है पैसा'
उनका कहना था कि वो भारतीय पत्रकारों को भी बुलाते हैं लेकिन वो उनकी कॉन्फ़्रेस का अक्सर बहिष्कार करते हैं। फ़ाई बाद में बोलने लगे कि उनकी दिली तमन्ना है कि भारतीय अख़बारों में कश्मीर पर उनका पक्ष छापा जाए।
मैंने पूछा आपका पक्ष क्या है? उनका कहना था वो चाहते हैं की कश्मीरियों को अपना भविष चुनने के लिए अधिकार मिलना चाहिए। कॉन्फ़्रेस अमरीकी कांग्रेस से सटी एक बड़ी इमारत में हुई थी जहाँ पर आमतौर से सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम होते हैं।
खाने का अच्छा इंतज़ाम था। ऐसा लग रहा था कि इस सम्मेलन पर काफ़ी पैसे खर्च हुए होंगे। मैं डाक्टर फ़ाई से इस बारे में बात करने उनके दफ्तर गया जहां उनकी कई तस्वीरें जॉर्ज बुश और बिल क्लिंटन के साथ दीवारों पर लटकी हुई थीं।
दफ्तर वॉशिंगटन के एक महंगे इलाके में था। मैंने पूछा आपकी जाहिरी तौर पर कोई कमाई तो है नहीं फ़िर भी इतना सुंदर दफ्तर कैसे चलाते हैं? कॉन्फ़्रेस पर काफ़ी खर्चा आया होगा पैसे किसने दिए?
उन्होंने कहा कि लोगों के चंदे से उनका दफ्तर भी चलता है और सम्मेलन भी होते हैं। मैंने जब ये सवाल किया कि कुछ लोग समझते हैं की आप पाकिस्तानी सरकार से पैसे लेते हैं तो वो ज़ोर से हँसे और कहने लगे ये 'परसेप्शन' है हक़ीक़त से इसका कोई लेना देना नहीं।
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