वेस्पा आज़ादी के भारत में सबसे पहला स्कूटर था जिसे बजाज के साथ बनाया जाता था। बाद में कंपनी किन्हीं कारणों से चली गई फिर लौटी एलएमएल के साथ। फिर उसने भारत से 1990 के दशक में विदा ले ली थी।
वेस्पा हमेशा भारत में मध्यम वर्ग के बीच गर्मजोशी से लिया गया है पर इस बार वेस्पा आम आदमी के लिए नहीं ख़ास आदमी के लिए आया है।
स्कूटर की अहमियत
ऐसे समय से जब भारत की सड़कों पर मोटर साइकिलें हावी हैं और युवा पीढ़ी वेस्पा के जादू से अनजान है। क्या वेस्पा अपनी खोई जगह वापस ले पाएगा।
जिनका स्कूटर से पाला नहीं पड़ा वो बस यूँ समझ लें कि अगर मोटर साइकिल या बाइक महबूबा है तो स्कूटर का परिवारों में वही रोल होता था जो पुरानी हिंदी फिल्मों में रामू काका नाम के नौकर का होता था। उसका सम्मान सब करते और वो सबकी सेवा करता था।
उस पर सबसे पहला हक़ परिवार में पिता का होता उसके बाद बड़े होते क्रमवार लड़कों का जो उस पर चढ़कर गाड़ी चलाना सीखते और फिर कभी चोरी से ले जा कर शान बघारते।
नया अंदाज़
अब वेस्पा का स्कूटर लौट आया है पर रामू काका के रूप में नहीं लाइफ़ स्टाइल प्रोडक्ट के रूप में और क़ीमत भी आम मध्यम वर्गीय गाड़ी से ज़्यादा।
पिआजियो व्हीकल्स प्राइवेट लिमिटेड के अध्यक्ष रवि चोपड़ा बताते हैं, "ये सिरफिरे लोगों के लिए सिरफिरे दामों पर एक चीज़ होगी। यह बहुत ही ख़ास अनुभव होगा और उन लोगों के लिए जो कि वेस्पा जैसी ख़ास चीज़ से जुड़ना चाहते हैं। और यह अनुभव बेशक़ीमती होगा."
चोपड़ा जी वेस्पा को स्कूटर कहकर संबोधित करने पर मुझे दो बार झिड़क देते हैं। वो कहते हैं "यह स्कूटर नहीं वेस्पा है"।
जब मैंने पूछा की दिखता स्कूटर जैसा है दो पहिये का है चलता स्कूटर जैसा है तो यह स्कूटर क्यों नहीं है तो चोपड़ा जी ने कहा आप इसे लाइफ स्टाइल प्रोडक्ट क्यों कह रहे हैं।
उन्होंने कहा, "यह एक तथ्य हैपूरी दुनिया में इसे एक लाइफ़ स्टाइल प्रोडक्ट के रूप में जाना जाता है। यह एक ख़ास उत्पाद है और जो लोग इसकी अहमियत समझते हैं वो इसके लिए ख़ास क़ीमत अदा करते हैं."
तो यह ख़ास लोग कौन होंगे, कहाँ होंगे और कंपनी अपने वाहन को लेकर किस बाज़ार में उतरना चाहती है। इसके उत्तर में रवि चोपड़ा कहते हैं, "इसके ग्राहक हर जगह होंगे पर मुख्यतः महानगरों में अर्ध महानगरों में शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्रों में, पर ग्रामीण इलाक़ों में शायद नहीं."
मध्यम वर्गीय नहीं
आप में से कइयों को याद होगा, वो स्कूटरों का ज़माना- लेम्ब्रेटा, कहीं वेस्पा, तो कहीं विजय सुपर तो प्रिया का सफ़र सुहाना वो स्कूटर को झुकाना, पांच रुपए का पेट्रोल डलवाना गाड़ी ओवर हो जाने पर चालीस किक लगाना, सामने गैस की टंकी और पीछे तीन दोस्तों को लाद के घूमना घुमाना।
जाने कितने ही परिवार थे जहाँ स्कूटर परिवार की पहली गाड़ी होती थी और पूरे परिवार का साझा सम्मान और अकेला वाहन होता था। अब सड़कों पर तेज़ रफ़्तार मोटर साइकिलें दौड़ती हैं पतंगों सी यहाँ वहाँ फिरती हैं यानी जैसी पीढ़ी वैसी गाड़ियाँ। बीते कल स्कूटर आपके मध्यम वर्गीय होने का प्रतीक था। आज अदा है, आपका अंदाज़ है और यह बताता है कि आप कुछ भी हों मध्यम वर्गीय नहीं हैं।
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