इस सवाल का जवाब ढूँढने की ताज़ा कोशिश और नए सवाल छोड़ गई है। मशहूर वैज्ञानिक बेन्जमिन फ्रेंकलिन उन पहले लोगों में से हैं जिन्होंने बिजली चमकने के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश की थी।

उनका ये निष्कर्ष बिल्कुल सही था कि बिजली कौंधना दरअसल एक प्राकृतिक इलेक्ट्रिकल डिस्चार्ज है। लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि उनका 1752 में चर्चित ‘काइट एंड की’ प्रयोग कभी महज़ विचार से आगे बढ़ पाया था या नहीं।

देखा जाए तो कई मायनों में मनुष्य फ्रैंकलिन के प्रयोग से आगे नहीं बढ़ पाया है। मिसाल के तौर पर इस बात को लेकर आज तक एक राय नहीं बन पायी है कि बादलों में चार्ज कैसे आता है ?

अलग-अलग सिंद्धात

ऐसा लगता है कि बर्फ के कण जब आपस में टकराते हैं तो उनमें इलेक्ट्रिकल चार्ज आ जाता है, और बर्फ के छोटे कण में आमतौर पर पॉजि़टिव चार्ज आने की संभावना रहती है जबकि बड़े कणों में नेगेटिव चार्ज।

जैसे-जैसे छोटे कण कनवेक्शन करंट के कारण ऊपर उठने लगते हैं, वैसे-वैसे बड़े कण गुरुत्वाकर्षण के कारण नीचे बैठने लगते हैं। इस तरह विपरीत चार्ज वाले कण एक दूसरे से अलग होने लगते हैं और इलेक्ट्रिकल फील्ड तैयार हो जाता है।

बिजली कौंधने से ये फील्ड डिसचार्ज हो जाता है। दरअसल ये चार्ज हो चुके बादल और पृथ्वी के बीच बहुत बड़ी चिंगारी की तरह होता है। ये आज भी रहस्य बना हुआ है कि ये चिंगारी पैदा कैसे होती है।

कॉस्मिक किरणों का रहस्य

एक विचार ये है कि ये चिंगारी अंतरिक्ष से वातावरण में जाने वाली कॉस्मिक किरणों के कारण पैदा होती है। कॉस्मिक किरणें सुपरनोवा जैसी प्रक्रियाओं के दौरान आमतौर पर प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन से बनती हैं।

अगर एक कॉस्मिक किरण हवा के अणु के साथ टकराती है, तो इससे कई तरह के पार्टिकल निकल सकते हैं। ये बाद में अन्य अणुओं के साथ टकराते हैं, उनको आयोनाइज़ करते हैं और इलेक्ट्रॉन पैदा होते हैं। 1997 में रूस के वैज्ञानिक एलेक्ज़ेंडर गुरेविच और उनके सहयोगियों ने भी इशारा किया था कि कैसे कॉस्मिक किरणें चार्ज पैदा करती होंगी।

उनके मुताबिक बादलों के इलेक्ट्रिक फील्ड में इलेक्ट्रोन आपस में टकराते हैं जिससे और टकराव पैदा होता है और बिजली कौंधती है। इस प्रक्रिया के तहत एक्स रे और गामा रे निकल सकती हैं।

बादल गरजने और बिजली चमकने के दौरान उपग्रहों ने भी एक्स रे और गामा रे का पता लगाया है। इससे ये पता चलता है कि वैज्ञानिक एलेक्ज़ेंडर की बात सही हो सकती है।

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