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शहर की पहचान बन चुके ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा और उनके मेंटिनेंस को लेकर जिला प्रशासन पूरी तरह उदासीन हो चुका है। यहां तक कि गांधी का भी सम्मान नहीं रहा। फूलबाग स्थित ऐतिहासिक गांधी भवन की दुर्दशा देखकर आपको इसका अंदाजा हो जाएगा। भवन की छत इतनी जर्जर हो चुकी है कि कभी भी गिर सकती है। केईएम हाल की छत तो गिरने भी लगी है। प्लास्टर उखड़ गया है, दीवारें दरक रही हैं। सालों से मेंटिनेंस नहीं हुआ है। ये हाल तब है जब जिले के सभी बड़े अधिकारी महीने में एक बार यहां जरूर आते हैं। क्योंकि सदर तहसील दिवस आयोजन इसी भवन में होता है। ऑफिसर्स के अलावा सैकड़ों फरियादी यहां आते हैं। कभी भी कोई हादसा हो सकता है। लेकिन अधिकारियों को इसकी कोई परवाह नहीं है।
बोर्ड ही बयां कर रहा पूरी कहानी
भवन की वायरिंग उखड़ चुकी है। इसके साथ ही यहां की चहारदीवारी का कलर उड़ चुका है। यहां के ऑफिस में कर्मचारियों को आदम जमाने के संसाधनों से जूझना पड़ रहा है। आई नेक्स्ट की टीम वहां पहुंची, तो एक ऑफिस के बोर्ड पर लिखे बरबादी शब्द ने भवन की पूरी कहानी बयां कर दी। यहां पर बापू की फोटो को भी ठीक से रखने की जगह नहीं बची है।
ये ऑफिस हैं बिल्िडग में
फूलबाग स्थित गांधी भवन में केईएम हॉल के अलावा कई डिपार्टमेंट के ऑफिस भी हैं। यहां पर सूचना विभाग, नागरिक सुरक्षा कोर, पर्यटन विभाग, पार्षद पुस्तकालय और तहसील के कर्मचारियों के ऑफिस है। इसमें सिर्फ पर्यटन विभाग का ही ऑफिस थोड़ा दुरुस्त है। लेकिन ऑफिस की छत और दीवार जर्जर हो चुकी है। नागरिक सुरक्षा कोर के ऑफिस की हालत तो कुछ ज्यादा ही खस्ता है। यहां तक ऑफिस के बोर्ड का कलर भी उड़ गया है। उसमें सिर्फ 'बरबादी' लिखा नजर आ रहा है। कुछ ऐसा ही हाल सूचना विभाग के ऑफिस का हाल है।
नागरिक सुरक्षाकर्मी खुद असुरक्षित
पब्लिक की मुसीबत में सुरक्षा करने वाले डिपार्टमेंट नागरिक सुरक्षा कोर का ऑफिस भी गांधी भवन में है। जहां पर कर्मचारी से लेकर ऑफिसर्स तक खुद असुरक्षित हैं। वे जान हथेली में रखकर ऑफिस में बैठते हैं। ऑफिस की हालत इतनी खराब है कि वहां पर कभी भी जर्जर छत या दीवार गिरने से हादसा हो सकता है। ऑफिस के गेट से ही उसकी खस्ता हालत का पता चलता है। ऑफिस के अन्दर घुसते ही छोटे से रूम में भण्डार कक्ष बना है। जहां बापू की फोटो पर धूल की मोटी पर्त जमी है। जिसमें सालों पुराने माले की आधी लड़ी है। उसको दीवार से हटाकर कोने में अलमारी के ऊपर रख दिया गया है। इस रूम का फर्नीचर जवाब दे गया है। छत और दीवार का प्लास्टर उखड़ चुका है। ऑफिस के आधे हिस्से में टूटे फर्नीचर का कबाड़ धूल खा रहा है। वहां पर आलमारियां तो दर्जनों है, लेकिन वे जंग से सड़ चुकी हैं। जगह-जगह फाइलों के ढेर और पंखों में जाले लग गए हैं। पहली बार आने पर किसी को ये भूत महल जैसा लगता है। यहां की दीवारें भी जवाब दे गई हैं। ईंटों ने साथ छोड़ दिया है। आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने कर्मचारियों से बात करने का प्रयास किया लेकिन कोई भी कुछ कहने का तैयार नहीं हुआ।
फरियादी से अधिकारी तक की जान खतरे में
फूलबाग स्थित गांधी भवन के जर्जर केईएम हाल में महीने में दो बार तहसील दिवस आयोजित होता है। यहां के मंच की छत भी गिरने लगी है। जिसके चलते अब डीएम समेत आला ऑफिसर्स के बैठने की व्यवस्था मंच में नहीं की जाती है। बारिश में तो हॉल तालाब बन जाता है। गेट इतने कमजोर हो चुके हैं कि सिर्फ धक्का देने से उखड़ जाएं। खिड़कियों का ग्लास टूट चुका है। ट्यूब लाइट लटकी हुई हैं। यहां पर महीने के पहले और तीसरे मंगलवार को डीएम की अध्यक्षता में तहसील दिवस का आयोजन होता है। एसएसपी, केडीए उपाध्यक्ष सहित दूसरे विभागों के हेड भी इसमें मौजूद रहते हैं। कभी-कभी कमिश्नर भी फरियादियों की समस्याएं सुनने पहुंचते हैं। अधिकारी पूरी बिल्डिंग की दुर्दशा देखने के बावजूद अंजान बने रहते हैं।
इसकी सूचना कब भेजोगे?
