कानपुर (ब्यूरो)। बारिश में हम बाढ़ का सामना करते हैं और गर्मियों में पानी को तरसते हैं। क्योंकि रेन वाटर को न तो स्टोर करने की कोई व्यवस्था नहीं और न ही उसे रीयूज करने के लिए ट्रीट करने का कोई सिस्टम है। इसी वजह से रेन वाटर नालों के जरिए बेकार होकर बह जाता है, जबकि इस पानी का इस्तेमाल बिना ट्रीट किए हुए भी रोजमर्रा के कई कार्यो में हो सकता है। जिसके लिए अंधाधुंध ग्र्राउंड वाटर का दोहन किया जा रहा है। जिससे ग्राउंड वाटर लेवल हर साल कम होता जा रहा है।

फिर भी समस्या
सिटी की एवरेज रेनफॉल 836 मिलीमीटर हैं, जबकि पिछले तीन वर्षो से लगातार हर साल एक हजार मिलीमीटर से अधिक बरसात हो रही है। बावजूद इसके ग्र्राउंड वाटर लेवल लगातार नीचे जा रहा है, इसकी वजह ये है कि 1483 छोटे-बड़े नालों के जरिए बरसाती पानी बेकार बह जाता है। इसका न तो स्टोरेज कर इस्तेमाल किया जा रहा और न ही ट्रीटकर रीयूज हो रहा है। वहीं ग्र्राउंड वाटर की रीचार्जिंग के प्रॉपर उपाए नहीं किए जा रहे हैं। घरों तक गंगा, लोअर गंगा कैनाल का पानी ट्रीटकर नहीं पहुंच रहा है। जिसकी वजह से लोग ग्र्राउंड वाटर का यूज करने को मजबूर हं।

एसटीपी में चला जाता है
सिटी में सीवेज सिस्टम ध्वस्त है। ज्यादातर मोहल्लों में सीवर लाइन और 1219 छोटे बरसाती नाले एक हो चुके हैं या फिर 264 बड़े बरसाती नालों में डायरेक्ट सीवरेज जोड़ दिया गया है। इसी वजह से रेन वाटर इन छोटे-बड़े नालों के जरिए वाजिदपुर जाजमऊ, सजारी, बिनगवां जगहों पर आदि बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में पहुंच जाता है। वाजिदपुर में बने 130 एमएलडी और बिनगवां के 210 एमएलडी एसटीपी में पानी ट्रीटकर गंगा, पांडु नदी और इरीगेशन चैनल के जरिए सिंचाई के लिए भेजा जाता है। इनके अलावा अन्य एसटीपी में ट्रीटकर पानी गंगा में छोड़ दिया जाता है। वहीं जिन पांच नालों को अब तक जलनिगम टैप नहीं कर सका है, उनमें बायोरेमिडेशन के जरिए ट्रीटकर पानी को नगर निगम गंगा और पांडु नदी में गिरा रहा है।

इन कार्यों में कर सकते यूज
ग्र्राउंड वाटर डिपार्टमेंट के हाइड्रोलॉजिस्ट अविरल कुमार सिंह के मुताबिक घर, फैक्ट्री आदि जगहों पर रेन वाटर को स्टोर कर इसका यूज पीने के अलावा रोजमर्रा के अन्य कई कार्यो में कर सकते हैं। जिनमें बागवानी, कार की धुलाई, फर्श की सफाई-धुलाई, कपड़े की धुलाई आदि कार्य शामिल हैं।

हो सकते कई फायदे
ग्र्राउंड वाटर डिपार्टमेंट के एक्सपट्र्स के मुताबिक रेन वाटर को स्टोरेज कर बागवानी, फर्श की सफाई आदि में यूज से कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि कई फायदे होंगे। इन कार्यो में यूज होने वाला पानी बचेगा। सबमर्सिबल नहीं चलाना पड़ेगा। इससे सबमर्सिबल चलाने में खर्च होने वाली बिजली बचेगी और ग्र्राउंड वाटर भी बचेगा। साथ ही वाटर लागिंग की समस्या कुछ हद तक कम हो जाएगी। लेकिन लोगों में अवेयरनेस न होने के कारण बरसाती पानी बेकार बह जाता है।

ये हैं सिटी में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
एसटीपी-- कैपेसिटी
वाजिदपुर जाजमऊ-- 130 एमएलडी
वाजिदपुर जाजमऊ-- 05 एमएलडी
वाजिदपुर जाजमऊ-- 27 एमएलडी
वाजिदपुर जाजमऊ-- 42 एमएलडी
बिनगवां नौबस्ता-- 210 एमएलडी
बनियापुरवा गंगा बैराज-15 एमएलडी
सजारी सनिगवां-- 42 एमएलडी
पनका पनकी-- 30 एमएलडी (निर्माणाधीन)

-1483 छोटे बड़े नाले शहर में
- 440 किमी कुल लंबाई है नालों की लंबाई
- 264 नाले (एक मीटर से ज्यादा चौड़े हैं)
- 227 किमी। है इन नालों की लंबाई
-1219 नाले (एक मीटर से कम चौड़े )
-213 किमी। है इन नालों की कुल लंबाई

हाइड्रोलॉजिस्ट के टिप्स
-- होटल, नर्सिंगहोम व इंडस्ट्रीज में रेन वाटर को स्टोर कर टायलेट, गार्डेनिंग आदि में यूज कर सकते हैं।
--इंडस्ट्रियल यूज में लाए गए पानी को ट्रीट कर उसका रीयूज किया जा सकता है।
--गैराज में गाडिय़ों की धुलाई से निकलने पानी को ट््रीट कर रीयूज कर सकते हैं।
--वाटर पार्क में यूज होने वाले पानी को ट्रीट कर कई बार यूज किया जा सकता है।