लूनर रीकानसन्स ऑर्बिटर (एलआरओ) की ओर से मुहैया कराई गई तस्वीरें बताती हैं कि चांद की सतह पर अब भी अमरीकी झंड़ों की परछाइयां देखी जा सकती हैं। हालांकि पहली बार इंसान को चांद पर पहुंचाने वाले अपोलो 11 मिशन के दौरान लगाया गया अमरीकी झंडा अब वहां नहीं दिखता है।
इससे चांद पर कदम रखने वाले दुनिया के दूसरे व्यक्ति बज एल्ड्रिन की इन बातों की पुष्टि होती है कि वहां लगाया गया अमरीकी झंडा अपोलो 11 अंतरिक्ष यान के वहां चलते वक्त इंजन की चपेट में आ गया था। एलआरओ को चांद की सतह के अब तक के सबसे विस्तृत मानचित्र मुहैया कराने के इरादे से ही तैयार किया गया है।
अपोलो मिशन के तहत जितनी बार भी चांद पर कदम रखा गया, वहां अमरीकी झंडा लगाया गया था। 1969 से लेकर 1972 तक अमरीका के अपोलो मिशन के तहत छह बार चांद पर अंतरिक्ष यान भेजे गए और इस दौरान कुल 12 लोगों ने चांद पर चहलकदमी की।
झंडों की पुष्टि
वैज्ञानिकों ने इन झंडों का पता लगाने के लिए पहले भी अपोलो अंतरिक्ष यानों के उतरने वाली जगहों की तस्वीरों की पड़ताल की और उन्हें चांद की सतह पर परछाइयां दिखाई दीं। लेकिन वे पक्के तौर पर ये नहीं कह पाए कि ये परछाइयां झंडों की ही हैं।
अब शोधकर्ताओं ने दिन के दौरान उन्हीं इलाकों से अलग अलग बिंदुओं से ली गईं तस्वीरों का अध्ययन किया है। उनका कहना है कि ये परछाइयां झंडों की ही पुष्टि करती हैं।
एलआरओ अंतरिक्ष यान में कैमरे संबंधी यंत्रों के मुख्य वैज्ञानिक प्रोफेसर मार्क रॉबिंसन ने एक ब्लॉग में लिखा, “एलआरओसी की तस्वीरें निश्चित तौर पर दिखा रही हैं कि अमरीकी झंडे वहां अब भी मौजूद हैं, और सारी जगहों पर उनकी परछाइयां दिख रही हैं। सिर्फ अपोलो 11 अभियान का झंडा नहीं है.”
एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक रॉबिंसन का कहना है, “ये बात थोड़ी सी हैरान करने वाली है कि तीव्र पराबैंगनी प्रकाश और चंद्रमा के तापमान के बीच भी झंडों का अस्तित्व बना रहा, लेकिन ऐसा हुआ है। अब वे दिखते कैसे हैं, ये बात दूसरी है (बुरी तरह कटे फटे?).”
एलआरओ ने सितंबर 2009 में अपना अभियान शुरू किया था। उसका उद्देश्य चंद्रमा पर खनिज और दूसरे संसाधनों के अलावा भावी अभियानों के लिए अंतरिक्ष यानों के उतरने की अच्छी जगहें तलाशना था।
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