गांधी भवन में सूचना विभाग का भी ऑफिस है। जहां आदम जमाने के फर्नीचर से कर्मचारियों को काम चलाना पड़ रहा है। हालांकि यह ऑफिस केईएम हाल और नागरिक सुरक्षा कोर के ऑफिस से बेहतर है। इस ऑफिस से पूरे जिले की सूचना शासन, प्रशासन से लेकर मीडिया को भेजी जाती है, लेकिन यहां के कर्मचारियों ने गांधी भवन की दुर्दशा के बारे में प्रशासन को अवगत नहीं कराया।
फर्नीचर दुरुस्त, छत दीवारें जर्जर
गांधी भवन स्थित पर्यटन विभाग के ऑफिस में यहां के दूसरे ऑफिसेस की अपेक्षा नया फर्नीचर है। यहां पर नई वायरिंग भी लगी है। जिससे हवा और रोशनी की परेशानी से कर्मियों को जूझना नहीं पड़ता है। हालांकि यहां पर कर्मचारियों का टोटा है। आई नेक्स्ट रिपोर्टर सुबह क्क्.ख्भ् बजे ऑफिस में गया, तो वहां पर कोई भी कर्मचारी नहीं था। ऑफिस के बाहर से उसको एक महिला ने आवाज दी, क्या काम है। अभी कोई आया नहीं है, बाद में आना। रिपोर्टर से महिला से पूछा कि ऑफिसर्स कब आते हैं, तो उसने कहा कि यहां के कर्मचारियों का कोई भरोसा नहीं है। वे अपनी मर्जी से आते हैं और कुछ देर रुकने के बाद चले जाते हैं।
जानिए केईएम हॉल का इतिहास
देश की आजादी के पहले ब्रिटिश अफसरों की फैमिली मेंबर्स के मनोरंजन केंद्र के रूप में फूलबाग स्थित केईएम(किंग एडवर्ड मेमोरियल)का निर्माण कराया गया था। उस समय फूलबाग को क्वीन विक्टोरिया गार्डेन कहा जाता था। यह भवन युवराज किंग एडवर्ड की याद में बनाया गया था। वह क्90क् से क्9क्0 तक इंग्लैंड के सम्राट रहे थे। वह भारत में आने वाले पहले युवराज थे। उनकी मौत म् मई क्9क्0 को हुई थी। जिसके बाद इस भवन की नींव रखी गई थी। क्9क्ब् तक इसका निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका था। तभी विश्व युद्ध होने पर घायलों के इलाज के लिए इसे अस्थायी अस्पताल बना दिया गया। जिसके बाद इसका निर्माण कार्य पूरा किया गया। यहां पर नाचने के लिए लकड़ी की फर्श बनाई गई थी। ब्रिटिशर्स इसे पार्टी, कल्चरल प्रोग्राम और मैरिज पार्टी के लिए यूज करते थे। रईस भारतीयों को भी इसे उपलब्ध कराया जाता था। आजादी के बाद इसका नाम गांधी भवन रखा गया। जिसके बाद केडीए ने क्999 को भवन का जीर्णोद्धार कर यहां पर पार्षद पुस्तकालय और जिला प्रशासन के सहयोग से म्यूजियम का निर्माण कराया। हालांकि अब संग्रहालय को बिठूर शिफ्ट कर दिया गया है।